जब हम भारत को बचाने की बात करते हैं तो भारत एक भूमि है। यहां की भूमि के पहाड़ों, नदियों और वृक्षों के साथ ही यहां के पशु-पक्षियों और जलचर जंतुओं को बचाया जाना चाहिए। जो लोग इनको नष्ट कर रहे हैं, वे ही भारत के असली दुश्मन या कहें की देशद्रोही हैं। जो लोग पहाड़ों और वृक्षों को कटते देख रहे हैं उनका भी अपराध लिखा जाना चाहिए। लोग भ्रष्टाचार के लिए आंदोलन करते हैं लेकिन पहाड़ बचाने के लिए कौन करेगा। नदी बचाओ आंदोलन को कोई मीडिया या अन्य संगठन समर्थन क्यों नहीं देता?
पहाड़ों का महत्व : पर्वत को गिरि, अचल, शैल, धरणीधर, धराधर, नग, भूधर और महिधर भी कहा जाता है। कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक भारत में एक से एक शानदार पहाड़ हैं, पहाड़ों की श्रृंखलाएं हैं और सुंदर एवं मनोरम घाटियां हैं। पहाड़ को जीवंत बनाने के लिए जरूरी मुख्य तत्वों में पेड़ और पानी- दोनों आवश्यक हैं। वृक्ष से पानी, पानी से अन्न तथा अन्न से जीवन मिलता है। जीवन को परिभाषित करने के लिए जीव और वन- दोनों जरूरी हैं। जहां वन होता है वहीं जीव होते हैं। इनके बिना पहाड़ अधूरा और कमजोर है। दूसरी ओर पहाड़ों के कारण ही नदियों का बहना जारी है। मानव एक ओर जहां पहाड़ काट रहा है वहीं नदियों पर बांध बनाकर उनके अस्तित्व को मिटाने पर तुला है तो दूसरी ओर अंधाधुंध तरीके से पेड़ काटे जा रहे हैं। खैर,
यहां हमने पहाड़ों से संबंधित छोटी-छोटी बातों का संकलन किया है जो पहाड़ों के महत्व को दर्शाती है। जरूरी है कि पढ़ने वाला व्यक्ति पहाड़ों के महत्व को समझकर अपने शहर या गांव को पहाड़ों को बाचाने की मुहिम से सम्मिलित हो। हालांकि यह जरूरी नहीं क्योंकि आपने अपने ही सामने चुपचाप वृक्षों को कटते देखा है, तो आपसे उम्मीद बैकार है। आओ जानते हैं पाहाड़ के महत्व की 10 बातें...
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एक दिन मिलेगी पहाड़ काटने की सजा : पहाड़ों के देवता को वेदों में मरुतगण कहा गया है जिनकी संख्या प्रमुख रूप से 49 है। पहाड़ों को किसी भी तरह से नुकसान पहुंचाने वाले पर ये मरुतगण नजर रखते हैं। मौत के बाद ऐसे लोगों की दुर्गति होना तय है। जीते जी ही ऐसे लोगों का जीवन नर्क बना ही दिया जाता है। वैदिक ऋषियों ने पहाड़ों के गुणगान गाए हैं। उन्होंने पहाड़ों के लिए कई मंत्रों की रचनाएं की हैं।
कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक ऐसे कई पहाड़ हैं जिनका धार्मिक, आध्यात्मिक और पर्यावरण से संबंधित महत्व है। भारत में ही विश्व के सबसे प्राचीन और सबसे नए पर्वत विद्यमान हैं। इन पहाड़ों की प्राचीनता और भव्यता देखते ही बनती है, लेकिन अब विकास के नाम पर देश का विनाश जारी है।
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पहाड़ है तो शहर की आबोहवा है, शुद्ध हवा है : पहाड़ पर बनाओ रास्ते। रास्ते बनाने के लिए पहाड़ मत काटो। बायपास सड़क और रेती-गिट्टी के लिए कई छोटे शहरों के छोटे-मोटे पहाड़ों को काट दिया गया है और कइयों को अभी भी काटा जा रहा है। खनन ने पर्यावरण को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाया है। इससे जहां शहर की जलवायु बदल रही है वहीं बीमारियां भी तेजी से फैल रही हैं। कैसे?
