प्याज...। प्याज भले ही इंसान के आंखों में आंसू लाता है, लेकिन प्याज के बिना सब्जी में मजा भी नहीं आता है। इस प्याज ने कई बार पार्टियों को हराया और बड़े-बड़े राजनीतिज्ञों को रुलाया है। मध्यप्रदेश सरकार को भी किसान आंदोलन के बाद किसानों से प्याज खरीदी करना पड़ रही है। मंडियों में इन प्याजों को समर्थन मूल्य पर खरीदा भी जा रहा है। सरकार के सामने समस्या यह भी है कि कितना प्याज खरीदे, उसे कहां खपाए। पिछले साल ही सरकार को इन प्याजों ने करोड़ों का नुकसान करवाया था। कभी आम आदमी को अपने चढ़ते भावों से पसीना लाने वाला प्याज आज सड़कों पर बिखरा पड़ा है। ये फोटो इंदौर के पोलोग्राउंड के हैं।
हालात यह हैं कि सरकार ने प्याज की खूब खरीदी तो कर ली, लेकिन उसके रखरखाव की सही व्यवस्था भी नहीं है। बंपर पैदावार से हालात ये हैं कि सड़कों पर प्याज बिखरे पड़े हैं और कोई उठाने वाला नहीं है। मंडियों में लाखों टन प्याज खुले में पड़े हैं। इन प्याजों को शायद बारिश में खराब होने का इंतजार है। सरकार गिराने वाले प्याज आज सड़कों पर बिखरे पड़े हैं।
1998 में अटलबिहारी वाजपेयी की सरकार थी तो इन प्याजों ने खूब रुलाया था। अटलजी ने कहा भी कि जब कांग्रेस सत्ता में नहीं रहती तो प्याज परेशान करने लगता है। शायद उनका इशारा था कि कीमतों का बढ़ना राजनीतिक षड्यंत्र है। उस समय दिल्ली प्रदेश में भाजपा की सरकार थी और विधानसभा चुनाव सिर पर थे। तब प्याज के असर से बचने के लिए सरकार ने कई तरह की कोशिशें कीं, लेकिन दिल्ली में जगह-जगह प्याज को सरकारी प्रयासों से सस्ते दर पर बिकवाने की कोशिशें ऊंट के मुंह में जीरा ही साबित हुईं।
प्याजों की बढ़ती कीमतों का खामियाजा भाजपा को भुगतना पड़ा। जब चुनाव हुआ तो मुख्यमंत्री सुषमा स्वराज के नेतृत्व वाली भाजपा बुरी तरह हार गई। शीला दीक्षित दिल्ली की मुख्यमंत्री बनीं, लेकिन 15 साल बाद प्याज ने उन्हें भी रुला दिया। अक्टूबर 2013 को प्याज की बढ़ी कीमतों पर सुषमा स्वराज की टिप्पणी थी कि यहीं से शीला सरकार का पतन शुरू होगा। वही हुआ। भ्रष्टाचार के साथ महंगाई का मुद्दा चुनाव में एक और बदलाव का साक्षी बना।
बात प्याज के उत्पादन और खपत की नहीं, बात सरकार के इंतजामों की है। जब पैदावार बंपर होती है तो सरकार की लचर व्यवस्थाएं इसे संभाल नहीं पाती हैं और जब इन चीजों के दाम बढ़ते हैं तो उन्हें काबू में करना भी सरकार को नहीं आता। इसका खामियाजा आम जनता को भुगतना पड़ता है। जरूरत है इन उपजों के उचित रखरखाव की ताकि इनके बढ़ते दाम आम जनता की जेब पर भारी न पड़ें।