राहुल गांधी के हिन्दू धर्म लेख को कैसे देखें

कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और वर्तमान में शीर्ष सक्रिय नेता राहुल गांधी की पिछले काफी दिनों से एक बहुआयामी व्यक्तित्व की छवि अंकित कराने की कोशिश हो रही है। हिन्दू धर्म से संबंधित उनके दो पृष्ठों का आलेख और फिर हरमंदिर साहिब में माथा टेकना, उसी का अंग है। 
 
राजनीति में हर नेता को अपनी छवि निर्मित करने के लिए सभी तरह की रणनीति अपनाने की परंपरा है। चूंकि कांग्रेस को राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा का सामना करना है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के रूप में स्थापित बहुआयामी छवि और चरित्र वाले नेता सामने हैं, इसलिए भी राहुल गांधी के रणनीतिकारों की इन कोशिशें को राजनीति की दृष्टि से गलत नहीं कहा जा सकता है। 
 
प्रधानमंत्री मोदी की भारत सहित विश्व भर ऐसी छवि लोगों के मन में अंकित है जो हिन्दुत्व विचारधारा के प्रति दृढ़ है, भारत की विरासत, इतिहास, धर्म, परंपरा सबको मुखर रूप में रखता है तो दूसरी ओर आधुनिक ज्ञान-विज्ञान, तकनीक, विकास आदि में भी उच्च श्रेणी का व्यवहार और कल्पनाशीलता साबित करता है। भारत में अकेले कोई एक ऐसा नेता नहीं जो राष्ट्रीय स्तर पर उनके समक्ष स्वयं को वैसा साबित कर सके। कांग्रेस के रणनीतिकारों को यह बात समझ में आई तो इसे अस्वाभाविक नहीं कहा जा सकता। तो क्या राहुल गांधी को नरेंद्र मोदी के समानांतर सही दिशा और गति से आगे बढ़ते देखा जा सकता है?
 
जहां तक राजनीति का प्रश्न है राहुल गांधी सबसे पहले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और उसकी हिन्दुत्व प्रेरित विचारधारा के विरुद्ध प्रखर तीखे विरोधी के रूप में सामने आते हैं। उन्होंने हिन्दुत्व शब्द की न जाने कितनी बार आलोचना की। वीर सावरकर के विरुद्ध वह लंबे समय से आग उगल रहे हैं। हालांकि आईएनडीआईए का ध्यान रखते हुए वे महाराष्ट्र में शिवसेना-उद्धव, शरद पवार के आग्रह पर इन पर खामोशी धारण किए हुए हैं। 
 
उनके सलाहकारों और रणनीतिकारों ने उन्हें अहसास कराया कि आप मोदी के समानांतर तभी राष्ट्रीय नेता हो सकते हैं जब इस विचारधारा के बिल्कुल विपरीत ध्रुव पर सबसे ज्यादा प्रखर विरोध करते हुए दिखें। उनकी राष्ट्रवाद से लेकर हर उस विंदु पर विचार सामने लाए गए जिसे संघ, भाजपा या उस संगठन परिवार ने देश के समक्ष रखे हैं। 

2018 में राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ चुनाव के पूर्व जगह-जगह मंदिरों में गए, उनकी एक जनेऊधारी ब्राह्मण की तस्वीर भी सामने आई और सबसे बढ़कर उन्होंने कैलाश मानसरोवर की यात्रा की। 2019 लोकसभा चुनाव के साथ वह दौर लगभग खत्म हो गया क्योंकि कांग्रेस को लोकसभा चुनाव में उसका लाभ नहीं मिला।
 
उसके बाद से राहुल गांधी की नरेंद्र मोदी और भाजपा के समानांतर राजनीतिक रणनीति का दूसरा दौर शुरू हुआ जिसमें भारत जोड़ो यात्रा सबसे बड़ा प्रयास था। उस दौरान उन्होंने वो सारी बातें रखीं, जो उनकी दृष्टि में लोगों के अंदर यह भाव पैदा कर सकता था कि राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस एक ऐसी विचारधारा के प्रति दृढ़ होकर काम कर रही है जो संघ भाजपा विरोधी है। 

भाजपा के राष्ट्रवाद की काट के लिए उन्होंने चीन की सीमा तक पूरे लद्दाख क्षेत्र की यात्रा की। उनका लेख शायद इसको बताने के लिए है कि हिन्दू धर्म को न जानने या हिन्दू विरोधी होने कि उनकी छवि झूठी गढ़ी गई है। वैसे हरमंदिर साहिब में राहुल गांधी भारत जोड़ो यात्रा के बीच भी गए थे। पंजाब की राजनीति में कांग्रेस हाशिए पर है तथा इस समय आईएनडीआईए का भाग होते हुए भी आम आदमी पार्टी के साथ प्रदेश में कांग्रेस का तीखा संघर्ष चल रहा है। यहां इस विषय में विस्तार से जाना जाना प्रासंगिक नहीं होगा। 
 
राहुल गांधी के हिन्दू धर्म पर लिखे लेख की पंक्तियां या शब्दों की कहानी विवेचना भी आवश्यक नहीं है। उन्होंने जो कुछ लिखा है वह सब हिन्दू धर्म से ही संबंधित हैं। किंतु कोई कहे कि हिन्दू धर्म संपूर्ण रूप से इसमें समाहित हो गया तो उस पर टिप्पणी की आवश्यकता नहीं। 

हिन्दू धर्म या हिन्दुत्व की व्यापकता असीम है। इसकी व्याख्या आप जैसे भी करें उनके बहुतेरे अंश हिन्दू धर्म की सोच में फिट होंगे। हिन्दू धर्म में आस्तिक-नास्तिक से लेकर संपूर्ण धार्मिक विचारों को नकारने तक की स्वीकृति है। मनुष्य ही नहीं संपूर्ण ब्रह्मांड के चर-अचर, दृश्य -अदृश्य में ऐसा कोई पक्ष नहीं जिस पर किसी न किसी हिन्दुत्व के ग्रंथ में गहन चर्चा नहीं है। 
 
