भीमबेटका: पाषाणयुग से पत्थरों पर ठहरा हुआ है समय यहां...

संदीपसिंह सिसोदिया
मंगलवार, 8 अगस्त 2017 (13:25 IST)
भारतीय उपमहाद्वीप में मानव इतिहास की शुरूआत के कुछ ऐसे साक्ष्य मौजूद हैं जिन्हें आज भी जस का तस देखा जा सकता है। यहां आने पर एहसास होता है कि ऐसी भी जगह हो सकती हैं जो समय के थपेड़ों से अछूती है, यहां मानों समय लाखों वर्षों से ठहरा हुआ है। परंतु इस ठहराव को ध्यान से देखने पर पता चलता है कि यहां के पत्थरों पर मानव-विकास की निरंतर यात्रा के जीवंत चित्र उकेरे गए हैं। तो आइए आपको बताते हैं ऐसी ही एक अनोखी जगह के बारे में...  
ऐसी ही एक जगह है मध्यप्रदेश में राजधानी भोपाल के लगभग 45 किमी दूर भीम बेठिका या भीम बैटका (Rock Shelters of Bhimbetka) यह आदिम मनुष्यों का पुरापाषाणिक ( Paleolithic), आवासीय स्थल है। रातापानी वन्य अभ्यारण में स्थित इन प्राग-ऐतिहासिक शिलाओं में निर्मित गुफाओं व प्राकृतिक शैलाश्रयों (Rock Shelters) में हजारों साल पहले मानव के पाषाणयुगीन पूर्वज (Homo erectus) रहा करते थे। भीमबैटका आदि-मानव द्वारा बनाए गए शैल चित्रों और शैलाश्रयों के लिए प्रसिद्ध है।
 
यहां सैकड़ों शैलाश्रय हैं जिनमें लगभग 500 से अधिक शैलाश्रय चित्रों से सजाए गए हैं। सबसे अनोखे तो यहां शैलाश्रयों की अंदरूनी सतहों में उत्कीर्ण प्यालेनुमा निशान है जिनका निर्माण एक लाख वर्ष पुराना हुआ था। 
इस जगह को देखकर पता चलता है कि किस तरह से पूर्व पाषाण काल से मध्य ऐतिहासिक काल तक यह स्थान मानव गतिविधियों का केंद्र रहा। यहां हर जगह सामूहिक नृत्य, रेखांकित मानवाकृति, शिकार, पशु-पक्षी, युद्ध और प्राचीन मानव जीवन के दैनिक क्रियाकलापों से जुड़े चित्र मिलते हैं। सबसे आश्चर्य की बात है कि इन चित्रों में प्रयोग किए गए खनिज रंगों में मुख्य रूप से गेरुआ, लाल और सफेद हैं और कहीं-कहीं पीला और हरा रंग भी प्रयोग हुआ है, जो इतने हजार वर्षों बाद भी वैसे ही सजीव दिखाई देते हैं। 
इस जगह आ कर ही पता चलता है कि हजारों वर्षों से मनुष्य सामाजिक और संगठित और कला के प्रति आकर्षित रहा है, ये चित्र हज़ारों वर्ष पहले का जीवन तो दर्शाते हैं ही बल्कि बताते हैं कि कला का मानव विकास पर गहरा प्रभाव रहा है। यहां नित्य दैनिक जीवन की घटनाओं से लिए गए विषय जैसे सामूहिक नृत्य, संगीत, शिकार, घोड़ों और हाथियों की सवारी, आभूषणों तथा शहद जमा करने के बारे में हैं। 
 
इनके अलावा यहां उस समय के खतरों जैसे बाघ, सिंह, कुत्तों और घडियालों जैसे जानवरों को भी चित्रित किया गया है। जंगली सुअर, हाथियों और बैलों के विशाल चित्र यहां उनके विशाल आकार को दर्शाते हैं। इन चित्रों से उस समय की सामाजिक जीवन संरचना और मानव विकास को समझा जा सकता है। 
 
इस जगह को पहले पहल स्थानीय आदिवासियों द्वारा बुद्ध या महाभारतकालीन पांडवों की निशानी के तौर पर चिन्हित किया गया था। परंतु भारत के प्रसिद्ध पुरातत्‍व विशेषज्ञ डॉक्टर वीएस वाकणकर ने 1958 में नागपुर जाते समय इन चट्टानों को देखा और इन गुफाओं की खोज की थी। इस जगह पर बिखरे पुरातात्विक खजाने को देख उन्होंने पाया कि यहां मौजूद शैल चित्र (stone paintings) ऑस्ट्रेलिया के कालाहारी रेगिस्तान में मौजूद काकादू नेशनल पार्क, जहां बुशमैन गुफाओं और फ्रांस की लासकॉउक्स गुफाओं में भी ऐसे ही शैल चित्र मिले हैं। 
उनके प्रयास को सरकार ने भी मान्यता प्रदान की और इस जगह को पुरातात्विक विभाग ने संरक्षित किया। इन प्रयासो के बाद यूनेस्को ने 2003 में आदिमानव के इस पुरापाषाणिक शैलाश्रय को विश्व धरोहर का दर्जा दिया है। 
 
वैसे आधुनिक वैज्ञानिक पड़ताल जैसे कार्बन डेटिंग से इस और भी इशारा मिलता है कि भीम बैटका के प्राचीन मानव के संज्ञानात्मक विकास का कालक्रम विश्व के अन्य प्राचीन समानांतर स्थलों से हजारों वर्ष पूर्व हुआ था। तो इस रूप में यह स्थल मानव विकास का आरंभिक स्थान भी माना जा सकता है।
 
इस जगह को न सिर्फ इतिहास में रुचि रखने वाले लोग पसंद करते हैं बल्कि यहां युवाओं और पूरे परिवार को जंगल, पहाड़ों में ट्रैकिंग के अनुभव के साथ आदिमानव तथा मानव इतिहास के अनदेखे और अनजाने रहस्यों को जानने का मौका मिलेगा, और हां ऐसे पुरातात्विक चित्रों के साथ सेल्फी लेने का मौका दुनियाभर में सिर्फ कुछ ही जगह मिल सकता है। 
 
भीमबैका जाने से पहले कुछ खास बातें : यह स्थान भोपाल से 45 किमी की दूरी पर भोपाल-होशंगाबाद राजमार्ग पर रायसेन जिले में ओबेदुल्लागंज कस्बे से 9 किमी की दूरी पर है। यहां निजी वाहन से पहुंचा जा सकता है, इस समय मध्यप्रदेश में सड़कों की स्थिति अच्छी है परंतु 2 लेन होने से सावधानी से वाहन चलाएं। 
 
रातापानी वन्य अभ्यारण में होने से आपको यहां वाहन शुल्क और 50 रु प्रति व्यक्ति पर्यटक (100 रु विदेशी) शुल्क भी देना होगा, गाइड का शुल्क इसमें अलग है और गाइड जरूर करें। याद रहे, यहां ऊपर कुछ भी खाने-पीने को नहीं मिलता परंतु भीमबैटका से पहले मप्र, पर्यटन का एक अच्छा रेस्ट्रां भी है। इसके अलावा पास में कई अच्छे ढाबे हैं। 
हां, सबसे महत्वपूर्ण बात, यहां किसी भी चट्टान को हाथ न लगाएं और न ही कूड़ा-करकट फैलाएं। इस विश्वधरोहर को अगले हजारों साल तक ऐसे ही बनाए रखने के लिए इतना तो हम कर ही सकते हैं। 

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