EXCLUSIVE : ‘अल्पमत सरकार’ का अभिभाषण पढ़ेंगे राज्यपाल , फ्लोर टेस्ट के राज्यपाल के पत्र के बाद उठे सवाल

विकास सिंह
रविवार, 15 मार्च 2020 (11:45 IST)
भोपाल। मध्यप्रदेश में पिछले पंद्रह दिन से जारी पॉलिटिकल ड्रामा अब धीमे धीमे अपने क्लाइमेक्स के ओर बढ़ रहा है। सोमवार से शुरु हो रहे बजट सत्र के पहले दिन ही राज्यपाल के फ्लोर टेस्ट कराने के मुख्यमंत्री कमलनाथ को लिखे पत्र के बाद अब सबकी निगाहें सदन की ओर लग गई है। राज्यपाल लालजी टंडन के फ्लोर टेस्ट कराने के पत्र के बाद संवैधानिक स्थिति को समझने के लिए वेबदुनिया ने संविधान विशेषज्ञ और लोकसभा के पूर्व महासचिव सुभाष कश्यप से इस पूरे मामले पर विस्तृत बातचीत की।
 
राज्यपाल के अभिभाषण पर सवाल – राज्यपाल लालजी टंडन ने मुख्यमंत्री को लिखे अपने पत्र में लिखा है कि “मुझे प्रथमदृष्टया विश्वास हो गया है कि आपकी सरकार ने सदन का विश्वास खो दिया है और आपकी सरकार अल्पमत में है”। ऐसे में सवाल यह उठ रहा है कि क्या राज्यपाल अपना अभिभाषण पढ़ेंगे क्योंकि राज्यपाल के अभिभाषण में सरकार में उस वर्ष अपनाई जाने वाली नीतियों एंव कार्यक्रमों की रूपरेखा (एक तरह से सरकार के कामकाज का रोडमैप) प्रत्तुत की जाती है। राज्यपाल का अभिभाषण सरकार के द्धारा तैयार किया जाता है। 
राज्यपाल के अभिभाषण को लेकर वेबदुनिया ने संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप से सवाल किया तो उन्होंने कहा कि राज्यपाल के अभिभाषण से ही सदन की कार्यवाही शुरु होगी अब यह देखना होगा कि क्या अभिभाषण सरकार राज्यपाल को देती है और उसमें से कितना वह पढ़ते है और कितना छोड़ते है यह उनके विवेक पर है। बातचीत में सुभाष कश्यप कहते हैं कि ऐसे बहुत से उदाहरण है कि जब राज्यपालों ने अभिभाषण में से कोई अंश पढ़ा और कोई छोड़ दिया।
 
राज्यपाल के संदेश पर विचार बाध्यकारी,निर्णय में स्वतंत्र –वेबदुनिया से बातचीत में संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप कहते हैं कि संविधान के मुताबिक राज्यपाल किसी भी विषय पर संदेश भेज सकते है और सदन (विधानसभा) को उनके संदेश पर तुरंत विचार करना चाहिए। वह कहते हैं कि राज्यपाल के संदेश पर विचार करने के लिए सदन बाध्य है लेकिन वह क्या निर्णय लेता है यह पूरी तरह सदन के ऊपर है। वह कहते हैं कि यह पूरी तरह सदन पर निर्भर है कि वह राज्यपाल के संदेश को मानती है या नहीं मानती है। 
 
वेबदुनिया से बातचीत में सुभाष कश्यप साफ कहते हैं कि राज्यपाल के संदेश पर विचार करना सदन के लिए बाध्यकारी है, निर्णय क्या लें यह सदन पर निर्भर है। वह कहते हैं कि राज्यपाल सदन के निर्णय पर अंकुश नहीं लगा सकते है कि वह क्या निर्णय लें। वह कहते हैं संविधान साफ कहता है कि राज्यपाल किसी भी विषय पर सदन को संदेश भेज सकते है और राज्यपाल के भेजे गए संदेश पर सदन को तुंरत विचार करना चाहिए। 
 
वेबदुनिया से बातचीत में सुभाष कश्यप कहते है कि सदन की कार्यवाही चलाने के लिए स्पीकर का दायित्व है। वह कहते हैं कि मध्यप्रदेश की वर्तमान राजनीतिक हालातों के बाद इतना तो तय है कि बहुमत का निर्णय अब सदन में ही होगा। वह कहते हैं कि अगर सरकार फ्लोर टेस्ट नहीं पास कर पाती है उसको अपना इस्तीफा देना ही होगा। 
 

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