Magnificent MP का बचपन भूखा और बीमार है, प्रति 1000 में से 47 बच्चे नहीं मना पाते पहला जन्मदिन

विकास सिंह
गुरुवार, 17 अक्टूबर 2019 (13:39 IST)
स्वर्णिम से मैग्नीफिसेंट मध्यप्रदेश बनाने की चर्चा इस समय खूब हो रही है। मैग्नीफिसेंट यानी शानदार मध्य प्रदेश में लोगों को रोजगार उपलब्ध कराने और प्रदेश में निवेश बढ़ाने के लिए कमलनाथ सरकार करोड़ों रुपए खर्च कर भव्य निवेशक सम्मेलन कर रही है, लेकिन स्वर्णिम से शानदार मध्यप्रदेश का बचपन आज भी भूखा और कुपोषण के चलते बीमार है।

मंगलवार को आई ग्लोबल हंगर इंडेक्स की रिपोर्ट में भारत की रैंकिंग पाकिस्तान से भी नीचे आने से एक बार फिर मध्यप्रदेश में बच्चों के कुपोषण और भूख को चर्चा के केंद्र में ला दिया है। भूख के चलते आज प्रदेश में 5 साल से नीचे के बच्चे कुपोषण का शिकार हो रहे हैं। 
 
प्रदेश में हजारों करोड़ रुपए खर्च करने के बाद भी कुपोषण प्रति एक हजार में से 47 बच्चों की मौत की वजह बन रहा है, जो कि देश में सबसे ज्यादा है। जिसमें ग्रामीण इलाकों में तो आधे से अधिक बच्चे यानी 51 फीसदी अपना पहला जन्मदिन नहीं मना पाते हैं। वहीं भारत में इसका औसत आंकड़ा प्रति 1000 में 33 बच्चों की मौत का है।
 
आंकड़े चौंकाने वाले : बच्चों की मौत का यह आंकड़ा भारत सरकार के सैंपल रजिस्ट्रेशन सिस्टम के SRS BULLETIN का है। इन आंकड़ों का उल्लेख करना इसलिए भी जरूरी है क्योंकि ग्लोबल हंगर इंडेक्स (जीएसआई) में भारत जिस 102वें स्थान पर है, उसे बनाने के लिए 2014-2018 के बीच विभिन्न देशों में कुपोषित बच्चों की आबादी, उनमें लंबाई के अनुपात में कम वजन या उम्र के अनुपात में कम लंबाई वाले 5 साल तक के बच्चों का प्रतिशत और 5 साल तक के बच्चों की मृत्यु दर पर आधरित है। 5 साल के बच्चों का कम वजन का होना कुपोषण की सबसे बड़ी पहचान है।

स्वास्थ्य और विशेषकर बाल स्वास्थ्य के मध्य प्रदेश के आंकड़े बेहद चौंकाने वाले हैं। स्वास्थ्य विभाग के हेल्थ बुलेटिन के मुताबिक प्रदेश में पांच साल में कुपोषण के चलते नवजात शिशुओं की मौत का आंकड़ा चार गुना बढ़ गया है। 

पिछले 5 सालों में प्रदेश में 94,699 नवजात बच्चों ने दम तोड़ दिया है। इसके साथ ही मध्य प्रदेश में पिछले 5 सालों में तकरीबन साढ़े नौ लाख ऐसे मामले सामने आए हैं, जिनमें बच्चे जन्म से ही कुपोषण का शिकार हैं। यह ऐसे बच्चे हैं जिन्हें मां के गर्भ में पर्याप्त पोषण नहीं मिला क्योंकि उनकी मां को भी गर्भावास्था में पर्याप्त पोषण नहीं मिला।
 
नवजात शिशुओं के स्वास्थ्य का सीधा संबंध मां से होता है। प्रदेश मातृत्व मृत्यु के मामले में भी काफी संवेदनशील है। मध्य प्रदेश के स्वास्थ्य विभाग के हेल्थ बुलेटिन के मुताबिक राज्य में पिछले 5 सालों में 6,712 माताओं ने प्रसव संबंधी कारणों के चलते अपना जीवन खो दिया।
 
मातृत्व मृत्यु दर भी कम नहीं : यह आंकड़े इसलिए हैरान कर देने वाले हैं क्योंकि पिछले 5 सालों में मातृत्व मृत्यु दर 663 से बढ़कर 1897 तक पहुंच गई है। मध्य प्रदेश के स्वास्थ्य विभाग के हेल्थ बुलेटिन के मुताबिक वर्ष 2013-14 में 663, वर्ष 2014-15 में 1149, वर्ष 2015-16 में 1612, वर्ष 2016-17 में 1391 और 2017-18 में 1897 माताओं ने प्रसव के समय दम तोड़ दिया।
बच्चों के सेहत सुधारना बड़ी चुनौती : मध्य प्रदेश में कमलनाथ सरकार के समाने सबसे बड़ी चुनौती बच्चों की सेहत सुधारना है। मध्य प्रदेश में जन्म लेने वाले 14 प्रतिशत बच्चे जन्म के समय से कुपोषण का शिकार हैं और जन्म के समय उनका वजन ढाई किलो से कम है। 2017 में मध्य प्रदेश में शिशु मृत्यु दर 47 है, जो कि एक बड़ी चुनौती है।
 
कुपोषण के चलते मध्य प्रदेश के बच्चों ठिगनापन एक बड़ी चुनौती के रूप में सामने आया है। एक रिपोर्ट के मुताबिक 205-16 तीन साल तक की उम्र के ऐसे 42 फीसदी बच्चे थे, जिनकी ऊंचाई उम्र के अनुसार नहीं थी। इसी तरह 5 साल की उम्र के 57.9 फीसदी बच्चों का वजन उनकी उम्र के अनुसार कम था।
 
इसके साथ ही बच्चों का टीकाकरण भी एक चुनौती के रूप में है। टीकाकरण में प्रदेश की हालत कितनी दयनीय है इसको इससे समझा जा सकता है कि प्रदेश अब भी देश के 10 पिछड़े राज्यों में आठवें स्थान पर है।
 
स्वास्थ्य विभाग की रिपोर्ट के मुताबिक 2018 में केवल 79 प्रतिशत बच्चों का पूर्ण टीकाकरण हुआ। यह हालात तब हैं जब अध्य्यन बताते हैं कि पूर्ण टीकाकरण से बच्चों की मौतों को 65 फीसदी तक कम किया जा सकता है। 
 
मध्य प्रदेश में स्वास्थ्य और बाल स्वास्थ्य को लेकर काम करने वाले संगठन विकास संवाद से जुड़े सामाजिक कार्यकर्ता राकेश मालवीय वेबदुनिया से बातचीत में कहते हैं कि प्रदेश में गरीबी और कुपोषण दोनों एक दूसरे से जुड़े विषय हैं। 
 
मालवीय कहते हैं कि एक ओर तो प्रदेश में स्वर्णिम मध्य प्रदेश बनाने ने की बात कहते हैं तो दूसरी ओर प्रदेश में भूख से मौत की खबरें सामने आती हैं। वह कहते हैं कि नीति आयोग के आंकड़ों के मुताबिक मध्य प्रदेश गरीबी में नीचे से दूसरे पायदान पर है। वह कहते हैं कि गरीबी के चलते ही कुपोषण जैसी समस्या पर रोक नहीं लगाई जा सकी है।
 

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