यह कहानी कई तरह से लोग सुनाते हैं। कोई इसे गुरु और शिष्य से जोड़कर सुनाता है और कोई इसे पिता और पुत्रों से जोड़कर सुनाते हैं। असल में यह कहानी श्रावस्ती के अमरसेन नामक एक व्यक्ति के साथ जोड़कर ज्यादा बताई जाती है। यहां गुरु और शिष्य से जुड़ी कहानी पढ़ें।
एक बार की बात है कि एक मठ का गुरु अपने बाद अपने चार में से किसी एक शिष्य को मठ का उत्तराधिकारी बनाना चाहता था परंतु वह चाहता था कि ऐसा शिष्य उत्तराधिकारी बने जो इस मठ को समझदारी से चला सके। ऐसे में उसने अपने चारों शिष्यों को बुलाया और कहा कि मैं भारत भ्रमण पर जा रहा हूं और जब वहां से लौटूंगा तो तुम में से किसी एक को उत्तराधिकारी बनाऊंगा, लेकिन मेरी ये शर्त है कि ये गेहूं के 4 दानें हैं जिन्हें तुम्हें संभालकर रखना है और जब मैं लौटूं तो मुझे वापस करना है। इतना कहकर गुरुजी भारत भ्रमण पर चले गए।
पहले शिष्य ने यह सोचकर गेहूं के दाने फेंक दिए कि ये तब तक रखने का कोई फायदा नहीं सड़ जाएंगे तो इससे अच्छा है कि गुरुजी जब लौटेंगे तो उन्हें ऐसी ही चार दाने हाथ में पकड़ा देंगे।
दूसरे ने इसे संभालकर रखने के बजाय खा लेते हैं। गुरुजी को जब यह पता चलेगा कि मैंने इस गेहूं को सड़ाने के बजाए खाकर इसका सदुयोग कर लिया तो वे प्रसन्न होंगे।
तीसरे ने सोचा हम रोज पूजा पाठ तो करते ही हैं और अपने मंदिर में संभालकर रख लेते हैं वहां ये सुरक्षित रहेंगे। देवताओं के साथ उनकी भी पूजा होती रहेगी। गुरुजी आएंगे प्रसन्न हो जाएंगे।
चौथे से सोचा और चारों दाने 4 साल में तो सड़कर खतम हो जाएंगे तो फिर गुरुजी को क्या लौटाएंगे। यह सोचकर उसने आश्रम के पीछे कड़ी पड़ी भूमि पर उन चारों दानें को बो दिया। देखते-देखते वे उन दानों से अंकूर फूटे और पौधे बड़े हो गए और कुछ गेहूं ऊग आए फिर उसने उन्हें भी बो दिया इस तरह हर वर्ष गेहूं की बढ़ोतरी होती गई 4 दानें 4 बोरी, 40 बोरी और 40 बोरियों में बदल गए।
चार साल बाद जब गुरुजी वापस आए तो सबकी कहानी सुनी और जब वो चौथे शिष्य से पूछा तो वह बोला, गुरुजी, आपने जो चार दाने दिए थे अब वे गेंहूं की 400 बोरियों में बदल चुके हैं, हमने उन्हें संभल कर गोदाम में रख दिया है, उनपर आप ही का हक है।' यह देख गुरुजी ने तुरंज ही घोषणा कर दी की आज से तुम इस मठ के उत्तराधिकारी हो।
इस कहानी से हमें ये शिक्षा मिलती है कि हमें जीवन में जो मिलता है उसकी कद्र करके उसे बढ़ाने के बारे में सोचना चाहिए उसे व्यर्थ नहीं जाने देना चाहिए। दूसरा यह कि हमें जो जिम्मेदारी सौंपी गई है उसे अच्छी तरह से निभाना चाहिए और मौजूद संसाधनों, चाहे वो कितने कम ही क्यों न हों, का सही उपयोग करना चाहिए। गेंहूं के 4 दाने एक प्रतीक हैं, जो समझाते हैं कि कैसे छोटी से छोटी शुरुआत करके उसे एक बड़ा रूप दिया जा सकता है।