दरअसल, पहले किसी भी पहाड़ के उत्तर में गांव या शहर को बसाया जाता था ताकि दक्षिण से आने वाले तूफान और तेज हवाओं से शहर की रक्षा हो सके। इसके अलावा सूर्य का ताप सुबह 10 बजे से लेकर अपराह्न 4 बजे तक अधिक होता है। इस दौरान सूर्य दक्षिणावर्त ही रहता है। पहाड़ से दक्षिण से आने वाली हानिकारक अल्ट्रावॉयलेट किरणों से सुरक्षा होती है। अल्ट्रावॉयलेट से सन बर्न और सन एनर्जी की शिकायत के साथ ही कई तरह के रोग होते हैं इसीलिए मनुष्य के जीवन में पहाड़ महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। यदि आपका दक्षिणमुखी मकान है तो आप समझ सकते हैं कि घर में ऑक्सिजन की कमी कैसे होती है और फिर इसके चलते सभी के दिमाग कैसे चिढ़चिढ़े हो जाते हैं।
शास्त्रों में लिखा है कि मनुष्य को वहां रहना चाहिए, जहां चारों ओर पहाड़ हों और एक नदी बह रही हो। पहाड़ों के कारण दौड़ती रहने वाली हवाएं जहां काबू में रहती हैं वहीं वह पहाड़ों से घिरकर शुद्ध भी हो जाती है। शहर और गांवों के जीवन के लिए शुद्ध जल के साथ शुद्ध वायु का होना सबसे जरूरी है।
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पहाड़ पर मंदिर : वैदिक काल में ही चारधाम और दुनियाभर में ज्योतिर्लिंगों की स्थापना के साथ ही प्रार्थना करने के लिए भव्य मंदिरों का निर्माण किया गया, लेकिन पहाड़ों पर बनाए गए मंदिरों का महत्व ही कुछ और है।
अनेक प्राचीन मंदिर ऐसे स्थलों या पर्वतों पर बनाए गए हैं, जहां से चुंबकीय तरंगें घनी होकर गुजरती हैं। इस तरह के स्थानों पर बने मंदिरों में प्रतिमाएं ऐसी जगह रखी जाती थीं, जहां चुंबकत्व का प्रभाव ज्यादा हो। यहीं पर तांबे का छत्र और तांबे के पाट रखे होते थे और आज भी कुछ स्थानों पर रखे हैं। तांबा बिजली और चुंबकीय तरंगों को अवशोषित करता है। इस प्रकार जो भी व्यक्ति प्रतिदिन मंदिर जाकर इस मूर्ति की घड़ी के चलने की दिशा में परिक्रमा करता है, वह इस एनर्जी को अवशोषित कर लेता है। इससे उसको मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य लाभ मिलता है। हालांकि यह एक धीमी प्रक्रिया मानी जा सकती है लेकिन इससे मस्तिष्क में सकारात्मक ऊर्जा का विकास होता है।
इसके अलावा पहाड़ पर जाकर किसी भी प्रकार की मन्नत मांगी जाए या इच्छा की जाए तो वह जल्द से जल्द इसलिए पूरी होती है, क्योंकि वहां से आप अच्छे तरीके से ब्रह्मांड के संपर्क में आते हों और उस वक्त आपका अवचेतन मन भी खुला होता है। ऐसे में आकर्षण का नियम अच्छे से कार्य करता है। खुला आकाश आपके विश्वास को बढ़ाने और शांति प्रदान करने में मदद करता है।
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निरोगी रहने की शर्त पहाड़ : यदि किसी शहर के आसपास पहाड़ हैं, तो सबसे बेहतर वातावरण रहेगा। समय पर बारिश, सर्दी, गर्मी होगी और मौसम भी सुहाना होगा। बेहतर वातावरण के कारण लोगों का स्वास्थ्य भी बेहतर रहेगा।
शोधानुसार पता चला है कि हिमालय की वादियों में रहने वालों को कभी दमा, टीबी, गठिया, संधिवात, कुष्ठ, चर्मरोग, आमवात, अस्थिरोग और नेत्र रोग जैसी बीमारी नहीं होती। हिमालय क्षेत्र के राज्य जम्मू-कश्मीर, सिक्किम, हिमाचल, उत्तराखंड, असम, अरुणाचल आदि क्षेत्रों के लोगों का स्वास्थ्य अन्य प्रांतों के लोगों की अपेक्षा बेहतर होता है। इसे ध्यान और योग के माध्यम से और बेहतर करके यहां की औसत आयु सीमा बढ़ाई जा सकती है। तिब्बत के लोग निरोगी रहकर कम से कम 100 वर्ष तो जीवित रहते ही हैं।
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चमत्कारिक पहाड़ : देश-दुनिया में कई ऐसे चमत्कारिक पहाड़ हैं जिनके बारे में कई तरह की किंवदंतियां प्रचलित हैं, जैसे भारत के लेह-लद्दाख में एक चुम्बकीय पहाड़ है जिसे मैग्नेटिक हिल भी कहा जाता है।
