बॉन। उत्तरप्रदेश की प्रतिष्ठित संसदीय सीट लखनऊ से समाजवादी पार्टी की उम्मीदवार और अभिनेत्री व सामाजिक कार्यकर्ता नफीसा अली का मानना है कि महिलाओं को राजनीति में बहुत कम जगह मिल रही है। ऐसे में महिलाओं को आगे बढ़ने के मौके देना और उन्हें सशक्त बनाना बहुत जरूरी है।
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जर्मन रेडियो डॉयचे वेले के साथ खास बातचीत में नफीसा अली ने कहा कि दुःख की बात है कि महिलाओं को राजनीति में उतनी जगह नहीं मिल रही है, जितनी होनी चाहिए। मेरे खिलाफ खड़े पुरुष उम्मीदवार महिलाओं के बारे में कुछ भी बोल देते हैं। इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता है। हमें इसके खिलाफ लड़ना है और महिलाओं को सशक्त बनाना है, उन्हें आगे बढ़ने के मौके देना है।
लखनऊ सीट से समाजवादी पार्टी के टिकट पर पहले फिल्म अभिनेता संजय दत्त चुनाव लड़ने वाले थे, लेकिन अदालत की तरफ से उनके चुनाव लड़ने पर रोक लगाए जाने पर नफीसा को उम्मीदवार बना दिया गया है। जब नफीसा से पूछा गया कि क्या उन्हें सिर्फ एक चेहरा दिखाने के लिए उम्मीदवार बनाया गया है तो उनका जवाब था कि यह सच है पहले सपा संजय दत्त को यहाँ से खड़ा कर रही थी। फिर सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद ऐसा नहीं हो पाया। वैसे कोई भी अच्छा उम्मीदवार कहीं से भी चुनाव लड़ सकता है। यह हर व्यक्ति का अधिकार है।
नफीसा अली ने पिछला चुनाव दक्षिणी कोलकाता से कांग्रेस के टिकट पर तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष ममता बनर्जी के खिलाफ लड़ा था। इस बार कांग्रेस के बजाय समाजवादी पार्टी का दामन थामने के बारे में नफीसा कहती हैं कि मैंने लखनऊ में सपा से कांग्रेस के लिए समर्थन माँगा, लेकिन मुलायमसिंह और अमरसिंह ने मुझे पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ने की पेशकश की। मुझे मुलायम का नेतृत्व और यूपी के लिए उनका विजन अच्छा लगता है।
नफीसा अली की शख्सियत के कई रूप हैं। पहले वे मॉडल रहीं, उसके बाद अभिनय भी किया फिर उसके बाद सामाजिक कार्यकर्ता के तौर पर भी उनकी पहचान है। गुजरात दंगों के पीड़ितों के साथ-साथ वे एड्स पीड़ितों के लिए भी काम करती हैं।
वे कहती हैं कि मैं राजनीतिक फायदे के लिए जाति और धर्म को इस्तेमाल करने के मैं बिलकुल खिलाफ हूँ। मैं माँ हूँ और यह मैंने मेरे बच्चों को भी सिखाया। इससे सही लोगों का चुनाव नहीं होता। यही मेरी लड़ाई है जो मैं संसद तक ले जाना चाहती हूँ।
मैं गाँधीजी के इस सिद्धांत को मानती हूँ कि दुनिया को बदलने से पहले खुद में बदलाव लाने होंगे। नफीसा के मुताबिक देश के राजनीतिक ढाँचे में बदलाव जरूरी हैं। आगे नहीं बढ़ेंगे तो देश का भला कैसे होगा।