ज़ाणीव वृद्धाश्रम: जीवन की संध्या, शांति से गुजारे यहां

वृद्धाश्रम को महज़ वृद्धाश्रम जैसा नहीं होना चाहिए... 
 
वृद्धाश्रम को वृद्धाश्रम की तरह होना चाहिए...लेकिन कुछ लोग अलग तासीर के होते हैं, कुछ लोग अलग सोच के होते हैं, कुछ लोगों की अलग जाणीव (मराठी शब्द, अर्थ अनुभूति) होती है। अलग सोच की छह गृहणियां जब वर्ष 1994 में मिलीं तो उन्होंने सोचा वृद्धाश्रम को महज़ वृद्धाश्रम जैसा नहीं होना चाहिए...जहां लाचार, थकी,बूढ़ी आंखें पनाह पाने आएं बल्कि जो लोग परिवार के साथ रह सकते हैं,वे परिवार के पास लौट भी जाएं और यहां आने वाले किसी मजबूरी में नहीं, बल्कि जीवन के उत्सव को आखिरी क्षणों तक जीने की उम्मीद में आएं।
 
जीने की कद्र, वृद्धावस्था की कद्र उन महिलाओं को उस समय ही हो गई जब उनकी अपनी घर-गृहस्थी बड़ी तेज़ रफ़्तार से चल रही थी और उन्होंने जाणीव वृद्धाश्रम – ए सेकंड होम फ़ॉर सीनियर सीटिजंस की नींव रखी। उसे सेकंड होम की तरह ही तैयार किया गया जहां लोग इत्मीनान से अपना समय बिता पाएं। पुणे से
25 किलोमीटर दूर नगर रोड पर फूलगांव के पास बसा है वृद्धाश्रम ‘जाणीव। यह वृद्धाश्रम समयचक्र के साथ भूले-बिसरे लोगों का आश्रय स्थल न होकर वृद्धों को अपना घर लगता है। 

यह वृद्धाश्रम समयचक्र के साथ भूले-बिसरे लोगों का आश्रय स्थल न होकर वृद्धों को अपना घर लगता है। 
 
ट्रस्टी वीनू जमुआर बताती हैं, जब शुरुआत की तो मन में एक ही विचार था कि जीवन की सांझ शांति और सुकून से गुज़र जाए। वह संयुक्त परिवारों के टूटने का दौर था और तब भारत में वृद्धों की समस्याओं को लेकर इतना सोचा नहीं जाता था, न उस दौर में इतना सोचने की ज़रूरत किसी ने महसूस की थी लेकिन इन महिलाओं ने समय की करवट को भांप लिया था। लेकिन केवल सोचने से कुछ न होना था, उसके लिए जगह की ज़रूरत थी। तब प्रदीप रायसोनी ने 2.1 एकड़ की ज़मीन दान में दी। इसके बाद सपना जगा कि वहां 100 बुजुर्गों के रहने की व्यवस्था की जा सकेगी। तब युवा बापू काकड़े आगे आया। एक ऐसा युवा जिसे और कुछ नहीं चाहिए था, सिर्फ लगन से काम करना था। उसने सब संभाल लिया। ये महिलाएं बालू रेती खरीदने जातीं तो वह ड्राइवर बन जाता।
 
धीरे-धीरे एक-एक क्लस्टर तैयार होने लगा। ट्रस्टी अमिता शाह कहती हैं, सदाबाई बलदोटा की याद में 4 वृद्ध दंपत्ति रह सकें, उस परिवार ने यूनिट बनाकर दिया। चार कमरों का एक कॉटेज, कॉटेज के प्रत्येक कमरे में दो व्यक्तियों के रहने की व्यवस्था, आगे छोटा-सा बरामदा। परिसर में एक मंदिर और 800 किताबों की लाइब्रेरी भी है। डाइनिंग एरिया में सुबह 9 और शाम 4 बजे चाय-नाश्ता होता है।

आम के लकदक पेड़, जामुन, सीताफल, चीकू से लेकर पत्ता गोभी- फूलगोभी तक सारी सब्जियां यहां उगाई जाती हैं और पर्याप्त से अधिक होने पर बाज़ार में बेची जाती है, जिससे आने वाली राशि को वृद्धाश्रम के कार्यों में ही खर्च किया जाता है। शहर से दूर होने पर रात में जुगनुओं को देखने का भी यहां अपना आनंद है। एम्बुलेंस की सुविधा के साथ एक गाड़ी इसलिए भी उपलब्ध है कि यदि कुछ बुजुर्ग आसपास कहीं घूमने जाना चाहे या बैंक आदि के काम करना चाहें तो उस गाड़ी का उपयोग कर सकते हैं।
 
शुरुआती ट्रस्टियों में सुजाता जोशी हैं जो अब अपने बेटे के पास अमेरिका में रहती हैं। पूर्व अध्यक्ष बंसीलाल बी रायसोनी थे। वर्तमान अध्यक्ष सुनील बंसीलाल रायसोनी हैं और ट्रस्टियों में अमिता शाह, वीनु जमुआर, जयश्री पेंडसे, शोभा वोरा, विनीता गुंदेचा, संजय भारद्वाज तथा कल्पना रायसोनी हैं।

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