एक गिलहरी थी। रोज अपने काम पर समय से आती थी। अपना काम पूरी मेहनत और ईमानदारी से करती थी। गिलहरी जरुरत से ज्यादा काम कर के भी खूब खुश थी, क्योंकि उसके मालिक जंगल के राजा शेर ने उसे काम के बदले 10 बोरी अखरोट देने का वादा कर रखा था।
गिलहरी जब भी काम करते-करते थक जाती थी, तो हमेशा सोचती, कि थोड़ा आराम कर लूं, लेकिन अगले ही पल उसे याद आता, कि शेर उसे दस बोरी अखरोट देगा...गिलहरी फिर काम पर लग जाती।
गिलहरी जब अपने आसपास दूसरी गिलहरियों को खेलते-कूदते और मस्त रहते देखती, तो उसकी भी बहुत इच्छा होती, कि काश मैं भी ऐसी जिंदगी जी पाती, लेकिन तुरंत ही उसकी आंखों में दस बोरी अखरोट पाने का सपना तैरने लगता और वो सब कुछ भूलकर या बेकार मानकर फिर काम पर लग जाती।
शेर उससे जमकर काम लेता, यहां तक कि कभी-कभी अपने बाकी साथियों या रिश्तेदारों के पास भी काम करने के लिए भेज देता था, पर गिलहरी को इस बात से कोई शिकायत नहीं थी, उसे तो बस अपने अखरोटों की बोरियों से मतलब था।
दूसरी ओर शेर भी बहुत ईमानदार था और काम पूरा होने पर गिलहरी को अखरोट देने में उसे कोई परेशानी नहीं थी। इस प्रकार ऐसे ही समय बीतता रहा...
अंत में एक दिन ऐसा भी आया, जब जंगल के राजा शेर ने काम पूरा होने पर गिलहरी को दस बोरी अखरोट दे कर आजाद कर दिया।
लेकिन ये क्या अब गिलहरी दस बोरी अखरोट को देखकर उतना खुश नहीं हुई, जितना वो अक्सर सोचा करती थी। उसने बोरियों के आगे-पीछे कई चक्कर काटे और थककर वहीं बैठ कर सोचने लगी, कि दस बोरी भरकर अखरोट तो मेरे सामने हैं लेकिन वास्तव में ये अखरोट अब मेरे किस काम के?
पूरी जिंदगी काम करते-करते मेरे दांत तो पूरी तरह घिस गए, तो इसे खाऊंगी कैसे???
दरअसल ये कहानी आज हम सबके जीवन की हकीकत बन चुकी है।
इंसान अपनी इच्छाओं का त्याग करता है और पूरी जिंदगी नौकरी, परिवार, रिश्तेदार, समाज और दुनियादारी निभाने में बिता देता है।
रिटायरमेंट तक आते-आते उसके पास घर, परिवार, आर्थिक बचत या जीवन-यापन के अन्य साधन भी जुट जाते हैं लेकिन यहां उसका सामना जिंदगी की उस कड़वी सच्चाई से होता है जिसे हम हकीकत कहते हैं क्योंकि काम करते-करते वो कमाई तो बहुत करता है अपने आसपास कहने के लिए झूठे-सच्चे रिश्ते भी जुटा लेता है लेकिन ख़ुद को पूरी तरह खो देता है। तब तक उसका परिवार, बच्चे आसपास का माहौल सबकुछ बदल चुका होता है।
आर्थिक बचत भी उसे उसका स्वस्थ शरीर वापस नहीं दे सकती। ऐसे में उसे अकेलापन और निराशा घेरने लगते हैं क्योंकि बाकी लोग इस बात का अंदाजा भी नहीं लगा पाते, कि जो जिंदगी वो जी रहे हैं उसके लिए उसने अपनी कितनी इच्छाएं मारी होंगी ? कितनी तकलीफें सही होंगी ? उसके अपने कितने सपने रहे होंगे ?
फिर ज़रा सोचिए, कि क्या फायदा ऐसी बचत या इनाम का, जिसे पाने के लिए पूरी जिंदगी लगाई जाए, लेकिन ख़ुद उसका इस्तेमाल भी न कर सकें...
हमेशा याद रखें, कि "इस धरती पर कोई ऐसा अमीर अभी तक पैदा नहीं हुआ, जो बीते हुए समय को खरीद सके।"
इसलिए "वर्तमान में जिएं, खुलकर जिएं और अपने सपनों को पूरा करें। आपको भी एक ही जिंदगी मिली है उसे किसी और के सपनों को पूरा करने में व्यर्थ ना गवाएं।"