मध्यप्रदेश में पोषण आहार योजना में कथित घोटाले के बाद कुपोषण पर आंख खोल देने वाली रिपोर्ट!

विशेष प्रतिनिधि
गुरुवार, 8 सितम्बर 2022 (17:00 IST)
मध्यप्रदेश में पोषण आहार का मामला इस वक्त भोपाल से लेकर दिल्ली तक चर्चा के केंद्र में है। कैग रिपोर्ट में प्रदेश में पोषण आहार योजना में बड़े पैमाने पर गड़बड़ी का खुलासा हुआ है। गरीब बच्चों, गर्भवती महिलाओं को मिलने वाला पोषण आहार मध्यप्रदेश में भष्टाचार की भेंट चढ़ गया है। दावा किया जा रहा है कि महिला बाल विकास विभाग में पोषण आहार मामल में 100 करोड़ से अधिक का घोटाला किया गया है। जब पोषण आहार को लेकर सियासत इतना गर्म है तो यह समझना भी जरूरी है कि आखिर पोषण आहार की योजना क्या है और क्या प्रदेश में पोषण आहार को लेकर सरकार लाख दावे करती है उसकी धरातल पर सच्चाई क्या है?    ALSO READ: मध्यप्रदेश के पोषण आहार मामले की दिल्ली तक गूंज,मनीष सिसोदिया ने PM मोदी से पूछे सवाल, सरकार बोलीं, नहीं हुआ कोई घोटाला
पोषण आहार देने की क्या है योजना?- मध्यप्रदेश में 453 बाल विकास परियोजनाओं के अंतर्गत कुल 84 हजार 465 आंगनवाडी केंन्द्र एवं 12670 मिनी आंगनवाडी केन्द्र हैं। इन आंगनवाड़ियों में लगभग 80 लाख हितग्राहियों को पोषण आहार दिया जाता है। केंद्र सरकार के मानदंडों के अनुसार राज्य सरकार आंगनवाडी केन्द्रों में 06 माह से 06 वर्ष तक के बच्चों एवं गर्भवती/ध्धात्री माताओं अतिकम वजन के बच्चों को प्रति हितग्राही प्रतिदिन पोषण आहार देने का प्रावधान है।
 
कुपोषण को दूर करने के 0 से 06 वर्ष तक के बच्चों एवं गर्भवती एवं धात्री माताओ के पोषण आहार देने के पीछे 0-6 वर्ष के बच्चों में ठिगनेपन में कमी लाना, बच्चों औऱ गर्भवती महिलाओं में एनीमिया के कमी को दूर करना और जन्म लेने वाले बच्चों में कमी लाना है।
 
दावों को आईना दिखती सतना की सोमवती- प्रदेश में जहां सरकार पोषण आहार के माध्यम से कुपोषण दूर करने का दावा करती है लेकिन कुपोषण को लेकर हालात कितनी खराब है इसको सतना जिले के मझगवां की सोमवती के मामले से समझा जा सकता है। सतना के मझगवां ब्लॉक के ग्राम सुहागी के आदिवासी बस्ती सुरंगी टोला में रहने वाली सात साल की बच्ची सोमवती इस कदर कुपोषण का शिकार है कि वो ठीक से चल तक नही पा रही हैं। आदिवासी परिवार से आने वाली सोमवती इस कदर कुपोषण का शिकार है कि वह ठीक से खड़ी भी नहीं हो सकती है। 

शिशु मृत्यु दर में मध्यप्रदेश नंबर-1- राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के 2019 से 2021 के आंकड़ों के मुताबिक प्रदेश में हर पांच बच्चे में से एक बच्चा एनीमिक का शिकार है। आंकड़ों के मुताबिक प्रदेश में एनीमिक बच्चों की संख्या 72.7 फीसदी है। मई में जारी किये गए सैंपल रजिस्ट्रेशन सिस्टम-2022 के अनुसार शिशु मृत्यु दर में के मामले में भी मध्य प्रदेश में देश में पहले नंबर पर है। इसके अनुसार मध्यप्रदेश में जन्म लेने वाले हर एक हजार बच्चों में से 43 बच्चे आज भी जन्म के एक साल के अंदर ही दम तोड़ देते हैं। यह राष्ट्रीय औसत 28 से ज्यादा है। मध्यप्रदेश में 2016 से 2018 के बीच करीब 57 हजार बच्चों की कुपोषण से मौत हुई थी।

कुपोषण पर 'सरकार' का दावा?- मध्यप्रदेश में भले ही कुपोषण की समस्या साल दर साल विकराल होती जा रही है, लेकिन सरकार के दावे अपने अलग है। पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कुपोषण को दूर करने के लिए मध्यप्रदेश की तारीफ की। मन की बात कार्यक्रम में प्रधानमंत्री ने कहा कि “आप कल्पना कर सकते हैं ? क्या कुपोषण दूर करने में एक संगीतज्ञ दल का भी इस्तेमाल हो सकता है। मध्यप्रदेश के दतिया जिले में मेरा बच्चा अभियान में इसका सफलतापूर्वक प्रयोग किया गया। इसके तहत जिले में भजन कीर्तन आयोजित हुए। इसमें पोषण गुरू कहलाए जाने वाले शिक्षकों को बुलाया गया। एक मटका कार्यक्रम भी हुआ। इसमें महिलाएं आंगनबाड़ी कैंपेन में मुट्ठी भर अनाज लेकर आती हैं.''

मध्य प्रदेश में स्वास्थ्य और बाल स्वास्थ्य को लेकर काम करने वाले संगठन विकास संवाद से जुड़े सामाजिक कार्यकर्ता राकेश मालवीय ‘वेबदुनिया’ से बातचीत में कहते हैं कि अगर कुपोषण को लेकर सरकार के दावे इतना सही है तब तो कुपोषण कम होना चाहिए, लेकिन सच्चाई यह है कि प्रदेश में लगातार कुपोषण के केस बढ़ते जा रहे है। इसका मतलब कही न कही पोषण आहार का वितरण सहीं ढ़ंग से नहीं हो रहा है और वह जरूरतमंदों तक नहीं पहुंच पा रहा है। हलांकि मध्यप्रदेश में कुपोषण की समस्या गरीबी से भी जुड़ी है और प्रदेश के पिछड़े इलाकों में ऐसे केसों की संख्या अधिक देखने को मिलती है। 

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