बहुत इच्छा थी कई दिनों से तुमसे वो सब कहने की जो कभी बहुत देर साथ न रह पाने के कारण नहीं कह सका। बहुत सी बातें थीं, कईं ऐसे सपने, जो खुद ही देखे और खुद ही खुश हो लिया। और जब तुमने कहा कि मुझे खत लिखो, तो थोड़ी-सी खुशी हुई, और थोड़ा बुरा भी लगा। खुशी इसलिए हुई कि तुम्हें भी उन सपनों को सुनने की इच्छा है, और बुरा इसलिए कि इतनी प्रतीक्षा के बाद भी वो सपने हैं तो अधूरे ही।
तुमसे दूर जाते समय, और आते समय भी, रास्ता तुम्हीं के साथ काटा। पूरे समय मैं सफर में उस बस के कोने से टिककर बैठा रहा और तुम उन तन्हाइयों में, उन परदों की ओट में मुझ पर प्यार बरसाती रही। पूरे वक्त मुझसे लिपटकर बैठी रहीं, और मैं तुम्हारे चेहरे पर उड़ आई जुल्फें हटाकर चाँद देखने कि कोशिश करता रहा। और चूमता रहा तुम्हारी पेशानी को, उन आँखों को जो मेरी निगाहों से बरबस झुकी जा रही थीं, उन पलकों को, जो मुझे तुम्हारी आँखों में अपना अश्क देखने की कोशिश से रोक रही थीं। कितना अच्छा लगा था जब तुम्हारी आँखें झुक गई थीं, जब मैंने उनमें झांकना चाहा... और तब, जब मैंने तुम्हारे सिर पर तुम्हारा पल्लू रखकर तुम्हारा चेहरा हाथों में लिया।
पूरे समय तुम मेरी शर्ट के बटन्स के भीतर अपने प्यार को तलाशती रहीं, जैसे तुम कोई नाजुक-सा ख्वाब संजो रही हो, और जब मुझे अपनी आँखों में खुद को तलाशते देखा तो अपना चेहरा वहां पर छुपा लिया। पूरे रास्ते तुम वैसी ही लिपटी रहीं, और एक बार जब नींद के आगोश में करवट बदली, तो अचानक पलटकर ऐसे लिपट गईं, जैसे कुछ खो जाने का डर एकदम सामने आ गया हो। मेरी शर्ट को कसकर पकड़ लिया, और लिपट गईं, जैसे फिर कभी नहीं बिछ़ुडोगी, जैसे ये मिलन हमेशा का हो। और फिर सो गईं, एकदम शांत होकर, ऐसे जैसे कभी कोई उलझन थी ही नहीं, जैसे दूर हो जाने का कोई डर कभी छूकर भी ना गुजरा हो तुम्हें। बहुत अच्छा लगा था वो पल, जब सोते हुए तुम्हारे बाल उड़कर चेहरे को छुपा रहे थे और जैसे मुझसे कह रहे थे कि परी को सोने दो, बिलकुल परेशान मत करो। और मैंने परेशान किया भी नहीं, केवल सहलाता रहा तुम्हारे बाल, कि तुम्हे भरोसा होता रहे कि प्यार हमारे पास है और हम दोनों महफूज हैं...।