हिन्दू धर्म से संबंधित लेख में उनके विचारों को गलत साबित किया ही नहीं जा सकता। किंतु एक लेख से राहुल गांधी या कोई जनता के अंतर मन में यह छवि स्थापित नहीं कर सकते कि हिन्दू धर्म के बारे में उनका ज्ञान संपूर्ण है एवं अपने जीवन में उसका शब्दशः पालन करते हैं। इनमें कुछ ऐसे शब्द है जिनका प्रयोग राहुल गांधी के माध्यम से पहली बार हुआ है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हिन्दुत्व या हिन्दू धर्म पर राष्ट्रीय चुनावी राजनीति में पदार्पण के बाद कोई लेख लिखा हो यह संज्ञान में नहीं आता। केंद्र सरकार और भाजपा की राज्य सरकारों की नीतियों से यह झलकता है कि वो अपनी हिन्दुत्व विचारधारा पर वर्तमान संविधान एवं राजनीतिक-प्रशासनिक ढांचे के तहत कुछ कर रहे हैं। कांग्रेस पार्टी ने भाजपा के समानांतर स्वयं को हिन्दू धर्म एवं विचार के प्रति निष्ठावान साबित करने की कोशिश लंबे समय से की है। 

वर्तमान समय में ही मध्य प्रदेश से लेकर छत्तीसगढ़ और राजस्थान के चुनावों में नेताओं के बयान, उनकी वेशभूषा, घोषणाएं, कदमों आदि में यह स्पष्ट दिखाई देता है। बावजूद छवियां बनतीं हैं कि ये बीजेपी की चुनौती में ही ऐसा कर रहे हैं जिसमें स्वाभाविकता का अभाव है।
 
कांग्रेस के रणनीतिकारों के लिए आवश्यक है कि राहुल गांधी या दूसरे नेता हिन्दू, हिन्दुत्व, हिन्दू धर्म आदि पर भाजपा की प्रतिक्रिया में चरित्र गढ़ते न दिखें। ऐसा अब तक नहीं हुआ है। संभव है इससे भाजपा विरोधियों का कुछ वोट कांग्रेस को मिल जाए लेकिन हिन्दू धर्म केवल वोट का विषय नहीं है। डॉक्टर केशव बलिराम हेडगेवार ने जब संघ की स्थापना की तो वह अपने क्षेत्र के कांग्रेस के प्रतिष्ठित नेता थे। 
 
कांग्रेस के अंदर या बाहर नया राजनीतिक दल बनाकर हिन्दू राष्ट्र, हिन्दुत्व की राजनीति कर सकते थे। उन्होंने कभी राजनीतिक दल बनाने की बात तक नहीं की। आधार भूमि ऐसी बनाई कि संघ प्रत्यक्ष रूप से कभी राजनीति में न पड़े। आज भी आरोप जितना लगा दें, मैंने संघ के केंद्रीय नेतृत्व का दलीय राजनीति पर बयान कभी नहीं देखी। वे कभी किसी को वोट डालने या न डालने की अपील नहीं करते। मुद्दों पर पक्ष विपक्ष में अपना मत अवश्य रखते हैं। 
 
इसी तरह हिन्दू राष्ट्र शब्द प्रयोग करने वाले अनेक संगठन सीधे राजनीति में नहीं गए। हिन्दू महासभा जैसे संगठन इसके अपवाद रहे। भारतीय राष्ट्र की दृष्टि से हिन्दू धर्म, हिंदू, हिन्दुत्व आदि के मायने अत्यंत गंभीर है। राहुल गांधी अगर स्वयं को निष्ठावान हिन्दू मानते हैं और उनके लेख हिन्दू धर्म की व्याख्या हैं तो भारतीय राष्ट्र के संदर्भ में वह इसे चरितार्थ करने के लिए क्या कर रहे हैं, करेंगे यह भी देश के सामने स्पष्ट होना चाहिए। 
 
उदयनिधि स्टालिन और उसके बाद सनातन विरोधी दिए गए बयानों पर राहुल गांधी ने अपना मत अभी तक स्पष्ट नहीं किया है। सबसे बड़ी बात कि राहुल गांधी ने अपने लेख में लिखने का कोई उद्देश्य नहीं बताया है। यानी आपको आज यह लेख क्यों लिखना पड़ा यह भी आना चाहिए था। साधु-संत कभी भी धर्म की व्याख्या कर सकते हैं लेकिन कोई राजनीतिक नेता है तो उसे बताना चाहिए कि वह इस समय क्यों ऐसा कर रहा है? 
 
आम धारणा नहीं है कि संघ के देश और विदेश में लंबे समय तक किए गए परिश्रम तथा भाजपा के सत्ता में आने के बाद से हिन्दुत्व के पक्ष में निर्मित माहौल को देखकर ही कांग्रेस व दूसरी पार्टियां चुनावी रणनीति की दृष्टि से स्वयं को उसे श्रेणी में उससे अलग सोच के साथ शामिल करने का प्रदर्शन कर रही है। यानी उनका हिन्दू धर्म गलत और हमारा सही। इतने गंभीर विषय को केवल राजनीति की प्रतिद्वंद्विता तक सीमित न रहकर उसकी नीतिगत एवं व्यवहारिक स्वीकृति का पक्ष भी सामने लाना चाहिए।

(इस लेख में व्यक्त विचार/विश्लेषण लेखक के निजी हैं। 'वेबदुनिया' इसकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं लेती है।)

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