लद्दाख़ में चीन का हस्तक्षेप और मोदी की नीति

- प्रो. रामदेव भारद्वाज, कुलपति

कोरोनावायरस (Coronavirus) कोविड-19 महामारी के बीच भारत के साथ चीन का सीमा विवाद गहराता जा रहा है। लद्दाख में हालात चिंताजनक होते जा रहे हैं। भारत और चीन के हजारों सैनिक आमने-सामने हैं। दोनों ही देश सीमा पर टैंक, तोपें और गोला-बारूद जमा कर रहे हैं। भारत और चीन सीमा पर विगत एक माह से तनाव चल रहा है। पूर्वी लद्दाख पर अपनी सीमा के भीतर अपनी तरफ 30 किमी. की दूरी पर चीन लगातार भारी संख्या में सैनिकों और तोपों की तैनाती बढ़ाता जा रहा है। भारत ने भी चीन को जवाब देने के लिए अपनी पूरी तैयारी कर ली और लद्दाख की वास्तविक नियंत्रण रेखा सीमा पर भारतीय सेना ने बड़ी मात्रा में हथियार भी पहुंचा दिए हैं। पूर्वी लद्दाख की सीमा में अपनी सैन्य शक्ति में इजाफा कर चीन दोहरा चरित्र दिखा रहा है।

विश्व के राष्ट्रों और अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों का मानना है कि कोरोना संकट को लेकर हो रही चीन की आलोचना से बचने के लिए चीन ने राष्ट्रवाद और संप्रुभता को हथियार बनाया है। विशेषज्ञों ने चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग को चेतावनी दी है कि भारत के साथ तनाव बढ़ाने से उल्टा चीन को ही नुकसान होगा। आलेख का केंद्रीय विषय चीन के चरित्र को उजागर करना है जो मूलतः अविश्वसनीय है। लद्दाख़ में चीन हस्तक्षेप क्यों करता है?

चीन के इरादे क्या हैं? अभी तत्काल में चीन का लद्दाख़ इलाके में दखलंदाजी का क्या मतलब है? पैंगोंग त्सो झील जहां अभी तनाव है उसका भौगोलिक और रणनीतिक महत्व क्या है? चुशूल घाटी फिंगर क्षेत्र में भारत-चीन की सेनाओं के मध्य झड़पों का क्या कारण है? तात्कालिक घटनाक्रम क्यों हो रहा है? चीनी आक्रामकता के क्या कारण हैं? लद्दाख में प्रधानमंत्री मोदी ने क्या नीति अपनाई है और चीन क्या चाहता है? इन विषयों की विवेचना करने का एक विनम्र प्रयास किया गया है।

चीन का चरित्र : चीन का चरित्र मूलतः अविश्वसनीय है, संदेहास्पद, भ्रामक और कपटपूर्ण है। चीन कूटनीति का चतुर खिलाड़ी है। चीन जो दिखता है वह नहीं है औऱ जो है वह दिखता नहीं है। चीनी राजनय विश्व के प्राचीनतम राजनयों में एक है। वह अपने शत्रु से भी शत्रुता प्रदर्शित नहीं करता। चीन में एक प्राचीन राजनयिक सूक्ति है अगर आप किसी को धोखा देना चाहते हो तो पहले उसको अपना मित्र बनाओ, उसका विश्वास जीतो, उससे पूरा-पूरा लाभ लो और फिर घात करो, धोखा दो, उसे कलंकित और बदनाम करो। आज चीन की नीतियों और इसके व्यवहार अर्थात् वैश्विक संबंधों में चीन का मौलिक चरित्र चरितार्थ होता हुआ नजर आ रहा है। चीन की विदेश नीति, राजनय और अंतरराष्ट्रीय संबंधों की विशेषता है कि दक्षिण एशिया में भारत के सभी पड़ोसियों के साथ उसके बहुत ही मधुर और विश्वसनीय संबंध हैं। वहीं भारत के साथ संबंधों में उतार-चढ़ाव आते रहे हैं और संबंधों में सहयोग कम और विवाद अधिक की स्थिति बनी रहती है।