यह पहाड़ धातु को अपनी ओर खींचता है। इस पहाड़ के ऊपर से गुजरने वाले विमानों को अपेक्षाकृत अधिक ऊंचाई पर उड़ना होता है अन्यथा पहाड़ उनको खींच सकता है। यहां पर अलग-अलग संरचनाओं और रंगों वाले पहाड़ भी हैं। दुनियाभर में कई चमत्कारिक पहाड़ है।
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हजारों वर्षों में बनते पहाड़ों को मिटा दिया जाता कुछ वर्षों में: पहाड़ों का बनना एक लंबी भूवैज्ञानिक प्रक्रिया है और यह प्रक्रिया हमेशा पहाड़ों के अंदर होती रहती है। यह प्रक्रिया पृथ्वी के अंदर मौजूद क्रस्ट में तरह-तरह की हलचल होने के कारण होती है। पहाड़ टेक्टॉनिक या ज्वालामुखी से बनते हैं। ये सारी चीजें मिलकर पहाड़ को 10,000 फीट तक ऊपर उठा देती हैं। उसके बाद नदियां, ग्लेशियर और मौसम इसे घटाकर कम कर देते हैं।
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पर्वतों का आध्यात्मिक रहस्य : अधिकतर शक्तिपीठ पर्वतों पर बने हैं। पर्वतों पर ध्यान करने का महत्व अधिक है। प्राचीनकाल में शक्तिपीठों में ध्यान और साधना ही की जाती थी। हिमालय श्रेणियों में योगी ध्यान और योग के लिए ही जाते हैं। वहां वे अमरता और मोक्ष ज्ञान प्राप्त करते हैं।
हिन्दू धर्म अनुसार व्यक्ति का अंतिम लक्ष्य मोक्ष ही है। धर्म, अर्थ, काम और अंत में मोक्ष। मोक्ष का अर्थ मृत्यु नहीं। मोक्ष का अर्थ मुक्ति, कैवल्य ज्ञान और संबोधी होता है। मोक्ष का अर्थ आत्मा हो जाना। शरीर और प्रकति के बंधनों से मुक्त होकर स्वयं प्रकाश हो जाना है। पर्वतों पर ध्यान करने से समाधी जल्द ही घटित होती है। इसीलिए तो भगवान शंकर ने हिमालय पर डेरा जमाया था।
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भारत की प्रमुख पर्वत श्रेणियां : भारत के पर्वतों के कारण ही भारत में अच्छे तौर पर पांच ऋतुएं होती हैं, जो किसी अन्य देश में शायद ही देखन को मिले। ये ऋतुएं हैं- वसंत, ग्रीष्म, वर्षा, शरद, हेमंत और शिशिर। यह मौसम प्रत्येक 2 माह के होते हैं, लेकिन आरावली और विध्यांचल की पर्वत श्रृंखलाओं को काट देने के कारण भारत में अब मौसम परिवर्तन होने लगा है। इस परिवर्तन के कारण भारत की कृषि पर भी असर पड़ा है। विकास के नाम पर काट दी गई कई शहरों की छोटी मोटी पहाड़ियों से भी जलवायु परिवर्तित होने लगा है।
भारत की प्रमुख पर्वत श्रेणियां : हिमालय, आरावली, सतपुड़ा, विंध्याचल, पश्चिमी घाट, पूर्वी घाट, नीलगिरि पर्वत, अनामलाई पर्वत, काडिमोम पहाडि़यां, गारोखासी पहाडि़यां, नागा पहाड़ियां।
संसार के अनेक पर्वतीय क्षेत्रों की ही भांति भारत के पर्वतों का पर्यावरण भी निरन्तर बिगड़ रहा है क्योंकि पर्वतों के वन को अंधाधुंध तरीके से काट दिया गया है। किसी समय हिमालय पर्वत श्रृंखलाओं के अनेक क्षेत्रों में अनेक जंगल थे। लेकिन इनमें से अनेक क्षेत्रों का जंगल कृषि भूमि के लिए अथवा अन्य व्यावसायिक निर्माण कार्य हेतु साफ हो चुका है।
इसके चलते यहां का दुर्लभ वन्यजीवन भी लुप्त हो चुके हैं। जंगल के कटने से हुई अनेक क्षतियों में वन्य जीवन पर संकट भी विशेष महत्व रखता है। इससे संपूर्ण भारत का परिस्थितिकि तंत्र गड़बड़ा गया है। जंगल के कटने से तथा पशु आहार के रूप में अतिरिक्त दबाव के कारण भूक्षरण, भूस्खलन जैसी क्षतियां भी हुई हैं। साथ ही बढ़ती मानव आबादी ने प्रदूषण भी बढ़ाया है। इनस सभी कारणो के चलते जल के मुख्य स्रोत जैसे झरने, झील, नदी आदि को कूडे़-करकट व अन्य गंदगी से प्रदूषित कर दिया गया है। अब बताइये फिर बचा क्या?
