दुनिया रंगमंच है, शेक्सपियर ने कहा था, और साहित्य को समाज का दर्पण कहते हैं। सालों-साल से सुनी इन बातों पर तब यकीन करने का मन हो जाता है, जब एकदम नई पीढ़ी भी पूरी प्रतिबद्धता से कर्म करते हुए दिखती है। समांतर नाट्य संस्था भोपाल के कुछ एकदम युवा कलाकार 16 अक्टूबर को पुणे के सुदर्शन रंगमंच में डॉ. शंकर शेष लिखित हिंदी नाटक आधी रात के बाद को लेकर आ रहे हैं।
महाराष्ट्र में और वह भी मराठी भाषा के गढ़ कहे जाते पुणे में हिंदी नाटक को लेकर आने का मन कैसे हो गया के जवाब में नाटक में केंद्रीय भूमिका निभाने वाले आशुतोष मिश्रा कहते हैं हमारे नाट्य गुरु एवं मार्गदर्शक वरिष्ठ रंगकर्मी मुकेश शर्मा ने नाटक का पहला ही पाठ पढ़ाते हुए कहा था, “रंगकर्म संजीदा गतिविधि है और चुनौतियों से भरपूर”।
हमने भी उसे चुनौती की तरह स्वीकारा और नए प्रदेश में प्रवेश करने का मन बना लिया। इससे पहले के दोनों मंचन भोपाल में ही हुए थे जिसमें से एक तो अभ्यास प्रस्तुति था और दूसरा नाट्य समारोह में। इसका अगला मंचन 11 नवंबर को भोपाल में ही नाट्य समारोह के तहत शहीद भवन में होगा। बड़े शहर की बड़ी चुनौतियों के चलते पुणे में इसे देखने के लिए टिकट खरीदना पड़ेगा, लेकिन भोपाल में यह सबके लिए खुला है।
इस संस्था को तो 40 साल हो गए, लेकिन इस नाटक की टीम के एकदम 17 से 23 वर्ष आयु के कलाकार पिछले चार वर्षों से इस संस्था से जुड़े हैं। वे कॉलेज की पढ़ाई या नौकरी-पेशा संभालते हुए नाटक की रिहर्सल करते हैं। कुछ लोग थियेटर के साथ फ़िल्मों एवं वेब सीरीज़ में भी काम कर रहे हैं।
डॉ. शंकर शेष द्वारा लिखित इस नाटक का मुख्य पात्र एक चोर है, जो अपराधियों से छुपते-छुपाते जल्द से जल्द जेल जाने के इरादे से एक जज के घर में घुस जाता है। धीरे- धीरे चोर और जज के बीच बातचीत कुछ ऐसी चल पड़ती है कि चोर अपनी चोरियों के किस्से जज को सुनाने लगता है और जज भी रुचि लेने लगता है। कुछ समय के बाद किस्सा कुछ यों मोड़ लेता है, जिसका संबंध अदालत के उस फैसले से जुड़ा हुआ होता है,जिसे जज साहब अगले दिन सुनाने वाले हैं।
चोर तमाम सबूतों को जज के सामने पेश करता है, और सबूतों सहित पुलिस द्वारा गिरफ्तार हो जाता है। जज कानून का इतना पक्का है कि वह एक इंसान के रूप में दुनिया को देख ही नहीं पाता। लेकिन अंत अ तक आते-आते चोर, जज को एक इंसान के रूप में सोचने पर मजबूर कर ही देता है।
निर्देशक पीयूष पांडा कहते हैं कि यह नाटक कानून/ न्याय-व्यवस्था पर व्यंग्य है तो कटाक्ष भी। नाटक एक अदालत की कार्यवाही की तरह नज़र आता है, जिसमें कटघरे में जज साहब हैं, और आम जनता का प्रतिनिधित्व करते हुए चोर एक वकील की तरह जज साहब से न्याय व्यवस्था पर कई सवाल कर रहा है, और जज साहब उन सभी सवालों का जवाब कानून की कसौटी पर तोल कर देते हैं।
हर तरफ़ कानून और न्याय व्यवस्था की लपेट में हर बार गरीब ही क्यों आता है? सफ़ेदपोश लोगों तक कानून के हाथ क्यों नहीं पहुंच पाते? कुछ लोग संपन्न होने के बाद भी बड़े- बड़े गबन क्यों करते हैं? ग़रीबों की मजबूरी का फ़ायदा उठाकर उनकी जान के साथ खिलवाड़ क्यों करते हैं? फिर भी कोई उनके खिलाफ़ आवाज़ क्यों नहीं उठा पाता? इस नाटक में दो तरह के लोगों की मानसिकता दर्शाई गई है, एक वो जो पूरी सच्चाई जानते हुए भी कुछ नहीं कर पाते। और दूसरे वो जो सच्चाई जान लेने के बावजूद भी कानूनी दायरों के आगे विवश रहते हैं। नाटक में मूलतः दो ही मुख्य किरदार हैं, और एक पड़ोसी है जो आता-जाता रहता है। नाटक के किरदार हैं- चैतन्या सोनी, आशुतोष मिश्रा, सुमन मिश्रा, मानव आनंद, सतीश मलासिया, विकाश राठौर तथा मयंक पटेल। Edited: By NavinRangiyal/ PR