करीब 50 साल पहले उत्तराखंड के चमोली जिले( उस समय उत्तरप्रदेश) में जंगलों को बचाने के लिए एक अभियान शुरू हुआ था चिपको आंदोलन। चिपको आंदोलन में पेड़ों को काटने से बचाने के लिए लोग पेड़ों से चिपक जाते थे, चिपको आंदोलन का इतना व्यापक असर हुआ कि केंद्र सरकार को जंगलों को बचाने के लिए वन संरक्षण अधिनियम(कानून) बनाना पड़ा।
आज 50 साल बाद एक बार फिर मध्यप्रदेश के बालाघाट जिले में पेड़ों को कटने से बचाने के लिए एक बार फिर अपनी तरह का ‘चिपको आंदोलन’ शुरु हुआ है। दरअसल बालाघाट शहर के बाहरी इलाके में डेंजर रोड के नाम से अपनी हरियाली के लिए प्रसिद्ध सड़क को अब जिला प्रशासन बायपास के रूप में विकसित करने जा रहा है। इसके लिए जंगल के बीच से गुजरने वाली डेंजर रोड को नए सिरे से बनाने के लिए बड़े पैमाने पर पेड़ों को काटने की तैयारी की जा रही है।
प्रशासन के इस फैसले के विरोध में शहर के लोग विरोध में खड़े हो गए हैं और जंगल बचाने के लिए शुरू किया कैंपेन अब तेजी से रफ्तार पकड़ रहा है। पेड़ों को बचाने के लिए इस कैंपने अपने आप में अनोखा इसलिए क्योंकि यहां बांसुरी से लेकर पोस्टर और पेंटिंग बनाने के साथ लोग अपना विरोध जताने के लिए पेड़ों से चिपक रहे है।
पेड़ों को बचाने के लिए इस पूरे आंदोलन को शुरु करने वाले कलाकार धनेंद्र कावड़े बांसुरी बजाते हुए लोगों को इस आंदोलन से जोड़ने का प्रयास कर रहे है। 'वेबदुनिया' से बातचीत में बांसुरी के जरिए लोगों को पेड़ बचाने के लिए आगे आने की अनोखी पहल शुरु करने पर धनेंद्र कावड़े कहते हैं कि कोरोना के चलते सोशल डिस्टेंसिंग के चलते बड़ी संख्या में लोगों के पास जाना संभव नहीं था इसलिए उन्होंने बांसुरी का सहारा लिया वह हर दिन सुबह डेंजर रोड पर बांसुरी बजाकर लोगों का ध्यान इस ओर दिलाते है।
कलाकार धनेंद्र कावड़े जो मुंबई में थियेटर के क्षेत्र में एक बड़ा नाम है कहते हैं कि इस वक्त जब पूरी दुनिया कोरोना महामारी से परेशान होकर बड़े-बड़े शहरों के लोग अपने घरों में कैद रहने के लिए मजबूर है तब ऐसे इलाके जहां पर्यावरणीय सिस्टम अब भी बचा हुआ है वह कोरोना का असर बहुत ही कम है। ऐसे समय एक बायपास बनाने के लिए हजारों पेड़ों की बलि लेना कहां उचित है।
बालाघाट शहर के बाहरी हिस्से से वाली सड़क डेंजर रोड के नाम से जानी जाती है। डेंजर रोड अपने आसपास के घने पेड़ों, जीव जंतुओं और नदी से शहर के रिश्ते को बेजोड़ बनाती है। नाम भले ही डेंजर रोड हो,लेकिन ये इलाका दशकों से ये प्रकृति के अध्ययन की प्रयोगशाला रहा है और यह शहर के लिए ऑक्सीजोन का काम करती है।
शहर के मार्गों से गुजरने वाले भारी वाहनों से आए दिन होने वाले हादसों के मद्देनजर प्रशासन इस डेंजर रोड से होकर बाइपास के निर्माण का प्रस्ताव तैयार किया है,इसके लिए लगभग 3 हेक्टेयर क्षेत्र में करीब 700 पेड़ काटे जाएंगे। वहीं स्थानीय लोगों का दावा हैं कि सड़क निर्माण में छोटे और बड़े पेड़ों को मिलाकर करीब 15 हजार पेड़ काटे जाएंगे।
शहर की आबादी का एक बड़ा हिस्सा रोजाना यहां मॉर्निंग-इवनिंग वॉक के अलावा खुली हवा की आस में पहुंचता है। बाइपास की आहट ने उन्हें परेशान कर रखा है। यही वजह है कि प्रस्तावित बाइपास के प्लान के विरोध में शहर में अलग अलग तरीके से कैंपेन चलाया जा रहा है।
Save Danger road कैंपेन में बड़ी संख्या में युवा आगे आ रहे है और पेड़ों को बचाने के लिए वह पेड़ों से चिपक कर अपना अभी प्रतीकात्मक विरोध दर्ज कर रहे है। लोगों के पेड़ से चिपकने पर धनेंद्र कावड़े कहते हैं कि अगर प्रशासन ने अपने फैसले का वापस नहीं लेता है और अगर पेड़ काटने की कोशिश करता है तो वह और उनके साथ आंदोलन से जुड़े बहुत से लोग पेड़ों से चिपक जाएंगे लेकिन पेड़ों को काटने नहीं देंगे।
पर्यावरणविद् अभय कोचर कहते हैं कि विरोध सिर्फ पेड़ काटने का ही नहीं है,यह इलाका नैचुरल हैबीटेट होने की वजह से कई वन्य जीव भी यहां पाए जाते हैं। डेंजर रोड से वैनगंगा नदी महज 20 से लेकर 50 मीटर की दूरी पर है। बाढ़ की स्थिति में ये इलाका डूब क्षेत्र बन जाता है। ऐसे में बाइपास की जगह किसी दूसरे विकल्प पर विचार किया जाना चाहिए।
सोशल मीडिया पर भी बालाघाट से सटे इस जंगल को बचाकर किसी दूसरे तरीके से रास्ता निकालने की मुहिम जोर पकड़ रही है। धनेंद्र और उनके साथी सोशल मीडिया पर तरह तरह के वीडियो बनाकर इस आंदोलन को आगे बढ़ा रहे है। इसके साथ पेड़ों को बचाने के लिए युवा मैराथन का भी सहारा ले रहे है।
वहीं पेड़ों को बचाने की जिम्मेदारी जिस वन विभाग की है उसके अफसर इस पूरे मामले में बरसों पुराना रटा रटाया जवाब देते हुए कहते हैं कि जितने पड़े काटे जाएंगे दूसरी जगह उसे दुगने क्षेत्र में पड़े लगाएं जाएंगे। बालाघाट के डीएफओ अनुराग कुमार कहते हैं डेंजर रोड को बायपास बनाने के लिए सड़क के चौड़ीकरण करने के लिए पीडब्ल्यूडी को वन क्षेत्र की 2.64 हेक्टेयर की वन भूमि देने का फैसला किया गया है इसके बदले वन विभाग को जो भूमि मिलेगी उसी पर वृक्षारोपण किया जाएगा।
जंगलों के बीच से निकलने वाली डेंजर रोड की हरियाली और आबो हवा बरबस ही लोगों को अपनी ओर आकर्षित करती है। यही वजह है कि इस मूवमेंट में अब तेजी से लोग भी जुड़ते जा रहे है।