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पहाड़ है तो पानी है : हजारों-हजार साल में गांव-शहर बसने का मूल आधार वहां पानी की उपलब्धता होता था। पहले नदियों के किनारे सभ्यता आई, फिर ताल-तलैयों के तट पर बस्तियां बसने लगीं। जरा गौर से किसी भी आंचलिक गांव को देखें, जहां नदी का तट नहीं है- वहां कुछ पहाड़, पहाड़ के निचले हिस्से में झील और उसको घेरकर बसी बस्तियां हैं। पहाड़ नहीं होगा तो शहर रेगिस्तान लगेगा। रेगिस्तान में पानी की तलाश व्यर्थ है।
पहाड़ पर हरियाली बादलों को बरसने का न्योता होती है, पहाड़ अपने करीब की बस्ती के तापमान को नियन्त्रित करते हैं और अपने भीतर वर्षा का संपूर्ण जल संवरक्षित कर लेते हैं। इससे आसपास की भूमि का जल स्तर बढ़ जाता है। कुएं, कुंडियों, तालाबों और नलकूपों में भरपूर पानी रहता है। किसी पहाड़ी कटने के बाद इलाके के भूजल स्तर पर असर पड़ने, कुछ झीलों, तालाबों आदि का पानी पाताल में चले जाने की घटनाओं पर कोई ध्यान नहीं देता। क्या किसी वैज्ञानिक ने इसकी जांच की है कि पहाड़ों के कटने से भूकंप की संभावनाएं भी बढ़ जाती है?
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औषधियों का खजाना पहाड़ : झरने भी पहाड़ से ही गिरते हैं किसी मंजिल से नहीं। पहाड़ हवाएं शुद्ध करता है तो भूमि का जलस्तर भी बढ़ता है। पहाड़ के कारण आसपास चारागाह निर्मित होता है तो वन्य जीवों को भी प्रचूर मात्रा में भोजन मिलता है। पहाड़ है तो जंगल है, जंगल है तो जीवन है।
पहाड़ कई चमत्कृत करने वाली जड़ी बूटियों और औषधियों का खजाना है। संजीवनी बूटी किसी पहाड़ पर ही पाई जाती है तो भूलनजड़ी भी पहाड़ पर ही पाई जाती है। ऐसी कई जड़ी बूटियां और औषधियां हैं जो पहाड़ों पर ही उगती है। आयुर्वेद की सबसे महान खोज च्यवनप्राश को माना जाता है पर शायद ही कोई यह जानता होगा कि च्यवनप्राश जैसी आयुर्वेदिक दवा धोसी पहाड़ी की देन है। धोसी पहाड़ी हरियाणा और राजस्थान की सीमा पर स्थित है।
उत्तराखंड, सिक्किम, हिमाचल, जम्मू, कश्मीर, लद्दाख, अरुणाचल, नगालैंड आदि मनोरम पहाड़ी क्षेत्रों में विश्व की कई दुर्लभ जड़ी बूटियों के साथ ही दुर्लभ वन्य जीव भी पाए जाते हैं।