आदिवासी बहुल अलीराजपुर जिले के मोरी फलिया गांव में संपन्न शादी में शामिल मेहमानों को विदा करने में व्यस्त मौर्य हालांकि ज्यादा बातचीत नहीं कर सके। लेकिन विवाह समारोह में शामिल स्थानीय लोगों ने बताया कि शादी की रस्में जनजातीय परम्पराओं के मुताबिक तीन दिन तक चलीं और मौर्य ने एक मंडप के नीचे अपनी तीनों प्रेमिकाओं से एक साथ फेरे लिए।
चश्मदीदों ने बताया कि शादी में शामिल मेहमानों ने ढोल और मांदल (आदिवासियों का पारम्परिक बाजा) की थाप पर जनजातीय शैली का नृत्य कर जोरदार जश्न मनाया। स्थानीय लोगों के मुताबिक आदिवासियों के मांगलिक कार्यों में एक दम्पति के रूप में शामिल होने की सामाजिक मान्यता हासिल करने के लिए इस समुदाय के हर जोड़े के लिए जरूरी है कि पहले वे जनजातीय रीति-रिवाजों के अनुसार विवाह रचाएं।