आज जब पीछे मुड़कर अपने फिल्मी करियर को देखती हूं तो मुझे बहुत आश्चर्य होता है। कारण यह है कि मैं तो फिल्म इंडस्ट्री में कभी एक्ट्रेस बनने आई थी। मैं एकदम दुबली पतली सी सिंपल सी लड़की, जो यह सोचती थी कि डांस सीख रही हूं तो एक दिन में फिल्म इंडस्ट्री में डांस करूंगी। फिल्म इंडस्ट्री में डांसर बनना कैसा है यह जानती नहीं थी। अब हुआ यूं कि मैं कक्षा आठवीं से उत्तीर्ण होकर कक्षा 9वी में पहुंची और उस समय किसी न्यूज़ पेपर में एफटीआईआई का एक एड आया और मैं बड़ी खुश हो गई।
मैंने अपनी बहनों से बात की। मेरी बहनों को कहा कि मम्मी को या पापा को समझाना मुझे यहां जाना है। मेरी बहनों ने मेरी मां से बात की और कहा कि देखो इनको डांस करने की इच्छा है। फिल्मों में जाने की इच्छा है तो कर लेने दो। जैसे दूसरे कॉलेज होते हैं, यह कॉलेज भी वैसा ही होता है। तुमने नहीं जाने दिया और उसने पढ़ाई यहां बैठकर नहीं की तो कोई मतलब नहीं निकलेगा। इससे अच्छा उसका दिल रख लो भेज दो उसको। इस तरीके से मैं एफटीआईआई पहुंच गई।
यह कहना है जरीना वहाब का जो अपने सादगी सौम्यता की वजह से हमेशा लोगों की नजरों में छाई रही हैं। जरीना ने ना सिर्फ हिंदी फिल्में की है बल्कि दक्षिण में भी अलग-अलग भाषाओं में फिल्म की है। आजकल तो वह दक्षिण की कई फिल्मों में ऐसे दिखाई दे जाती हैं। जैसे वही की फिल्मों के लिए बन गई हूं। हालांकि हिंदी में भी उनकी रूचि हमेशा से थी और अभी भी उतनी ही जोरदार तरह से उन्हें हिंदी फिल्मों में काम करने की इच्छा है।
कुछ गिने-चुने महिला पत्रकारों से बात करते समय जरीना वहाब का जो अंदाज था, उसे कोई भी मंत्रमुग्ध हुए बिना नहीं रह सकता था। शानदार सा लखनवी चिकनकारी का कुर्ता और ऊपर से मेहमान नवाजी के लिए बेहतरीन अदरक वाली चाय कहीं कुछ कम लगा तो उनकी बातचीत में तड़का लगा दिया।
जरीना आगे बताती हैं, मैं तो फिल्मों की इतनी बड़ी वाली शौकीन रही हूं कि हर बार जैसे कोई फिल्म लगी मैं फर्स्ट डे फर्स्ट शो देखने के लिए पहुंच जाया करती थी और चार आने वाली जो आगे वाली सीट हुआ करती थी, मैं उस पर बैठकर फिल्में देखती थी। उस समय तेलुगु फिल्में ज्यादा आया करती थी। हम वैसे भी राजमुंद्री में रहते थे वहां फिल्में अगर हिंदी आती भी थी तो कभी महीने में एखादी कोई आ गई तो भी बहुत बड़ी बात है। लेकिन शायद ही ऐसी कोई फिल्म हो जिसको मैंने मिस किया है।
हम सारी बहनें मिलकर जाया करती थी। गाड़ी हमारे पापा के पास थी। उनके पास एक साइकिल भी हुआ करती थी। वह सेंट्रल एक्साइज में ऑफिसर थे। वह साइकिल से ही आया जाया करते थे। हमारे पापा साइकिल पर मम्मी को बैठा कर रोमांटिक फिल्म देखने जाया करते थे। लेकिन हमारी बात अलग हुआ करती थी। वहां पर हम राजमुंद्री में अपने भाई को भी साथ में नहीं ले जाया करते थे। माहौल कुछ ऐसा हुआ करता था। हम भाई को बता देते को फिल्म देखने हम जा रहे हैं। हम से थोड़ी दूरी बनाकर हमारे पीछे पीछे चलना साथ में मत आना। अब ऐसी सोच से मैं सीधे एफटीआईआई जैसी खुली सोच वाली जगह पर गई तो मेरे लिए एक बहुत बड़ा कल्चरल सरप्राइज था।
पहली फिल्म
मेरा पहला ब्रेक जो था वह फिल्म 'इश्क' के साथ देवानंद साहब के साथ था। और उनसे मिलना में बड़ा इंटरेस्टिंग रहा मेरे लिए। मैं मुंबई में आ चुकी थी पढ़ाई करके और बांद्रा में ही एक जगह पीजी के तौर पर रहती थी। महबूब स्टूडियो कुछ 5 मिनट की दूरी पर भी नहीं था। मुझे किसने कहा कि देवनंद साहब जीनत अमान के साथ एक फिल्म बना रहे हैं। इसमें चार पांच बहनों का काम है। तुम ट्राई करो कोई ना कोई बहन का रोल तो मिल ही जाएगा।
