भोपाल। मध्यप्रदेश विधानसभा में चुनाव की तारीखों का एलान होने के बाद अब चुनावी पारा चढ़ गया है। सूबे में सत्तारूढ़ पार्टी भाजपा पांचवीं बार सत्ता में काबिज होने के लिए इस बार पीएम मोदी के चेहरे पर चुनाव मैदान में है। भाजपा एमपी के मन में मोदी थीम से चुनावी मैदान में आ डटी है। मध्यप्रदेश में इस बार भाजपा ने आधिकारिक तौर पर अपना मुख्यमंत्री चेहरा नहीं घोषित किया है।
ऐसे में जब भाजपा ने मुख्यमंत्री चेहरा नहीं घोषित किया है तब अगर भाजपा सत्ता में वापसी करती है तो मुख्यमंत्री कौन होगा यह सबसे बड़ा सवाल बना हुआ है। वहीं मौजूदा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान क्या पांचवीं बार सूबे के मुख्यमंत्री बनेंगे,यह भी सवाल चुनावी फिंजा में गूंज रहा है।
मध्यप्रदेश में बतौर मुख्यमंत्री चौथी पारी खेल रहे शिवराज सिंह चौहान राज्य में भाजपा के सबसे बड़े चेहरे है और वह पूरी ताकत के चुनावी मैदान में डटे हुए है। भाजपा की पहली दो सूची में जब मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का नाम बुधनी विधानसभा सीट से नहीं आया तो सियासी अटकलें भी जोर पकड़ ली। ऐसे में प्रदेश में मामा और भैय्या के नाम से अपनी एक अलग पहचान रखने वाले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इमोशनल कार्ड खेलते एक बाद एक ऐसे बयान दिए जिसकी हर ओर चर्चा होने लगी।
बुधनी से टिकट का एलान होने से पहले अपनी विधानसभा सीट बुधनी में सीएम शिवराज ने भावुक होते हुए मंच से ही सीधे जनता से पूछ था कि "चुनाव लड़ूं या नहीं लड़ूं बोलो।" सीएम के इतना पूछते हुए बुधनी की जनता ने मामा-मामा के नारे लगाएं,तो सीएम शिवराज आत्मविश्वास से भरे नजर आए और मंच से मुस्कुरा कर लोगों को अभिवादन किया। इतना ही नहीं सीएम शिवराज ने अपने गृह जिले सीहोर में एक कार्यक्रम में लाड़ली बहना योजना का जिक्र करते हुए मंच से कहा कि "ऐसा भइया नहीं मिलेगा, अगर चला गया तो बहुत याद आऊंगा तुम्हें।"
दरअसल मध्यप्रदेश के चुनावी रण में केंद्रीय मंत्रियों, पार्टी महासचिव और सांसदो के चुनावी मैदान में उतरने के बाद भाजपा की अंदरखाने की सियासत भी गर्म है। 18 साल से प्रदेश की बागडोर संभाले हुए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी इस बात को अच्छी तरह जानते है कि उनके लिए सियासत की आगे की राह इतनी आसान नहीं होने वाली है। खुद उज्जैन में महाकाल लोक के दूसरे चरण के कार्यों का लोकार्पण करने पहुंचे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि “राजनीति की राहें बड़ी रपटीली होती हैं। यहां कदम-कदम पर फिसलने का खतरा होता है। कई बार खुद फिसल जाते हैं। कई बार चक्कर में डालने वाले भी आ जाते हैं”।
एंटी इनकम्बेंसी की काट ढूंढते शिवराज!- मध्यप्रदेश में 20 साल से सत्ता में काबिज भाजपा के सामने सबसे बड़ी चुनौती एंटी इनकम्बेंसी फैक्टर है। भाजपा के चुनावी रणनीतिकार मानते है कि एंटी इनकम्बेंसी को अगर साध लिया गया तो प्रदेश में भाजपा पांचवी बार सत्ता में लौट सकती है। ऐसे में खुद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपने इमोशनल बयान से एंटी इनकम्बेंसी को दूर करने की कोशिश की है।
इसमें कोई राय नहीं है कि प्रदेश की सियासत में आज भी शिवराज सिंह चौहान भाजपा के सबसे लोकप्रिय चेहरे होने के साथ सार्वधिक जनाधार वाले नेता है। खुद शिवराज भी जानते है कि 20 सालों की एंटी इनकम्बेंसी की काट ढूंढना जरुरी है इसलिए चुनाव साल में लाड़ली बहना योजना लाकर उन्होंने हर घर तक अपनी पहुंच बनाई है। महिलाओं को हर महीने 1250 रुपए देने वाले लाड़ली बहना योजना 2023 विधानसभा चुनाव के लिए शिवराज का मास्टर स्ट्रोक माना जा रहा है और इसी लाड़ली बहना योजना के जरिए शिवराज सिंह एंटी इनकम्बेंसी को दूर करना चाह रहे है।
अगर शिवराज की सियासी स्टाइल को देखा जाए तो 29 नवंबर 2005 को पहली बार मध्यप्रदेश की बागडोर संभालने वाले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान 2007 में बेटियों के लिए लाड़ली लक्ष्मी योजना लेकर आए थे और 2008 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने विधानसभा चुनाव में जीत हासिल की थी। ऐसे में अब 2023 के विधानसभा चुनाव से पहले शिवराज की लाड़ली बहना क्या भाजपा को सत्ता में वापस लाने के साथ खुद शिवराज सिंह चौहान को पांचवीं बार मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचा पाएगी, यह 3 दिसंबर को चुनाव नतीजें आने के बाद ही पता चलेगा।