चीन का विवादों के साथ गहरा अन्योन्याश्रित संबंध है। इतिहास साक्षी है कि जहां चीन की उपस्थिति है और विवाद न हो ऐसा संभव नहीं। चीन अपनी विस्तारवादी नीति के कारण सदैव ही विवादों में रहा है। चीन की भौगोलिक सीमाएं 14 पड़ोसी देशों के साथ लगभग 22 हजार किलोमीटर तक लगती है, परंतु आश्चर्यजनक तो यह है चीन का इन सभी 14 देशों के साथ सीमा विवाद रहा है। चीन का इन पड़ोसी राष्ट्रों में युद्ध का भय दिखता है। चीन का 23 देशों के साथ विवाद चल रहा है। यद्द्पि चीन ने अपने 13 पड़ोसी देशों के साथ सीमा विवाद सुलझा लिया है, परंतु भारत के साथ चीन का सीमा विवाद अभी भी है।

लद्दाख में चीन : भारत-चीन सीमा विवाद को गहराई से समझने के लिए लद्दाख भू-सामरिक स्थित को जानना जरूरी है। लद्दाख़ जो ऊंचे दर्रो की भूमि के नाम से जाना जाता है, भारत का एक केंद्रशासित प्रदेश है, यह उत्तर में काराकोरम पर्वत और दक्षिण में हिमालय पर्वत के बीच में है। यह भारत के सबसे विरल जनसंख्या वाले भागों में से एक है। भारत अक्साई चीन को भी इसका भाग मानता है, जो वर्तमान में चीन के कब्ज़े में है। सन् 1909 के लद्दाख तहसील रेवेन्यूक मैप और चीन के सन् 1893 के आधिकारिक नक्शे से यह बात स्पष्ट हो जाती है कि अक्साई चीन, लद्दाख का हिस्सा था। एलएसी पर गलवान नदी घाटी जहां पर इस समय चीन के सैनिक मौजूद हैं, वह भी इन नक्शों में लद्दाख का हिस्सा नजर आ रहा है। हैरानी की बात है कि चीन का शासकीय अखबार ग्लोबल टाइम्स अपने एक आर्टिकल में लिखता है कि गलवान घाटी डोकलाम नहीं है और यह अक्साई चीन का हिस्सा है, जो शिनजियांग प्रांत में आता है।

ग्लोबल टाइम्स भले ही अक्साई चीन को चीन का हिस्सा बता रहा है, पर वह भारत का हिस्सा है। लेकिन सन् 1950 में चीन ने इस पर नियंत्रण कर लिया और अब वह एलएसी की स्थिति को बदलने की कोशिशों में लगा हुआ है। इतिहासकारों के मुताबिक सन् 1865 में भारत-चीन सीमा का ब्रिटिश सर्वेयर विलियम जॉन्सन ने सर्वे किया और जॉनसन लाइन के हिसाब से बताया कि अक्साई चीन जम्मू-कश्मीर का हिस्सा है। इसके बाद 1899 में एक और ब्रिटिश सर्वेयर ने अक्साई चीन को मैकार्ने मैकडोनल्ड लाइन के हिसाब से अक्साई चीन को चीन का हिस्सा बताया। 1947 में भारत विभाजन के समय डोगरा राजा हरिसिंह ने जम्मू कश्मीर को भारत में विलय की मंजूरी दे दी। पाकिस्तानी घुसपैठी लद्दाख पहुंचे और उन्हें भगाने के लिए सैनिक अभियान चलाना पड़ा। युद्ध के समय सेना ने सोनमर्ग से जोजीला दर्री पर टैंकों की सहायता से कब्जा किए रखा। सेना आगे बढ़ी और द्रास, कारगिल व लद्दाख को घुसपैठियों से आजाद करा लिया गया।

1949 में चीन ने नुब्रा घाटी और जिनजिआंग के बीच प्राचीन व्यापार मार्ग को बंद कर दिया। 1955 में चीन ने जिनजिआंग व तिब्बत को जोड़ने के लिए इस इलाके में सड़क बनानी शुरू की। उसने पाकिस्तान से जुड़ने के लिए कराकोरम हाईवे भी बनाया। भारत ने भी इसी दौरान श्रीनगर-लेह सड़क बनाई जिससे श्रीनगर और लेह के बीच की दूरी सोलह दिनों से घटकर दो दिन रह गई। हालांकि यह सड़क जाड़ों में भारी हिमपात के कारण बंद रहती है। वर्ष 1984 से लद्दाख के उत्तर-पूर्व सिरे पर स्थित सियाचिन ग्लेशियर भारत और पाकिस्तान के बीच विवाद की एक और वजह बन गया। यह विश्व का सबसे ऊंचा युद्धक्षेत्र है। यहां 1972 में हुए शिमला समझौते में पॉइण्ट 9842 से आगे सीमा निर्धारित नहीं की गई थी। यहां दोनों देशों में साल्टोरो रिज पर कब्जा करने की होड़ रहती है।

