नीरज

अब तुम रूठो....

शनिवार, 19 अप्रैल 2008
अब तुम रूठो, रूठे सब संसार, मुझे परवाह नहीं है। दीप, स्वयं बन गया शलभ अब जलते-जलते,

किसलिए आऊं तुम्हारे द्वार ?

शनिवार, 19 अप्रैल 2008
जब तुम्हारी ही हृदय में याद हर दम, लोचनों में जब सदा बैठे स्वयं तुम,
तब मेरी पीड़ा अकुलाई! जग से निंदित और उपेक्षित, होकर अपनों से भी पीड़ित,

पिया दूर है न पास है

शनिवार, 19 अप्रैल 2008
ज़िन्दगी न तृप्ति है, न प्यास है क्योंकि पिया दूर है न पास है।

दिया जलता रहा....

शनिवार, 19 अप्रैल 2008
'जी उठे शायद शलभ इस आस में रातभर रो रो दिया जलता रहा।'

मुस्कुराकर चल मुसाफिर...

शनिवार, 19 अप्रैल 2008
पंथ पर चलना तुझे तो मुस्कुराकर चल मुसाफिर! वह मुसाफिर क्या जिसे कुछ शूल ही पथ के थका दें? हौसला वह क...