आजकल के बच्चे खेलने की उम्र में दूध-दही के बजाय फास्ट फूड की लत से उच्च रक्तचाप और मोटापे की समस्या की गिरफ्त में आ जाते हैं। इससे बच्चों में मोटापे तथा उम्र से अधिक वजन की वजह से उनमें मधुमेह, ह्रदय, गुर्दा एवं पेट रोगों का खतरा मंडराने लगता है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के अनुसार सामान्य से 20 प्रतिशत अधिक वजन मोटापा की परिभाषा तैयार करता है। विश्व में लगभग 20 करोड़ बच्चे और वयस्क मोटापे से पीड़ित हैं।
इनमें से पाँच करोड़ 80 लाख लोग विकासशील देशों में रहते हैं। स्वास्थ्य संगठन के अनुसार वर्ष 2025 में विश्वभर इनकी संख्या बढ़कर 30 करोड़ हो जाएगी।
विभिन्न रोगों और कई गंभीर बिमारियों पर शोध कर चुके डॉ. नरेश पुरोहित ने चार से लेकर 18 साल की उम्र के बच्चों पर डेढ़ वर्ष में मोटापा और उच्च रक्तचाप पर पाँच मान्यता प्राप्त निजी स्कूलों के दो हजार बच्चों पर राज्य में पहला शोध किया है।
पुरोहित ने बताया कि 740 बच्चों का वजन उनकी उम्र के लिहाज से अधिक था और 207 बच्चे मोटापे का शिकार थे। मोटे बच्चों में 17 प्रतिशत और उम्र से अधिक वजन वाले बच्चों में 16 प्रतिशत उच्च रक्तचाप के शिकार थे। इनकी खून की जाँच में सीरम कोलेस्ट्राल की मात्रा अधिक पाई गई।
उन्होंने अपने शोध में पाया कि सामान्य बच्चों में अधिक रक्तचाप की समस्या न के बराबर थी और कुछ बच्चों में केवल 1.28 प्रतिशत उच्च रक्तचाप था। उन्होंने अधिक वजन एवं मोटापा उच्च रक्तचाप का मुख्य कारण माना।
उच्चरक्तचाप के रोगी 11 से लेकर 16 साल की उम्र के बच्चे सर्वाधिक थे। इनमें कुछ बच्चे दवाओं का सेवन भी कर रहे थे। जब ये पैदा हुए थे तो कम वजन वाले शिशु थे।
एक साल पश्चात इनका वजन तेजी से बढ़ा। ये बच्चे तीन घंटे से अधिक टीवी देखते थे और तीन घंटे से कम खेलते थे। इनमें से हर बच्चा महीने में तीन बार से अधिक फास्ट फूड का सेवन करते हैं।