मैं वहां गई और महबूब स्टूडियो में जो एक कॉरिडोर है मैं वहां बैठ गई। विश्वा वहां प्रोडक्शन मैनेजर थे। मैंने उन्हें कहा कि देव साहब से रोल के लिए कहा आपसे मिलना है, फिल्म के लिए। उन्होंने कहा भी तो शॉट चल रहा है थोड़ी देर रुक जाइए। शॉट खत्म हुआ देव साहब जल्दी जल्दी सब चलने लग गए। उन्होंने मुझे देखा, मैं उनके पास गई कहा, देव साहब आपके साथ काम करना है।
उन्होंने देखा और कहा हम कर रहे हैं साथ में। और ऐसा करो अपना एड्रेस लिखा दिया ना? मैं बड़ी चौंक गई कि कहीं यह मेरे साथ मजाक तो नहीं कर रहे हैं या मुझे जलील तो नहीं कर रहे हैं। ऐसे कैसे हो सकता है? यकीन मानिए देव साहब ने मेरी एक भी पिक्चर नहीं देखी। मैंने उनको कहा भी देव जी मेरी मेरी पिक्चर तो देख लीजिए। उन्होंने कहा तुम्हारा चेहरा बहुत फोटोजेनिक है। तुम कैमरा पर अच्छी देखोगी। और यह कहते हुए निकल गए। मैं वहां से चली आई। तीन-चार दिन बाद उनके जो प्रोडक्शन टीम से थे वह मेरे घर पर आए मुझे तब जाकर यकीन हुआ कि मेरा सिलेक्शन हो गया है।
नो स्ट्रगल
मुझे कभी अपने रोल के लिए स्ट्रगल नहीं करना पड़ा। कोई ज्यादा तकलीफ उठाने नहीं पड़ी। मैं पुणे से मुंबई शिफ्ट हुई और 2 महीने में ही मुझे इश्क इश्क मिली। में उसके बाद जैसे ही वह खत्म हुई। मुझे कहा गया कि राजश्री प्रोडक्शन में जाकर मिल लो। वह एक नया चेहरा ढूंढ रहे हैं। मैं गई वहां पर मुझे बाबू जी यानी कि ताराचंद जी से मिलाया। वहां से महाबलेश्वर पंचगनी में हम लोगों की शूटिंग थी। 27 दिन में हमने पूरी फिल्म खत्म कर ली थी।
और वहां पर मैं जब भी थोड़ा भी मेकअप लगाती थी या लिपस्टिक भी लगाती थी तो मुझे कह दिया जाता था। चलो पूरा मेकअप निकालो, लिपस्टिक निकालो पर वह समय सेट का माहौल अलग था। काम करने का अलग मजा होता था। एक बार मुझे याद है कि मैं और मास्टर राजू हम साथ में बैठे हुए थे और कुछ हंसी मजाक की बात कर रहे थे। तब बासुदा ने मुझे बोला, तुम यह जो कह रही थी, वह क्या कह रही थी तो मैंने उनको बताया कि मैं क्या उसके साथ जोक कर रही थी, लेकिन ऐसा के ऐसा हमारे कैमरा के लिए कर दो और वही चीज उन्होंने चितचोर में भी रखी।
मुझे शशि कपूर हमेशा से पसंद है। स्कूल में भी जब मैं होती थी और किसी मैगज़ीन में शशि कपूर का फोटो आता था। तब मेरे किताबों पर उन्हीं के फोटो का कवर चढ़ा करता था। सारी किताबों पर मुझे एकदम पूरा वाला क्रश था उनके ऊपर। मैं और शबाना हम लोगों के घर में आपस में काफी मिलना जुलना होता था और शबाना के घर में शशि कपूर जी का आना जाना बहुत होता था तो एक बार मैं शबाना के यहां पर थी और शशि कपूर जी आए तो मैं बड़ी दबी सी शरमाई सी खड़ी रही।
और जैसे ही वह गए, मैं भागकर पहुंची उस चेयर पर बैठी जहां पर शशि कपूर जी बैठे थे और उसी झूठे ग्लास से मैंने पानी पिया जिसमें शशि जी ने पानी पिया था और फिर तो मैं इतना खुश हुई कि मैं बता नहीं सकती। मुझे किसने कहा था कि शबाना जी को भी उन पर क्रश था लेकिन मैं खुद इतनी पागल थी उनके पीछे की किसी और को क्रश में ध्यान नहीं दे पाती थी। मैं सिर्फ शशि जी को ही देखते रहा करती थी। एक फिल्म के दौरान मुझे उन्हें राखी बांधने थी और भैया बोलना था। मैंने तो सबको कह दिया। यह सब मैं नहीं करने वाली हूं। भाई तो बिल्कुल नहीं बोलूंगी।
आप साउथ की फिल्में तो बहुत कर रही है। हिंदी की फ़िल्में क्यों कम कर रही हैं?
हिंदी फिल्मों में आजकल मां है कहां? देखिए जितनी फिल्में बनाई जा रही है उसमें मां का रोल कहां मिला? माय नेम इज खान में है, अग्निपथ में है तो उसे मैंने मां का रोल निभा लिया। आजकल वैसी फिल्में बनती कहां है? वहीं आप साउथ में जाइए हर रिश्ते की अहमियत है, भाई भी मिलेगा, मां भी मिलेगी बहन भी मिलेगी, भाभी भी मिलेगी। और इस तरीके से आपका काम बढ़ता रहता है। अब हिंदी फिल्मों में वैसे रोल नहीं मिल रहे हैं।