उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री एवं गोरखपुर स्थित गोरक्षपीठ के पीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ के दादागुरु ब्रह्मालीन महंत दिग्विजयनाथ के बारे में कभी वीर सावरकर ने कहा था, 'यदि महंत दिग्विजयनाथ जी की तरह अन्य धर्माचार्य भी बिना भेदभाव के देश, जाति व धर्म की सेवा में लग जाएं तो भारत पुनः जगद्गुरु के पद पर प्रतिष्ठित हो सकता है'।
देश की प्रमुख धार्मिक पीठों में शुमार गोरक्षपीठ अपनी स्थापना के समय से ही जाति, पंथ मजहब से परे एक ऐसा केन्द्र रही है जिसके लिए सामाजिक एवं सांस्कृतिक एकता और लोक कल्याण सर्वोपरि रहा है। पूरी दुनिया में हर किसी के कल्याण लिए स्वीकार्य योग का मौजूदा स्वरूप पीठ के संस्थापक गुरु गोरक्षनाथ की ही देन है।
बात चाहे पीठ के आंतरिक प्रबंधन की हो, या फिर जन सरोकारों की। यहां कभी भी जाति या धर्म की दीवार आड़े नहीं आता है। यूं तो आए दिन मंदिर परिसर में सामाजिक समरसता का नजारा दिख जाता है। पीठ की सामाजिक समरसता की एक जीवंत तस्वीर प्रतिवर्ष विजयादशमी के दिन पूरी दुनिया के सामने होती है। इस दिन गोरक्ष पीठाधीश्वर की अगुआई में गोरखनाथ मंदिर से निकलने वाली शोभायात्रा का मुस्लिम समाज द्वारा हर साल अभिनंदन किया जाता है।
उल्लेखनीय है कि पीठ की तीन पीढ़ियों ने लगातार समाज को जोड़ने और जाति, धर्म से परे असहाय को संरक्षण देने का काम किया है। अपने समय में दिग्विजयनाथ उन सभी रूढ़ियों के विरोधी थे, जो धर्म के नाम पर समाज को तोड़ने का कार्य कर रही थीं। रही बात योगीजी के गुरु ब्रह्मालीन महंत अवैद्यनाथ की तो उनकी तो पूरी उम्र ही समाज को जोड़ने में गुजर गई।
सामाजिक समरसता को बढ़ावा देने के लिए उन्होंने लगातार दलितों के साथ या उनके घर जाकर सहभोज किए। विरोध के बावजूद सामाजिक समरसता का संदेश देने के लिए काशी के डोमराजा के घर साधु समाज एवं अन्य लोगों के साथ सहभोज किया। अयोध्या में रामजन्म भूमि के शिलान्यास के मौके पर दलित कामेश्वर चौपाल से पहली शिला रखवाना, पटना के महावीर मंदिर में दलित पुजारी की नियुक्ति आदि इसके प्रमाण हैं।
उनके शिष्य और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी अपने गुरु की ही परंपरा का अनुसरण करते हैं। न जाने कितनी बार सार्वजनिक रूप से उन्होंने कहा कि वे किसी जाति, पंथ या मजहब के विरोधी नहीं है बल्कि उनका विरोध उन लोगों से है जो राष्ट्र के विरोधी हैं।
जब एक मुस्लिम दर्जी पर हमले के विरोध में धरने पर बैठ गए थे योगी : करीब एक दशक पहले बात है। योगी तब गोरखपुर के सांसद थे और पीठ के उत्तराधिकारी। गोरखपुर के सबसे व्यस्ततम बाजार गोलघर में बदमाशों ने इस्माइल टेलर्स की दुकान पर ताबड़तोड़ फायरिंग कर पूरे शहर को दहला दिया था। योगी उस समय किसी कार्यक्रम में थे, जैसे ही उन्हें सूचना मिली वह गोलघर पहुंच गए और खराब कानून व्यवस्था को लेकर अपने समर्थकों के साथ धरने पर बैठ गए।
लोगों को हैरानी हो रही थी कि हिन्दुत्व का पोस्टर बॉय कहे जाने वाले योगी एक मुस्लिम व्यापारी के समर्थन में सड़क पर कैसे बैठ सकते हैं? कुछ लोगों ने योगी से पूछा भी, जिस पर योगी ने कहा कि व्यापारी मेरे लिए सिर्फ व्यापारी है और मैं गोरखपुर को 1980 के उस बदनाम दौर की ओर हरगिज नहीं जाने दूंगा।
मोदी की रैली के लिए खुद आगे आया मुस्लिम समाज : फरवरी 2014 के आम चुनाव में गोरखपुर में नरेंद्र मोदी की रैली होनी थी। फर्टिलाइजर का मैदान इस बड़ी रैली के अनुकूल था और सुरक्षित भी। उस समय केंद्र में कांग्रेस एवं प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार थी। योगी के प्रयास के बावजूद राजनीतिक वजहों से रैली के लिए वह मैदान नहीं मिल सका। उसी से सटे मानवेला में गोरखपुर विकास प्राधिकरण ने किसानों की जमीन का अधिग्रहण किया था। समय कम था और सामने दो बड़ी चुनौतियां पहली उस जमीन के आसपास के गांव मानबेला, फत्तेपुर और नौतन आदि गांव अल्पसंख्यक बहुल आबादी के थे, दूसरा उस जमीन को रैली के लिए तैयार करना था।
यह जगह फर्टिलाजर कारखाने के पूरबी गेट के पास ही थी। योगी जी की यह चिंता जब उर्वरक नगर के पार्षद मनोज सिंह तक पहुंची तो उन्होंने गांव के गणमान्य लोगों से बात की। उनकी पहल पर मानबेला के बरकत अली की अगुआई में एक प्रतिनिधिमंडल ने योगी से मुलाकात की। उनको भरोसा दिलाया कि वह रैली की तैयारियों में हर संभव मदद करेंगे। साथ ही बढ़-चढ़कर हिस्सा भी लेंगे। बाद में देश के बड़े अखबारों में यह खबर सुर्खियां बनीं।
मकर संक्रांति मेले में अधिकांश दुकानें मुस्लिम समाज की : मकर संक्रांति से शुरू होकर माह भर 'चलने वाले खिचड़ी मेले में तमाम दुकानें अल्पसंख्यकों की ही होती हैं। गोरखनाथ मंदिर से जुड़े प्रकल्पों में भी जाति, पंथ और मजहब का कोई भेदभाव नहीं है। हिंदू धर्म की सभी जातियों के साथ ही अल्पसंख्यक समुदाय के लोग भी अहम भूमिका में है। गोरखनाथ मंदिर में निर्माण और सम्पति की देखरेख करने वाले जिम्मेदार लोगों में से भी कई अल्पसंख्यक समुदाय के ही हैं। कुछ की तो दूसरी-तीसरी पीढ़ी है।