कुछ सामरिक महत्व के स्थानों पर दोनों देशों ने नियंत्रण कर रखा है, फिर भी भारत इस मामले में फायदे में है।
1979 में लद्दाख को कारगिल व लेह जिलों में बांटा गया। 1989 में बौद्धों और मुसलमानों के बीच दंगे हुए। कारगिल युद्ध (1999) के समय भारतीय सेना ने ऑपरेशन विजय का नाम दिया गया। इसकी वजह पश्चिमी लद्दाख मुख्यतः कारगिल, द्रास, मश्कोह घाटी, बटालिक और चोरबाटला में पाकिस्तानी सेना की घुसपैठ थी। इससे श्रीनगर-लेह मार्ग की सारी गतिविधियां उनके नियंत्रण में हो गईं। भारतीय सेना ने आर्टिलरी और वायुसेना के सहयोग से पाकिस्तानी सेना को लाइन ऑफ कंट्रोल के उस तरफ खदेड़ने के लिए व्यापक अभियान चलाया। 1990 के ही दशक में लद्दाख को कश्मीरी शासन से छुटकारे के लिए लद्दाख ऑटोनॉमस हिल डेवलपमेंट काउंसिल का गठन हुआ और अंततः 5 अगस्त 2019 को यह भारत का नौवां केंद्र शासित बन गया।

तात्कालिक घटनाक्रम : चीनी सैनिकों ने वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC)  पर तीन स्थानों को पार किया है। इनमें से प्रत्येक स्थान पर लगभग 2500 चीनी सैनिक मौजूद हैं। चीनी सेना ने पिछले दो सप्ताह में 100 से ज्यादा तंबू गाड़कर अपनी स्थिति को मजबूत किया है। बंकर बनाने वाली मशीनों को भी लाना चालू कर दिया है। 5 मई 2020 को पूर्वी लद्दाख में पैंगोंग लेक (Pangong Tso-Lack) के नजदीक भारतीय और चीनी सैनिकों में संघर्ष हुआ। इस दौरान चीन के तकरीबन 250 सैनिक, भारतीय जवानों के साथ भिड़ गए थे। इस भिड़ंत में दोनों देशों के लगभग 100 सैनिक घायल हो गए थे।

पैंगोंग त्सो का भौगोलिक/रणनीतिक महत्व : लद्दाखी भाषा में पैंगोंग त्सो (Pangong Tso) पैंगोंग का अर्थ है समीपता और तिब्बती भाषा में त्सो का अर्थ है झील। पैंगोंग त्सो लद्दाख हिमालय में 14,000 फुट से अधिक की ऊंचाई पर स्थित एक लंबी संकरी, गहरी, एंडोर्फिक (लैंडलॉक) झील है। पैंगोंग त्सो का पश्चिमी छोर लेह के दक्षिण-पूर्व में 54 किमी. दूर स्थित है और 135 किमी. लंबी यह झील बुमेरांग (Boomerang) के आकार में 604 वर्ग किमी. में फैली हुई है और अपने सबसे विस्तारित बिंदु पर यह 6 किमी. चौड़ी है। खारे पानी की यह झील शीतऋतु में जम जाती है, यह आइस स्केटिंग (Ice Skating) और पोलो के लिए एक उत्तम स्थान है। इसका जल खारा होने के कारण इसमें मछली या अन्य कोई जलीय जीवन नहीं है, परंतु यह कई प्रवासी पक्षियों के लिए एक महत्‍वपूर्ण प्रजनन स्थल है। इस झील का 45 किलोमीटर क्षेत्र भारत में स्थित है, जबकि 90 किलोमीटर क्षेत्र चीन में पड़ता है। वास्तविक नियंत्रण रेखा इस झील के मध्य से गुज़रती है। 19वीं शताब्दी के मध्य में यह झील जॉनसन रेखा के दक्षिणी छोर पर थी। जॉनसन रेखा अक्साई चीन क्षेत्र में भारत और चीन के बीच सीमा निर्धारण का एक प्रारंभिक प्रयास था।

