महाभारत में द्युतक्रीड़ा के समय युद्धिष्ठिर ने द्रौपदी को दांव पर लगा दिया और दुर्योधन की ओर से मामा शकुनि ने द्रोपदी को जीत लिया। उस समय दुशासन द्रौपदी को बालों से पकड़कर घसीटते हुए सभा में ले आया। जब वहां द्रौपदी का अपमान हो रहा था तब भीष्मपितामह, द्रोणाचार्य और विदुर जैसे न्यायकर्ता और महान लोग भी बैठे थे लेकिन वहां मौजूद सभी बड़े दिग्गज मुंह झुकाएं बैठे रह गए। इन सभी को उनके मौन रहने का दंड भी मिला।
देखते ही देखते दुर्योधन के आदेश पर दुशासन ने पूरी सभा के सामने ही द्रौपदी की साड़ी उतारना शुरू कर दी। सभी मौन थे, पांडव भी द्रौपदी की लाज बचाने में असमर्थ हो गए। तब द्रौपदी ने आंखें बंद कर वासुदेव श्रीकृष्ण का आव्हान किया। श्रीकृष्ण उस वक्त सभा में मौजूद नहीं थे।
द्रौपदी ने कहा, ''हे गोविंद आज आस्था और अनास्था के बीच जंग है। आज मुझे देखना है कि ईश्वर है कि नहीं''...तब श्रीहरि कृष्ण ने सभी के समक्ष एक चमत्कार प्रस्तुत किया और द्रौपदी की साड़ी तब तक लंबी होती गई जब तक की दुशासन बेहोश नहीं हो गया और सभी सन्न नहीं रह गए। सभी को समझ में आ गया कि यह चमत्कार है।