सैरन्ध्री बनी द्रौपदी, जानिए महाभारत की दुर्लभ कथा

अनिरुद्ध जोशी

बुधवार, 22 अप्रैल 2020 (11:30 IST)
महाभारत में पांडवों को 12 वर्ष का वनवास और 1 वर्ष का अज्ञातवास मिला था। अज्ञातवास की शर्त यह थी कि यदि इस दौरान पांडव पहचान लिए जाते हैं या मिल जाते हैं तो उन्हें फिर से 1 वर्ष का अज्ञातवास झेलना होगा।


 
वे विराट नगर के लिए चल दिए। विराट नगर के पास पहुंचकर वे सभी एक पेड़ के नीचे बैठ गए। युधिष्ठिर ने बताया कि मैं राजा विराट के यहां 'कंक' नाम धारण कर ब्राह्मण के वेश में आश्रय लूंगा। उन्होंने भीम से कहा कि तुम 'वल्लभ' नाम से विराट के यहां रसोईए का काम मांग लेना, अर्जुन से उन्होंने कहा कि तुम 'बृहन्नला' नाम धारण कर स्त्री भूषणों से सुसज्जित होकर विराट की राजकुमारी को संगीत और नृत्य की शिक्षा देने की प्रार्थना करना तथा नकुल 'ग्रंथिक' नाम से घोड़ों की रखवाली करने का तथा सहदेव 'तंत्रिपाल' नाम से चरवाहे का काम करना मांग ले। सभी पांडवों ने अपने-अपने अस्त्र शस्त्र एक शमी के वृक्ष पर छिपा दिए तथा वेश बदल-बदलकर विराट नगर में प्रवेश किया।

 
विराट ने उन सभी की प्रार्थना स्वीकार कर ली। विराट की पत्नी द्रौपदी के रूप पर मुग्ध हो गई तथा उसे भी केश-सज्जा आदि करने के लिए रख लिया। द्रौपदी ने अपना नाम सैरंध्री बताया। अज्ञातवास के दौरान द्रौपदी को सैरन्ध्री नाम से रानी सुदेशणा की दासी बनना पड़ा था।

सैरंध्री बनकर जीवन काटना द्रौपदी के लिए अग्नि परीक्षा जैसा था। वह इतनी सुंदर थी कि कोई भी उसे दासी समझने की भूल नहीं कर सकता था, लेकिन उसे खुद को समझदारी, सदाचार से सुरक्षित रखने के साथ भी यह भी ध्यान रखना था कि कहीं उसका भेद ना खुल जाए। द्रौपदी ने सैरंध्री का रूप धारण किया और वह पांडवों से अलग हो गई।

 
राजप्रासाद के सैनिकों ने उसे महल के आसपास यातायात में बाधा उत्पन्न करते हुए देखा। सैनिकों के आवागम के बीच में देखा तो उसे पकड़कर सैनिकों ने रक्षिकाओं के हवाले कर दिया। रक्षिकाएं उसे लेकर रानी सुदेशणा के पास ले गई। रानी सुदेशणा ने उसे उपर से नीचे तक ध्यान से देखा और फिर पूछा कौन हो तुम?

इस घटना का महाभारत में विस्तार से अद्भुत वर्णन मिलता है। सैरंध्री बनकर किस तरह द्रौपदी सुदेषणा को अपनी प्रतिभा से आकर्षित करके राजप्रसाद में नियुक्ति पाने कि यह बहुत ही अद्भुत कथा है। सुदेशना से सैरंध्री कहती है कि मैं कोई भी हूं लेकिन तुमने इस तरह मुझे पकड़कर यहां क्यों बुलाया। रानी उसके इस तरह से बात करने से भड़क जाती है। फिर सैरंध्री कहती है कि यदि मेरे पति मेरे पति आसपास होते तो मुझे पकड़ने के एवज में तुम्हारे सैनिकों की हत्या कर देते। तुम उनके पराक्रम को नहीं जानती हो।

 
इस तरह रानी से उसका वाद विवाद होता है, अंत में रानी समझ जाती है कि यह कोई साधारण स्त्री नहीं यह हमारे काम की हो सकती है। वह पूछती है कि ‘घर कहां है तुम्हारा? यहां किसी संबंधी के पास आई हो? तुम्हरा पति कहां है? यह सुनकर सैरंधी उदास होकर कहती है कि मेरे पति विदेश गए हैं। उनकी अनुपस्थित का लाभ उठाकर मेरे श्वसुर ने ‍मुझे घर से बाहर निकाल दिया क्योंकि हमने गंधर्व विवाह किया था। अब मेरा कोई घरबार नहीं और असुरक्षित हूं। 

 
रानी ने कहा कि तुम्हारे श्वसुर का नाम बताओ। यदि तुम्हारे पति ने लौटकर भी श्वसुर का विरोध नहीं किया तो?
सैरंधी कहती है कि मैं अभी कुछ नहीं बता सकती लेकिन यदि मेरे पति ने लौटकर भी मेरा साथ नहीं दिया तो मैं आपकी उनका और उनके पिता का नाम-गाम, सब कुछ बता दूंगी।

रानी सुदेशणा को सैरंधी पर विश्वास हो गया। उसने कहा कि क्या तुम सचमुच ही केश विन्यास का कार्य जानती हो। अपने बालों की तो तुमने वेणी तक नहीं कर रखी। कौन मानेगा कि तुम्हें केश श्रृंगार की कला का कोई ज्ञान है।

 
सैरंधी ने कहा, मैं अपना केश विन्यास केवल अपने पति के लिए करती हूं महारानी! वे लौट आएंगे और मुझसे प्रसन्न होंगे, तो उनको रिझाने के लिए वेणी भी करूंगी और अपना श्रृंगार भी। 

महारानी बोली, ‘बातें तो बहुत लुभावनी कर लेती हो। किंतु अपनी बात का प्रमाण दो तो जानूं।’... यह सुनकर सैरंधी ने अपनी कला का प्रदर्शन करके महारानी को चमत्कृत कर दिया और वह उनके यहां उनकी दासी के रुप में नियुक्त हो गई।... इसी तरह पांचों पांडवों ने भी अपने अपने तरीके से राजमहल में अपना स्थान बना लिया।

 
कीचक ने जब बुरी नजर डाली सैरंध्री पर : एक दिन वहां राजा विराट का साला कीचक अपनी बहन सुदेष्णा से भेंट करने आया। जब उसकी दृष्टि सैरन्ध्री (द्रौपदी) पर पड़ी तो वह काम-पीड़ित हो उठा तथा सैरन्ध्री से एकान्त में मिलने के अवसर की ताक में रहने लगा। यह बात द्रौपदी ने भीम (बल्लव) को बताई तो भीमसेन बोले- तुम उस दुष्ट कीचक को अर्द्धरात्रि में नृत्यशाला में मिलने का संदेश दे दो। नृत्यशाला में तुम्हारे स्थान पर मैं जाकर उसका वध कर दूंगा। भीम ने ऐसा ही किया। अगले ही दिन विराट नगर में खबर फैल गई कि सैरंध्री के गंधर्व पति ने कीचक को मार डाला और इसके बाद तो स्थिति ही बदल गई। दुर्योधन के गुप्तचर वहां पहुंच गए।

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