LAC रेखा, पैंगोंग त्सो झील के मध्य से होकर गुजरती है, लेकिन भारत और चीन इसकी सटीक स्थिति के विषय में सहमत नहीं हैं। इस झील का 45 किमी. लंबा पश्चिमी भाग भारतीय नियंत्रण में, जबकि शेष चीन के नियंत्रण में है। भारत-चीन की सेनाओं के बीच अधिकांश झड़पें झील के विवादित हिस्से में होती हैं। पैंगोंग त्सो झील चुशूल घाटी के मार्ग में आती है, यह एक मुख्य मार्ग है जिसका चीन द्वारा भारतीय-अधिकृत क्षेत्र में आक्रमण के लिए उपयोग किया जा सकता है। भारत-चीन 1962 के युद्ध के दौरान यही वह स्थान था जहां से चीन ने अपना मुख्य आक्रमण शुरू किया था, भारतीय सेना ने चुशूल घाटी (Chushul Valley) के दक्षिण-पूर्वी छोर के पहाड़ी दर्रे रेज़ांग ला (Rezang La) से वीरतापूर्वक युद्ध लड़ा था।

चुशूल घाटी फिंगर क्षेत्र में झड़पें : चुशूल घाटी (Chushul Valley) यह केंद्रशासित प्रदेश लद्दाख क्षेत्र में चुशूल घाटी के दक्षिण-पूर्व में स्थित एक पहाड़ी दर्रा है। इसकी लंबाई लगभग 2.7 किमी., चौड़ाई 1.8 किमी. और ऊंचाई 16000 फुट है। वर्ष 1962 के भारत-चीन युद्ध में रेज़ांग ला कुमाऊं रेजिमेंट के 13 कुमाऊं दस्ते का अंतिम मोर्चा था। इस दस्ते का नेतृत्व मेजर शैतान सिंह ने किया था। इस युद्ध को 'रेज़ांग ला का युद्ध' नाम से जाना जाता है। पिछले कुछ वर्षों में चीनियों ने पैंगोंग त्सो के अपनी ओर के किनारों पर सड़कों का निर्माण भी किया है। चीन के निंग्ज़िया हुई (Ningxia Hui) स्वायत्त क्षेत्र की राजधानी यिनचुआन (Yinchuan) के दक्षिण-पश्चिम में मिनिंगज़ेन (Minningzhen) में PLA के हुआंगयांगटन (Huangyangtan) बेस में अक्साई चीन (भारत और चीन के मध्य विवादित क्षेत्र) में इस विवादित क्षेत्र का एक दो-स्तरीय मॉडल भी मौजूद है। यह चीन के लिए इस क्षेत्र के महत्‍व को स्पष्ट रूप से इंगित करता है। चुशुल घाटी (Chushul Valley) चुशूल केंद्रशासित प्रदेश लद्दाख के लेह ज़िले में समुद्र तल से 4,300 मीटर या 15,000 फीट की ऊंचाई पर स्थित एक गांव है। यह चुशूल घाटी में अवस्थित है। चुशूल घाटी रेज़ांग ला (दर्रा) और पांगोंग त्सो (झील) के पास स्थित है।

पैंगोंग लेक के उत्तरी किनारे को सेना फिंगर्स के नाम से पुकारती है क्योंकि यह हथेली जैसा आकार लिए हुए हैं और 8 हिस्सों में बंटी है। भारत कहता है कि 8वीं फिंगर से LAC की शुरुआत होती है जबकि इसका विरोध करते हुए इसे दूसरी फिंगर से शुरू होना बताता है। भारत का नियंत्रण चौथी फिंगर तक है। इस बार गलवां में हुई घुसपैठ भारत के लिए नई घटना थी। चीन की क्लेम लाइन यहीं से गुजरती है और यहीं पर ड्रैगन सैनिक मौजूद हैं। चीन के प्रतिउत्तर में भारत ने भी विगत चार वर्षों के दौरान भारत ने पूरे LAC पर रोड और लैंडिंग स्ट्रिप बिछाने का काम तेजी से किया है। यहां चीन की लगातार पैट्रोलिंग का भी भारत ने तेज विरोध शुरू कर दिया है और झड़पें बढ़ गई हैं।

