हनुमानजी की रामभक्ति शब्दातीत है। अवर्चनीय है। वे राम के समक्ष सिर्फ घुटने के बल बैठे ही नहीं हैं बल्कि सेवक की भावना से ओतप्रोत हैं। यही विश्वास भगवान राम का भी हनुमान के प्रति दिखाई दिया है। यही वजह है कि सीता की खोज की जिम्मेदारी बगैर संशय के हनुमान को सौंपी जाती है। जबकि राम तब तक जान चुके थे कि जानकी को जंगली जानवर नहीं ले गया बल्कि किसी अन्य पुरूष द्वारा उन्हें अपह्रत कर लिया गया है।
ऐसे में सीता की खोज वे एक पुरूष को सौंपते हैं। राम का हनुमान पर अनन्य विश्वास विषम परिस्थिति में भी विश्वास की लौ को जलाए हुए है। हनुमान ने भी बड़ी ही दुश्कर स्थिति में अनुमानों के आधार पर सीता को खोज निकाला। इस दौरान उनका अनेक महिलाओं से सामना हुआ। सबसे पहले लंका की सुरक्षा की जिम्मेदारी निभाती लंकिनी से उनका सामना होता है, जहां वे लंका की कड़ी चौकसी के बीच मच्छर बनकर अंदर प्रवेश करने की कोशिश करते हैं और चौकस लंकिनी उन्हें पकड़लेती है। यहां वे एक योद्धा की तरह ही लंकिनी से लड़ते हैं और लंका में प्रवेश करते हैं। वे स्त्री की शारीरिक कमतरी न समझते हुए उतनी ही ताकत से मुष्ठी प्रहार करते हैं और लंकिनी को लहूलुहान कर देते हैं।
आगे उन्हें सुरसा, त्रिजटा मंदोदरी आदि अनेक महिलाएं मिलती हैं। परिस्थिति अनुसार वे उनसे मिलते हुए अंततोगत्वा सीता जी के पास पहुंच जाते हैं। इस कथ्य के पीछे मंशा यही है कि हनुमानजी यदि स्त्री के प्रति कोई दुर्भावना रखते या उनसे परहेज रखते, तो भगवान राम की सीता के खोज की आज्ञा की अवेहलना कर सकते थे।
हनुमान जी के जिन गुणों के लिए पुरूष वर्ग उन्हें पूजता है जैसे आत्मविश्वास, निर्भयता, ज्ञान, सेवाभाव, विनम्रता आदि यह गुण स्त्रियों की भी जरूरत है। अतएव उन्हें मंदिरों में जाने से रोकना या पूजा को अवांछनीय बताना सरासर गलत है।