जिमी मगिलिगन सेंटर के पर्यावरण संवाद में बोले कई पर्यावरण प्रेमी वक्ता
देव कुमार वासुदेवन, अम्बरीश केला, अविनाश सेठी, संजय व्यास और जयवंत दाभाडे
विश्व पर्यावरण दिवस 2021 के मौके पर जिमी मगिलिगन सेंटर फॉर सस्टेनेबल डेवलेपमेंट द्वारा आयोजित पर्यावरण संवाद के 5वें दिन मालवा में पर्यावरण संरक्षण पर कई वक्ताओं ने अपनी बात रखी। इन वक्ताओं में देव वासुदेवन, अम्बरीश केला, अविनाश सेठी, संजय व्यास और जयवंत दाभाडे शामिल थे। कार्यक्रम की आयोजक सेंटर की निदेशिका जनक पलटा मगिलिगन ने सभी का स्वागत किया।
इंदौर के वृक्ष मित्र, अम्बरीश केला ने कहा, हमारी कम्पनी की साईनटेक फाउंडेशन ने संस्थाओं, सरकार और बहुत सारे लोगों के साथ मिलकर इंदौर के आसपास कस्तूरबाग्राम, सनावदिया की पहाड़ी और ट्रेंचिंग ग्राउंड, होमगार्ड, रेड क्रॉस, पुलिस फायर स्टेशन, बीएसएफ परिसर, पशु चिकित्सा कॉलेज, अस्पतालों, बाईपास बीआरटीएस, पीथमपुर, सांवेर औद्योगिक क्षेत्र, सरकारी और निजी दोनों स्कूल जैसे बाल विनय मंदिर, विवेकानंद स्कूल, डेली कॉलेज, आईटीआई, डीएवीवी सिटी फॉरेस्ट बिचोली, ऑक्सम हिल आदि इलाकों में जंगलों को बढावा दिया। उन्होंने बताया कि पर्यावरण संरक्षण के लिए उनका काम लगातार चल रहा है।
इंदौर इन्फोबीन्स के संचालक अविनाश सेठी ने बताया कि इन्फोबीन्स में 2008 में अंबरीश केला से प्रेरित होकर वृक्षारोपण शुरू किया था, उसके बाद हर साल 1000 पेड़ लगाते आ रहे हैं और अब यह मिशन बन गया है।
उन्होंने बताया कि सीएसआर के एक भाग के रूप में हम खंडवा क्षेत्र के जंगल में और इंदौर शहर में सिटी फॉरेस्ट, बिचौली-मर्दना में पेड़ लगा रहे हैं।
उज्जैन वाले सोशल ग्रुप के संस्थापक संजय व्यास और जयवंत दाभाडे पिछले 4 वर्षों से उज्जैनवाले फेसबुक ग्रुप के माध्यम में समाज के विभिन्न क्षेत्रों में सामयिक परिस्थितियों के चलते इको सिस्टम की सुरक्षा के लिए जन जागरण और वृक्षारोपण का काम कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि वर्षा के जल के संरक्षण से जल स्त्रोतों को भी जीवित करने का प्रयास चल रहा है। आईआईटी मुंबई द्वारा बनाई गई सॉइल बॉयो तकनीक सीवेज ट्रीटमेंट भी कर रहे है।
महू निवासी देव कुमार वासुदेवन ने जीवजन्तु, वन्य-जीवन संरक्षण को लेकर अपनी वेदना व्यक्त करते हुए कहा कि पूरे भारत और दुनिया में लगातार हो रहे जीवजन्तु- आवासों पशु- पक्षियो के आवास का विनाश चिंता का एक बड़ा कारण है। चाहे इंदौर हो या गुवाहाटी या श्रीनगर या कन्याकुमारी या पुणे। राष्ट्रीय उद्यानों के बीच से निकलने वाली सड़कों और रेलवे के अनियंत्रित निर्माण से वन्य प्राणी बहुत असुरक्षित हो जाते है और बाघ और हाथियों के लिए गलियारे नष्ट हो रहे हैं।