क्षेत्र में विवाद : वर्ष 1999 में जब ऑपरेशन विजय के लिए इस क्षेत्र से सेना की टुकड़ी को कारगिल के लिए रवाना किया गया, तो चीन को भारतीय क्षेत्र के अंदर 5 किमी. तक सड़क बनाने का अवसर मिल गया। यह स्पष्ट रूप से चीन की आक्रामकता को इंगित करता है। वर्ष 1999 में चीन द्वारा निर्मित सड़क इस क्षेत्र को चीन के व्यापक सड़क नेटवर्क से जोड़ती है, यह G219 काराकोरम राजमार्ग से भी जुड़ती है। इन सड़कों के माध्यम से चीन की स्थिति भौगोलिक रूप से पैंगोंग झील के उत्तरी सिरे पर स्थित भारतीय स्थानों की उपेक्षा अधिक मज़बूत बनी हुई है। झील के उत्तरी किनारे पर उपस्थित पहाड़ यहां एक प्रमुख भूमिका निभाते हैं, जिसे सेना फिंगर्स (Fingers) के नाम से संबोधित करती है। भारत का दावा है कि LAC फिंगर 8 से जुड़ी है।

चीनी आक्रामकता के कारण : जल शक्ति के संदर्भ में इस क्षेत्र में कुछ वर्ष पहले तक इस क्षेत्र में चीन की स्थिति अधिक मज़बूत थी, लेकिन अब भारत ने बेहतर गति एवं तकनीक वाली नौकाएं खरीदी हैं, ताकि इस क्षेत्र में अधिक तेज़ी से आक्रामक प्रतिक्रिया की जा सके। यद्द्पि दोनों ओर से गश्ती नौकाओं के विस्थापन के लिए बेहतर ड्रिल की व्यवस्था मौजूद है। सामान्यतौर पर जब दो गश्ती दल आमने-सामने आते हैं तो एक बैनर ड्रिल (Banner Drill) का प्रदर्शन करते हैं जिसमें एक बैनर प्रदर्शित करते हुए दूसरे पक्ष से अपना क्षेत्र खाली करने के लिए कहा जाता है। परंतु पिछले कुछ वर्षों में जल के मुद्दों पर टकराव के कारण भी तनाव की स्थिति उत्पन्न हुई है। उच्च गति वाली नौकाओं के शामिल होने से स्पष्ट रूप से चीनियों के व्यवहार में अधिक आक्रामकता आई है, जिसके चलते पिछले कुछ वर्षों में इस क्षेत्र में अधिक तनाव की स्थिति देखने को मिली है।

चीन ने लद्दाख के पास नगारी कुंशा एयरपोर्ट पर पैंगयोंग लेक से करीब 200 किलोमीटर की दूरी पर तिब्बत में स्थित एक एयरबेस का निर्माण किया है। सैटेलाइट तस्वीर में रनवे को देखा जा सकता है तथा एयरबेस पर 4 लड़ाकू विमान खड़े दिख रहे हैं। संभावना है कि ये J-11 या J-16 हो सकते हैं जो रूसी सुखोई-27 या सुखोई-30 के वैरिएंट हैं। यह चीन के प्रमुख लड़ाकू विमान हैं और भारतीय सीमा से केवल 200 किलोमीटर दूर इनकी तैनाती वाकई भारत के लिए चिंता का विषय है। पैंगोंग त्सो और गलवान घाटी में भारत की स्थिति मजबूत है। इन दोनों विवादित क्षेत्रों में चीनी सेना ने अपने दो से ढाई हजार सैनिकों की तैनाती की है और वह धीरे-धीरे अस्थायी निर्माण को मजबूत कर रही है। कई क्षेत्रों में भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच तनाव की स्थिति बरकरार है। दोनों देशों के सैनिकों के बीच 2017 में डोकलाम में 73 दिन तक गतिरोध चला था। भारत और चीन के बीच 3,488 किलोमीटर लंबी एलएसी पर विवाद है। चीन अरुणाचल प्रदेश पर दावा करता है और इसे दक्षिणी तिब्बत का हिस्सा बताता है। जबकि भारत का कहना है कि यह उसका अभिन्न अंग है। चीन, जम्मू कश्मीर का पुनर्गठन किए जाने और लद्दाख को केंद्रशासित प्रदेश बनाने के भारत के कदम की निंदा करता रहा है। लद्दाख के कई हिस्सों पर बीजिंग अपना दावा जताता है।
लद्दाख में मोदी की नीति : लद्दाख में प्रधानमंत्री मोदी ने आक्रामक नीति का परिचय दिया है, परिणामस्वरूप चीन भारत के रुख से बेहद परेशान है। जब लद्दाख और सिक्किम में चीनी सैनिकों ने आक्रामक रवैया अपनाया तो प्रतिउत्तर में इस बार भारत ने भी वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर अधोसंरचना निर्माण कार्य को गति दी है। भारत ने गलवान घाटी तक सड़क निर्माण कर लिया है। लद्दाख में निर्मित दारबुक-श्योक-दौलत बेग ओल्डी रोड मैदानी इलाका देपसांग और गलवान घाटी तक पहुंचता है। इसे सीमा सड़क संगठन (BRO) ने बनाया है। बीआरओ भारत सरकार की वह एजेंसी है जो अपने देश के साथ-साथ पड़ोसी मित्र देशों के सीमाई इलाकों में रोड नेटवर्क तैयार करती है। इसी संगठन ने ठीक एक वर्ष पहले दारबुक-श्योक-दौलत बेग ओल्डी रोड का काम पूरा कर दिया। दारबुक-श्योक-दौलत बेग ओल्डी रोड देसपांग तक 255 किमी तक लंबी रोड है। इसका ज्यादातर हिस्सा यांग्त्से और श्योक नदी के किनारे-किनारे ही बिछा है। काराकोरम श्रेणी की पर्वत श्रृंखला में कई हिमनद (ग्लेशियर) और बर्फीली झीलें हैं जो सड़क के साथ-साथ लगती हैं। इन ग्लेशिरों और झीलों का बर्फ पिघलता है और पानी घाटी में बहता है। इससे इलाके में बर्फ और जमीन खिसकने की घटनाएं होती रहती हैं। इससे अक्सर नदी के बहाव की दिशा बदल जाती है।

