मेरे साथी

प्रेम का अर्थ सिर्फ मिलन नही होता, इस तथ्य को हमसे ज्यादा और कौन समझ सकता है, फिर जुदाई की शिकायत क्यों?

मैं तो एक अहसास को जी रही हूँ, उसे अपने वजूद के हर अंग से महसूस कर रही हूँ, तूफानी हवाओं से उस अहसास को बुझने से बचा रही हूँ, उसकी भीनी फुहारों से अपने अंदर की आग बुझा रही हूँ, और वो अहसास है अस्पृश्यता का एहसास, तुम्हें ना छूने का सुकून। इस रात के आँगन को तुम्हारी चाँदनी भी नसीब नही फिर भी मेरी रात बहुत शीतल हैं। कहीं वो आग नहीं जो देह को ही नहीं घर को भी जला देती हैं।

मेरे वजूद से जुड़ी रूहानी ताकतों के ये आशीर्वाद है जिसने मुझे देर से ही सही लेकिन प्रेम के सही रूप से मिलवाया और मिलवाया ही नहीं, बल्कि उसे समझने और सम्भालने की ताकत भी दी।

वर्ना पानी के बुलबुले की जिंदगी जीनेवाला मन सागर की गहराई नापने का हक नहीं रखता, देह की आग में झुलस जानेवाला खयाल दीए की पवित्र लौ को छूने का हक नहीं रखता, अकेलेपन के श्राप से ग्रसित ये दिमाग, तुम्हारे अस्तित्व के मेरे जीवन से जुड़ने पर, जिंदगी भर साथ का वादा तुमसे नहीं करता।

इस कागज के आँगन में, अपने अहसास के हर शब्द को बो रही हूँ। इसे अपने आंगन की मिट्टी में गाढ़ देना। उसे रोज अपने प्रेम के नीर से सिंचना और इंतजार करना उस फूल के जन्म लेने का जो उगेगा तो तुम्हारे आंगन में लेकिन उसके अस्तित्व का हर कण मेरी कोख से जुड़ा होगा। मेरे ही अंगो से जिसे जीवन मिला होगा। उसकी हर पँखुड़ी में मेरे देह की खुशबू होगी, जो तुम्हें हर बार इस बात का एहसास दिलाएगी कि इस आँगन की मिट्टी (चाहे वो तुम्हारे घर का आंगन हो) मेरे ही वजूद से बनी है क्योंकि उसे तुमने सिंचा है अपने प्रेम से और वो प्रेम और कुछ नही मैं ही तो हूँ।

और ये मिलन ही तो है, तुम्हारी भावनाओं का मेरे शब्दों के साथ, तुम्हारी बेकरारी का मेरे सुकून के साथ। फिर ये जुदाई कि शिकायत क्यों?

सदा तुम्हारे इंतजार में...

- एक प्रेमी

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