बौद्ध धर्म का एक रूप जापान में प्रचलित है जिसे जेन कहते हैं। जेन गुरु अपने शिष्यों को या आगुंतकों को अपने ही तरीके से शिक्षा देते या प्रवचन देते थे। वे जीवन के अर्थ को अपनी बुद्धि या ज्ञान से नहीं बल्कि छोटी-छोटी चीजों या उदाहरणों से समझाते थे। ओशो रजनीश ने अपने प्रवचनों में जेन गुरु से संबंधित कई कथाएं सुनाई हैं। उन्हीं में से एक पढ़िये।
एक बार की बात है कि एक जापानी जेन गुरु नैन-इन के पास एक बहुत बड़ा प्रोफेसर जेन दर्शन के बारे में कुछ पूछने आया। शिष्टाचार निभाने के बाद वह खुद ही ज्ञान की बातें करने लगा। जेन गुरु को बोलने का मौका ही नहीं दिया। जेन गुरु उसकी बातें ध्यान से सुनते रहे और जब बहुत देर हो गई तो उन्होंने प्रोफेसर के लिए चाय मंगाई।
इस दौरान भी प्रोफेसर अपनी ही बातें बताने में मगन थे, लेकिन जेन गुरु ने उन्हें नहीं टोका और वे केतली से कप में चाय डालने लगे। बात करते-करते प्रोफेसर भी यह देख रहा था कि जेन गुरु उनके लिए कप में केतली से चाय डाल रहे हैं। प्रोफेसर अभी भी अपनी ही बात करते जा रहा था और तभी उसने देखा की कप भर जाने के बाद भी जेन गुरु चाय उसमें डाले जा रहे हैं और चाय कप से भूमि पर गिरने लगी है।
यह देखकर प्रोफेसर ने जेन गुरु को रोकते हुए कहा कि अरे ये कप भर चुका है, अब इसमें और चाय नहीं आ सकती है। यह सुनकर जेन गुरु ने कहा कि यही मैं आपको समझाना चाहता हूं कि इस कप की तरह तुम भी अपने विचारों और ख़यालों से भरे हुए हो। भला जब तक तुम अपना कप खाली नहीं करते मैं तुम्हें जेन कैसे सीखा सकता हूँ?
इस कहानी से यह शिक्षा मिलती है कि हमें यदि सत्य या वास्तविकता के दर्शन करने हैं तो हमें अपने चित्त को खाली करना होगा। व्यर्थ के विचार, चिंता और खयालों ने सच पर पर्दा डाल रखा है।