इन परिस्थितियों में सड़क बनाना कोई आसान काम नहीं है। यहां कई नदियां और नाले हैं। लद्दाख में श्योक आखिरी इलाका है जहां बस्ती बसी है। इस सड़क का टर्मिनल पॉइंट दौलत बेग ओल्डी काराकोरम दर्रे से नजदीक 16,750 फुट ऊंचाई पर स्थित है। यहां न्यूनतम तापमान माइनस 55 डिग्री तक चला जाता है। यहां संपर्क मार्ग बनाने के लिए 37 पुलों का निर्माण करना पड़ा। श्योक नदी पर बना एक पुल 1,400 फुट का है। इसके लिए माइक्रो पाइलिंग टेक्नॉलाजी के इस्तेमाल से पुल की नींव तैयार की गई। गर्व की बात यह है कि बीआरओ ने इस सड़क का निर्माण 14 महीने के रेकॉर्ड टाइम में पूरा कर दिया। इसके लिए 1,800 से ज्यादा टुकड़िया और 3,500 से ज्यादा श्रमिकों की सेवा ली गई।

ऊंचाई वाले जिन इलाकों में काम हुआ, वहां की जलवायु ऐसी है, जिसमें काम करने के लिए विशेष ट्रेनिंग की जरूरत पड़ती है। इसके तहत पहले करीब 7 दिनों तक 9 हजार फुट, फिर अगले सात दिनों तक 12 हजार फुट और आखिरी सात दिनों तक 14 हजार फुट पर काम करने की ट्रेनिंग दी जाती है। इस शेड्यूल से कोई समझौता नहीं होता है। काम सर्दियों में जारी रहता है। तब बर्फ हटाने का अभियान चलता है और कर्मचारी पूरे साल ड्यूटी पर रहते हैं। दारबुक-श्योक-दौलत बेग ओल्डी रोड का काम तेज रफ्तार से पूरा करने के लिए सॉइल स्टेबलाइजेशन मेथड को सफलतापूर्वक लागू किया गया। अब यह सड़क दौलत बेग ओल्डी तक पूरी तरह जुड़ चुका है।

मोदी नीति से परेशान चीन : गलवान घाटी तक सड़क निर्माण के करण चीन आगबबूला हुआ है तथा चीन ने लगातार आक्रामक रुख अपनाया हुआ है। क्योंकि सड़क निर्माण के कारण चीन को इस इलाके में अब खुली छूट नहीं मिल पाएगी। दौलत बेग ओल्डी में अब भारतीय वायुसेना का C-130J मीडियम एयरलिफ्ट एयरक्राफ्ट भी उतर सकता है। चीन की बौखलाहट का एक और कारण है कि मोदी सरकार के कार्यक्रम में  भारत बॉर्डर एरियाज में इन्फ्रास्ट्रक्चर तैयार करने के अभियान को आगे बढ़ाते हुए 3,346 किमी. लंबा 61 भारत-चीन बॉर्डर रोड (ICBR) बना रहा है। इस सड़क का महज 40 किमी. का हिस्सा ही बनाना रह गया है। अप्रैल 2018 में इस इलाके में सिर्फ 28 सड़कें ही थीं लेकिन हाल के दिनों में इस तरफ सरकार का विशेष ध्यान केंद्रित होने के कारण 2019 में 5 सड़कें बनकर पूरी हो गईं जबकि इस वर्ष 11 और सड़कों का निर्माण कार्य जारी है।

