अब उसे भूलने की कोशिश करें!

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हेलो दोस्तो! कई बार हम जिस चीज के लिए अपनी अरुचि या नापसंदगी दिखाते हैं एक दिन वही चीज हमारे लिए सबसे प्रिय व अनमोल वस्तु बन जाती है। कहते हैं, बदलाव के अलावा इस धरती पर हर कुछ बदलता रहता है।

पर किसी के दिल व दिमाग में जिस प्रकार का बदलाव आता है शायद उसका कोई सानी नहीं है कभी कम्युनिस्ट भी पूरी तरह पूंजीवादी विचारधारा के समर्थक बन बैठते हैं और देखते-देखते नास्तिक, आस्तिक बन जाते हैं। इन सब परिवर्तनों पर भी उतना आश्चर्य नहीं होता जितना प्रेम करने वालों के पल भर में इस करवट या उस करवट पाला बदलने पर होता है।

शायद एक प्रेम करने वाला व्यक्ति खुद अपने दिल से इस बदलाव का कारण पूछे तो वह खुद भी कोई तार्किक या संतोषजनक जवाब नहीं दे पाए। वहां तो जैसे हर तर्क से परे एक ही उत्तर होता है बस अब यही चाहिए या फिर अब उसका नाम, उसकी छाया कुछ भी सामने न हो। ऐसे मनमौजी बदलाव का भला क्या मतलब निकाला जाए। ऐसे पल्ला झाड़ने वाले पर कोई कैसे भरोसा करे। सामने वाला ऐसे रिश्ते पर कैसे विश्वास करे। पर जिसे नफरत करें उसे ही पाने की ऐसी धुन सवार हो जाए कि विकल्प में कुछ भी नहीं बचे तो कोई क्या सुझाव दे।

ऐसे ही धुन में गलकर घुले जा रहे हैं अर्जुन (बदला हुआ नाम)। अर्जुन, अर्चना से प्रेम करते हैं। दोनों एक-दूसरे को चाहते थे पर अर्जुन को अपनी दोस्त पर शक का ऐसा भूत सवार हुआ कि वे उसके साए से भी कतराने लगे। न मिलना, न फोन का जवाब देना यहां तक कि उन्होंने आने-जाने के वे तमाम रास्ते बदल दिए जहां से अपनी दोस्त से टकराने की जरा भी गुंजाइश थी।

नतीजा यह हुआ कि उनकी दोस्त ने थक हारकर अपना जीवन का रास्ता अलग कर लिया। पर, अब जब वह पूरी तरह उनके जीवन से दूर जा चुकी है, अर्जुन दिन-रात उसकी राह निहारते हैं। उससे संवाद, बनाने का सारा तिकड़म करते हैं। उन्हें पागलों की तरह खोजते फिरते हैं। अब उनकी दोस्त ने अपना फोन नंबर बदल लिया है। अचानक इस बदलाव का कारण है, उनके शक का गलत साबित होना। उन्हें अहसास हो गया है कि उन्होंने शक करके अपनी दोस्त के साथ अन्याय किया है। अब दुख, ग्लानि, पश्चाताप में न केवल वे जल रहे हैं बल्कि उन्हें अपना जीवन ही उसके बिना बेमानी लगने लगा है।

अर्जुन जी, एक बात साफ है कि आपकी दोस्त अब कभी वापस आने वाली नहीं है। गुस्सा, फटकार, मनमाना इल्जाम, बेइज्जती जैसे नकारात्मक अहसास को सहने की एक सीमा होती है। जिससे जितना प्यार महसूस होता है, इनसान उसे उसी अनुपात में सहन करता जाता है। इंतजार करता है कि यह गलतफहमी के बादल छंट जाएंगे और सब कुछ ठीक हो जाएगा। इस सुधार की आशा में सामने वाला झुकता जाता है। पर झुकने की भी अपनी हद होती है। फिर एक समय ऐसा होता है जब इनसान टूट जाता है।

जिस प्रकार टूटे हुए किसी सामान को पुरानी अवस्था में हूबहू लाना कठिन होता है ठीक उसी तरह ऐसे रिश्ते में वही पुरानी सहजता व जोश प्यार की उम्मीद करनी बेकार है। अति किसी भी चीज की बुरी होती है। आपने इस रिश्ते में उसे बार-बार ठुकराकर, नीचा दिखाकर एक प्रकार की अति तो कर ही दी है। अब इसका खामियाजा आपको अपनी दोस्त को खोकर ही भुगतना पड़ेगा।

रही बात आपके जीवन को सामान्य बनाने की तो अपनी गाड़ी पटरी पर लाने के लिए आपको यह स्वीकार करना पड़ेगा कि अब वह आपके जीवन से दूर जा चुकी है। कोई भी हकीकत स्वीकार कर लेने के बाद जीना आसान हो जाता है। क्या आपको तारे बहुत अच्छे लगते हैं तो आप उसे पाने के लिए दिन-रात रोते रहेंगे। आप इसलिए नहीं रोएंगे क्योंकि आप यह जानते हैं कि आप उसे कभी नहीं पा सकते हैं। इसी तरह जिस पल आप यह पूर्णरूप से स्वीकार कर लेंगे कि आपकी दोस्त भी एक ऐसी ही तारा है जो कुछ क्षण के लिए आपके जीवन के आकाश पर चमकी थी, तो आप उसे खुशी-खुशी भूल जाएंगे।

अपनी दोस्त से जितना भी आपको प्यार मिला था उसे मन में संजोकर, उसे अंतिम विदाई दे दें। सब कुछ आपके मन पर ही निर्भर करता है। जब प्यार किया था वह भी आपका मन था, जब शक किया तब भी आपका ही मन था। अब इस सच्चाई को स्वीकार करने वाला भी आपका ही मन होगा। दुख, ग्लानि, नाराजगी से आपका जीवन बर्बाद होगा और किसी का कुछ भी नहीं बिगड़ेगा।

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