क्या आदिवासी हिन्दू नहीं हैं? भाजपा को क्यों लिखना पड़ा आमी आखा हिन्दू छे!

इंदौर। जनजाति गौरव दिवस (Birsa Munda Jayanti) से पहले भाजपा का एक पोस्टर काफी चर्चा में है। इस पोस्टर पर लिखा है- 'आमी आखा हिन्दू छे! अर्थात हम सब हिन्दू हैं। यह पोस्टर इंदौर से क्षेत्र क्रमांक 3 के विधायक आकाश विजयवर्गीय की ओर से लगाया गया है। 15 नवंबर को जनजाति गौरव दिवस के अवसर पर शहर के लालबाग मैदान पर एक बड़ा आयोजन किया जा रहा है। 
 
आदिवासी नायक बिरसा मुंडा के जन्मदिवस को आदिवासी समुदाय द्वारा जनजाति गौरव दिवस के रूप में मनाया जाता है। पोस्टर पर बिरसा मुंडा के अलावा अन्य आदिवासी नायकों के चित्र भी लगाए गए हैं। इनमें गोंड रानी दुर्गावती, टंट्‍या मामा, भीमा नायक, राणा पूंजा, खाज्या नायक, राघोजी भांगरे, रघुनाथ शाह, शंकर शाह, गोविंद गुरु, बुधु भगत, तिलका माझी, नग्या कातकरी, सिद्धो कान्हो मुर्मू, जतरा भगत और कोमराम भीम के चित्र लगाए गए हैं।
 
दरअसल, मध्यप्रदेश में आदिवासियों के लिए 47 सीटें आरक्षित हैं, जबकि कई ऐसी सीटें भी हैं, जहां समुदाय का वोट हार-जीत पर काफी असर डालता है। ऐसे में सत्तारूढ़ भाजपा की आदिवासी वर्ग पर विशेष तौर से निगाह है ताकि आगामी विधानसभा चुनाव में बहुमत के आंकड़े को हासिल किया जा सका।
 
2018 के चुनाव में भाजपा 109 सीटों पर सिमट गई थी। 114 सीटें जीतने वाली कांग्रेस ने राज्य में सरकार बनाई थी, लेकिन कुछ समय बाद कांग्रेस में हुई बगावत का लाभ भाजपा को मिला और एक बार फिर राज्य में भगवा पार्टी की सरकार बन गई।  
 
अब बड़ा प्रश्न यह है कि यदि आदिवासी हिन्दू हैं तो फिर 'आमी आखा हिन्दू छे!' लिखने की जरूरत ही क्यों पड़ी? एक सवाल यह भी है कि क्या आदिवासी वर्ग हिन्दू समुदाय से दूर होता जा रहा है? आदिम जाति कल्याण विभाग के विद्यालयों में 20 साल से भी ज्यादा समय तक सेवाएं दे चुके एक शिक्षक ने बताया कि आदिवासी वर्ग के सभी बच्चे अपने दस्तावेजों में धर्म के स्थान पर हिन्दू ही लिखते हैं, लेकिन पिछले कुछ समय से सामुदायिक स्तर पर जरूर कुछ बदलाव देखने को मिल रहे हैं।
 
शिक्षक बताते हैं कि अब इनके जन्मदिन और विवाह पत्रिकाओं पर बिरसा के मुंडा का चित्र और अन्य नायकों के चित्र दिखाई देने लगे हैं। साथ ही कुछ संगठनों की वजह से हिन्दू समाज और आदिवासियों के बीच पिछले कुछ समय से दूरियां जरूर बढ़ी हैं। 
 
पहले भी उठते रहे हैं सवाल : हालांकि यह पहला मौका नहीं है जब आदिवासियों के हिन्दू होने पर सवाल उठे हैं। इससे भी इस तरह के सवाल उठते रहे हैं। झारखंड के आदिवासी मुख्‍यमंत्री हेमंत सोरेन ने एक बार मीडिया से बातचीत करते हुए ही कहा था कि आदिवासी कभी भी हिन्दू नहीं थे। इसमें किसी भी तरह का कोई संदेह नहीं है। हम प्रकृति की पूजा करते हैं। 
 
आदिवासियों का ही एक तबका उन्हें सरना धर्म का बताता है। सरना से तात्पर्य ऐसे लोगों से है, जो प्रकृति की पूजा करते हैं। झारखंड में सरना धर्म मानने वालों काफी संख्‍या है। ये लोग किसी ईश्वर या मूर्ति की पूजा नहीं करते। सरना धर्म कोड के लिए झारखंड में एक विधेयक भी लाया गया था। इसके माध्यम सरना धर्म के लिए अलग कोड की मांग की गई थी। जैसे हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, जैन आदि धर्म के कॉलम होते हैं, इसी तरह सरना धर्म कोड की भी मांग की जा रही है। 
 
क्या कहता है संविधान : भारतीय संविधान में अनुसूचित जनजातियों यानी आदिवासियों को हिन्दू माना जाता है। हालांकि उनकी परंपराओं के चलते कई कानून ऐसे हैं, जो इन पर लागू नहीं होते। हिन्दू विवाह अधिनियम 1955, हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 और हिन्दू दत्तकता और भरण-पोषण अधिनियम 1956 की धारा 2 (2) और हिन्दू वयस्कता और संरक्षता अधिनियम 1956 की धारा 3 (2) इन पर लागू नहीं होती। 
 
इस संबंध में 2001 में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया था कि आदिवासी लोग हिंदू धर्म मानते हैं, लेकिन ये हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 2 (2) के दायरे से बाहर हैं। अत: इन्हें भारतीय दंड संहिता की धारा 494 (बहुविवाह) के तहत दोषी नहीं माना जा सकता। 2005 में भी एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि इस वर्ग के लोग अपने समुदाय की परंपरा के अनुसार विवाह कर सकते हैं। 

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