योजना के मुताबिक, 2021 में नई 9 सड़कें और मार्च 2022 में 6 और नई सड़कों का निर्माण हो जाएगा। बॉर्डर एरियाज में इन्फ्रास्ट्रक्चर तैयार करने को लेकर केंद्र सरकार की गंभीरता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 2009 से 2014-15 तक बीआरओ को करीब 4 हजार करोड़ रुपए का बजट मिलता रहा जो पिछले कुछ वर्षों से लगातार बढ़ने लगा है। 2018 में बीआरओ को 5,400 करोड़ रुपए और 2019-10 में 8 हजार करोड़ रुपए का बजट मिला और उम्मीद की जा रही है कि 2020-21 में उसे 10 हजार करोड़ रुपए का बजट मिलेगा। साथ ही, कैपिटल फंड में भी वृद्धि हुई है। बीआरओ बेहद दुरूह इलाकों और विपरीत मौसमी परिस्थितियों में बेहद समर्पण भाव से काम कर रहा है। वह सशस्त्र बलों, राज्य सरकारों, भारत सरकार और सीमाई इलाकों के निवासियों की उम्मीदों पर पूरी तरह खरा उतर रहा है।

लद्दाख में कई मुद्दों को लेकर भारत ने चीन को समुचित उत्तर देने की तैयारी की है। लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (LAC) पर चीन को उसी की भाषा में जवाब देते हुए भारतीय सेना को तंबू लगाकर तैनात कर दिया गया है। इससे LAC पर तनाव बढ़ा हुआ नजर आ रहा है। इससे पहले चीन ने पैंगोंग झील (Pangong Tso Lake) के पास टेंट लगाए थे, जिसके बाद भारत ने भी यहां सैन्य गतिविधियां बढ़ा दी हैं। मोदी सरकार दृढ़ संकल्पित है कि वह सीमा पर अपनी विकास गतिविधियों को नहीं रोकेगा। वस्तुस्थिति यह है कि लद्दाख में गलवां नामक एक घाटी है। इसको लेकर चीन आक्रामक है क्योंकि इसके नजदीक भारत के कई रक्षा संबंधी प्रोजेक्ट्स मौजूद हैं। यहां धारचुक से श्योढक के जरिये दौलत बेग ओल्डी के लिए सड़क बनी हुई  है और दौलत बेग ओल्डी में एंडवास्ड  लैंडिंग ग्राउंड (ALG) बना हुआ है।

यह ALG दुनिया की सबसे ऊंचाई पर मौजूद हवाई पट्टी है। इस हवाई पट्टी पर Indi C-130 ग्लोगबमास्टर एयरक्राफ्ट तक को लैंड किया जा सकता है। इसकी वजह से यह स्थान रणनीतिक रूप से भारत के लिए यह बेहद अहम है। इतना ही नहीं यह सड़क भारत को कराकोरम हाईवे से भी जोड़ती है और चीन को इसे लेकर भी परेशानी है। यह सड़क वर्ष 2019 में पूरी बन चुकी है। LAC पर बढ़ते तनाव की स्थिति की समीक्षा करने के लिए उत्तरी सेना के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल वाईके जोशी मंगलवार को लद्दाख गए। तनाव के कारण भारतीय सेना ने क्षेत्र में दो अतिरिक्त डिवीजन स्ट्रेंथ स्थानांतरित कर दिया है ताकि भारत-चीन के मुकाबले में बराबर की हैसियत में हों।

सैनिकों ने अपने एक्लेमेटाइजेशन की प्रक्रिया को पूरा कर लिया है और गालवान घाटी, बड़ा हॉट स्प्रिंग एरिया और पैंगोंग झील के फिंगर एरिया के साथ चीनी बिल्ड-अप का मुकाबला करने के लिए तैनात कर दिए गए हैं। जबकि लद्दाख की देखरेख करने वाले सेना प्रभाग 14 कोर के पास पहले से पर्याप्त टैंक और हथियारों के भंडार हैं। भारतीय वायुसेना ने भी लद्दाख में सुखोई और मिराज के साथ अपनी उड़ान बढ़ा दी है, क्योंकि चीन ने अपनी तरफ से उड़ान बढ़ा दी है। इसे मिरर डिप्लॉयमेंट कहते हैं, बराबरी का दमखम। चूंकि चीनी सैनिकों का जमावड़ा बढ़ाया जा रहा है तो भारत को भी आगे आकर सबकुछ दुरुस्त करना पड़ रहा है।

