पाकर मुझे वो थी प्रफुल्लित अपार
दिन हो रात बस लुटाती प्यार ही प्यार
सब नाज़ो नखरे मेरे वो उठाती
पकड़ती तितलियां साथ मेरे वो
छुपन-छुपाई में कभी छुपती छुपाती
देख मेरा नटखटपन होती निहाल
अंक में अपने मुझे छुपा लेती
थाम हाथ मेरा हर कष्ट से बचाती
देती नसीहतें हर अच्छी बुरी बात पर,