Tara Devi Shaktipeeth Shajapur: हिन्दू धर्म में मां तारा देवी अष्टादश महाविद्याओं में से द्वितीय महाविद्या हैं। तारा का अर्थ है, तारने वाली या पार कराने वाली। शाजापुर जिला मुख्यालय से करीब 15 किलोमीटर दूर ग्राम बिजाना में सर्वसिद्ध बगलामुखी मां तारा शक्तिपीठ है। इस मंदिर में श्रीकुल और काली कुल की अष्टादश महाविद्याएं स्वयंभू विराजित हैं। आबादी से दूर यह मंदिर अपने आसपास प्राकृतिक सौन्दर्य को भी समेटे हुए है। यहां हिरण कुलांचे भरते हुए देखे जा सकते हैं। नील गाय समेत अन्य वन्यजीव भी इस इलाके में विचरण करते हैं। इस मंदिर की सबसे महत्वपूर्ण पूजा है ब्रह्मास्त्र विद्या अनुष्ठान, जो कि बहुत ही प्राचीन और गोपनीय है।
मंदिर के प्रमुख पुजारी पंडित कैलाश शर्मा कहते हैं कि प्रकृति और मनुष्य के बीच बहुत गहरा संबंध है। दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं। ऐसे ही अद्भुत प्राकृतिक सौंदर्य के मध्य मां भगवती अष्टादश महाविद्याओं के रूप में स्वयंभू विराजित हैं। मालवा प्रांत का यह स्थान कुमारिका वन कहलाता है। इस पावन धरा पर शिव-पार्वती विवाह के समय का सप्तपदी स्थल आज भी दर्शनीय है। कुमारिका वन का शिव पुराण में भी उल्लेख है।
नित्य वंदनीय हैं महाविद्याएं : पंडित शर्मा के अनुसार श्रीकुल की 9 और काली कुल की 9 महाविद्याएं यहां अनादिकाल से विराजित हैं। यह मंदिर कितना प्राचीन है, इसका कोई लिखित प्रमाण तो नहीं है, लेकिन 400-500 साल पहले यहां जटावाले महात्मा माताजी की सेवा-पूजा करते थे। तब यह मंदिर वर्तमान स्वरूप से अलग था। बाबा का कहना था कि आने वाले समय में इस स्थान पर मेला लगेगा। शर्मा कहते हैं कि महाविद्याओं की साधना प्रत्येक गृहस्थ कर सकता है। इन देवियों की पूजा के लिए तिथि, वार, नक्षत्र आदि देखने की आवश्यकता नहीं होती। महाविद्याएं नित्य वंदनीय हैं, इनकी आराधना से मनुष्य को धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्त होती है।
मंदिर के पुजारी पंडित शर्मा कहते हैं कि 10 महाविद्याओं में द्वितीय स्थान पर तारा महाविद्या आती हैं। भक्तों का संकट दूर करने के लिए कई बार इनका प्रादुर्भाव हुआ है। पुराण कथा के अनुसार जब भगवान शिव ने हलाहल विष का पान किया था तब भगवती महाविद्या ने महातारा का रूप धारण किया था। ऐसी भी एक कथा प्रचलित है कि देवी ने भगवान शिव को शिशु के रूप में अमृतपान कराया था।
पंडित शर्मा कहते हैं कि तारा महाशक्ति पीठ के अलावा इस क्षेत्र में और भी महातीर्थ हैं। कुमारिका वन के ईशान कोण में भगवान श्री मनकामनेश्वर महादेव, श्री जगतभैरव तथा दक्षिण में श्री तक्षक नागराज का स्थान दर्शनीय है। यहां देवी पार्वती ने स्वयं शिवलिंग की स्थापना की थी। तारा महाशक्ति पीठ में अष्टदश महाविद्याओं के अलावा भगवान विष्णु की मूर्ति भी विराजित है। ऐसी मान्यता है कि भगवान विष्णु की आराधना से प्रसन्न होकर मां बगलामुखी प्रकट हुई हैं। मंदिर परिसर में हनुमान जी और भैरव का मंदिर भी है।
पुजारी शर्मा कहते हैं कि महाविद्याओं की आराधना को ही तंत्र कहा गया है। चूंकि ये महाविद्याएं शवासन पर विराजित हैं, इसलिए इन्हें तंत्र की महाविद्या भी कहा जाता है। इस मंदिर तक पहुंचना कठिन तो है, लेकिन मुश्किल नहीं है। शाजापुर तक आप आसानी से पहुंच सकते हैं, लेकिन वहां से सिर्फ निजी वाहन के जरिए ही आप मंदिर तक पहुंच सकते हैं। 3-4 किलोमीटर का रास्ता कच्चा और पहाड़ी है। यदि आप रोमांच में भरोसा रखते हैं तो आप मंदिर तक का सफर कर सकते हैं। क्योंकि महाशक्तिपीठ आस्था का केन्द्र तो है ही यहां प्राकृतिक सौन्दर्य भी कम नहीं है।
क्या है ब्रह्मास्त्र विद्या अनुष्ठान : मंदिर में ब्रह्मास्त्र विद्या अनुष्ठान किया है। पुजारी शर्मा के अनुसार यह अनुष्ठान अति प्राचीन और गोपनीय है। इस विद्या के अनुष्ठान से आसुरी, दानवी और राक्षसी प्रवृत्तियों पर अंकुश लगता है साथ ही शत्रुओं का भी विनाश होता है। मेघनाद ने हनुमान जी पर इसी विद्या का प्रयोग किया था। ब्रह्माजी ने इस विद्या को सनतकुमार को दिया था। उनके माध्यम से यह विद्या अन्य लोगों में ट्रांसफर हुई।
जारी है मंदिर का निर्माण कार्य : पुजारी कैलाश शर्मा कहते हैं कि भगवती के पाषाण से निर्मित भव्य प्रासाद का निर्माण कार्य प्रगति पर है तथा प्रांगण में श्री नीमकरौली बाबाजी महाराज, श्री हनुमान जी, श्री राम दरबार मंदिर का कार्य भी प्रारंभ हो गया है। भगवती बगलामुखी तारा के मंदिर के निर्माण कार्य को अनेकों कोटि चंडी यज्ञों के समान ही माना गया है। निर्माण के पश्चात मंदिर का शिखर दूर से देखने पर देवी के मणिमंडित मुकुट की तरह शोभायमान होगा। मंदिर का प्रत्येक स्तंभ अनुष्ठान के आधारभूत मंत्रों का ही स्वरूप होगा। मंदिर में पत्थर पर महाविद्याओं की महिमा अंकित होगी, जो मंत्रदृष्टा ऋषियों के ज्ञान के पराक्रम का दर्शन कराएगी। ऐसा भगवती बगलामुखी तारा का यह मंदिर भारतवर्ष का विशिष्ट शक्तिपीठ होकर प्रकाशमान होगा।