1.अन्नकूट महोत्सव : यह घटना श्री कृष्ण के बचपन की है। जब श्री कृष्ण ने इंद्र पूजा का विरोध करके गोवर्धन पूजा के रूप में अन्नकूट की परंपरा प्रारंभ की थी। कूट का अर्थ है पहाड़, अन्नकूट अर्थात भोज्य पदार्थों का पहाड़ जैसा ढेर अर्थात उनकी प्रचुरता से उपलब्धता। वैसे भी श्री कृष्ण-बलराम कृषि के देवता हैं। उनकी चलाई गई अन्नकूट परंपरा आज भी दीपावली उत्सव का अंग है। यह पर्व प्राय: दीपावली के दूसरे दिन प्रतिपदा को मनाया जाता है। इससे पूर्व दिपावली का पर्व इंद्र और कुबेर पूजा से जुड़ा हुआ था।
श्री कृष्ण द्वारा नरकासुर का वध कर सैंकड़ों स्त्रियों और पुरुषों को कैद से मुक्त कराने के दूसरे दिन दिवाली मनाने का जिक्र मिलता है। असम के राजा नरकासुर ने हजारों निवासियों को कैद कर लिया था। श्री कृष्ण ने नरकासुर का दमन किया और कैदियों को स्वतंत्रता दिलाई। इस घटना की स्मृति में दक्षिण भारत के लोग सूर्योदय से पहले उठकर हल्दी तेल मिलकर नकली रक्त बनाकर उससे स्नान करते हैं। इससे पहले वे राक्षस के प्रतीक के रूप में एक कड़वे फल को अपने पैरों से कुचलकर विजयोल्लास के साथ रक्त को अपने मस्तक के अग्रभाग पर लगाते हैं।