अब बार्डर पर हमारी सेना भी पर्याप्त संख्या में है। हालांकि अभी भी इस विवाद का हल बातचीत से निकालने की कोशिश हो रही है। सैन्य चैनलों के साथ-साथ सेना के स्तर पर, स्थापित चैनलों के माध्यम से वार्ता की जा रही है। अभी गालवान और बड़ा हॉट स्प्रिंग एरिया में स्थिति नियंत्रण में है। मुख्य समस्या पैंगोंग झील के आसपास है। पैंगोंग झील के उत्तरी बैंक का 134 किमी. का हिस्सा हथेली की तरह बाहर निकलता है और विभिन्न प्रोट्रूशियंस को ‘उंगलियों’ के रूप में पहचाना जाता है। चीनी फिंगर 3 और 4 के बीच विवादित क्षेत्र के बीच आए हैं और भारतीयों को आगे गश्त करने से रोकने के लिए टुकड़ी के निर्माण के साथ खाई जैसा निर्माण किया है। यह विवाद इस तथ्य में निहित है कि भारत का दावा है कि एलएसी फिंगर 8 पर है जबकि चीनी कहते हैं कि यह फिंगर 2 पर है।

चीन की मांग : चीन चाहता है कि भारत अपने क्षेत्रों में इन्फ्रास्ट्रक्चर का काम बंद करे। विवाद की वजह ये हैं कि चीनी सैनिक कई बार भारतीय सीमा में घुस आते हैं। हमारे सैनिकों से इनकी हाथापाई होती है। भारत ने सेना की रिजर्व डिवीजन को लद्दाख में तैनात कर दिया है। ये वो सैनिक हैं जिन्हें ऊंचाई या पहाड़ी इलाकों में जंग की महारत हासिल है। शुरुआत में कोरोना महामारी की वजह से कुछ दिक्कतें थीं लेकिन अब एयरक्राफ्ट्स और सड़क के जरिए फौज भेज दी गई है। सूत्रों ने ये भी साफ कर दिया कि भारत शांति तो चाहता है लेकिन अपनी सीमा में किसी की दखलंदाजी कतई बर्दाश्त नहीं की जाएगी।

तनाव कैसे समाप्त हो? : भारत और चीन के बीच सीमा से संबंधित मसले सुलझाने के लिए चार माध्यम हैं। इनमें से दो 1993 और 1996 में बने। 2005 और फिर 2013 में भी इससे संबंधित प्रगति हुई। सीबीएम (कॉन्फिडेंस बिल्डिंग मेजर्स) भी है। इन्हीं समझौतों के आधार पर दोनों देश बातचीत करके सीमा विवाद सुलझाते आए हैं। प्रधानमंत्री मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच भी बैठकें हो चुकी हैं। इनमें भी सीमा विवाद बातचीत से सुलझाने पर सहमति बनी। चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता लीजन झाओ ने स्पोष्ट किया कि चीन दोनों देशों के नेताओं के बीच बनी सर्वसम्मति को लागू किया जा रहा है। हमारे पास निर्बाध माध्यम हैं और उम्मीद करते हैं कि हम वार्ता और चर्चा के जरिए संबंधित मुद्दे का समाधान कर सकते हैं।

उन्होंने यह बात रक्षामंत्री राजनाथ सिंह की टिप्पणी से संबंधित सवाल के जवाब में कही। सिंह ने कहा था कि भारत सीमा मुद्दे पर अपनी गरिमा पर आंच नहीं आने देगा। सेना की उत्तरी कमान के पूर्व कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल डी. एस. हुड्डा (अवकाश प्राप्त) का कहना है कि  यह गंभीर मामला है। यह सामान्य तौर पर किया गया अतिक्रमण नहीं है। लेफ्टिनेंट जनरल हुड्डा ने विशेष रूप से इस बात पर बल दिया कि गलवान क्षेत्र पर दोनों पक्षों में कोई विवाद नहीं है, इसलिए चीन द्वारा यहां अतिक्रमण किया जाना चिंता की बात है।

वेबदुनिया पर पढ़ें

सम्बंधित जानकारी