वह मात्र 21 साल की युवती है। आंखें जन्मजात ज्योतिहीन हैं, पर गला मिठास से भरा है। स्मरणशक्ति और सांगितिक प्रतिभा ऐसी कि तीन साल की आयु से ही गाने-बजाने लगी। बड़ी होने पर अब अपनी मातृभाषा जर्मन में या अंग्रेज़ी में ही नहीं, संस्कृत सहित भारत की भी आधे दर्जन से अधिक भाषाओं में गाती है।
संक्षेप में 'कैसमी' (CassMae) के नाम से प्रसिद्ध, कसांद्रा मे श्पिटमान को दुनियाभर में सोशल मीडिया पर देखने-सुनने वाले चार लाख से अधिक प्रशंसक हैं। सबसे विशिष्ट प्रशंसक हैं, भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी। सितंबर 2023 के अपने पोडकास्ट 'मन की बात' में मोदीजी ने कसांद्रा की खूब प्रशंसा की। 'भारत की जर्मन बेटी' बताते हुए संस्कृत में उनके गायन की एक बानगी 'नमः शिवाय' से इस प्रशंसा की शुरुआत की।
मोदीजी ने कहा कि कसांद्रा की सुरीली आवाज़ के हर शब्द में जो भाव झलकते हैं, उनमें ईश्वर के प्रति लगाव हम साफ़ अनुभव कर सकते हैं। आप हैरान होंगे कि यह सुरीली आवाज़ जर्मनी की एक बेटी की है। इन दिनों इंस्टाग्राम पर खूब छाई हुई है। वे कभी भारत नहीं आई हैं, लेकिन भारतीय संगीत की दीवानी हैं। जिसने भारत को कभी देखा तक नहीं, उसकी भारतीय संगीत में यह रुचि बहुत ही प्रेरणादायक है।
प्रधानमंत्री मोदी कसांद्रा की गायकी से इतने प्रभावित लगे कि उन्होंने 'भारत की जर्मन बेटी' की पृष्ठभूमि से भी सबको अवगत करा दिया। अपने श्रोताओं को बताया कि वे जन्म से ही देख नहीं पाती हैं, लेकिन यह मुश्किल चुनौती उन्हें असाधारण उपलब्धियों से रोक नहीं पाई। भारतीय संगीत से परिचय 5 ही साल पहले हुआ था।
भारतीय संगीत ने उन्हें इतना मोह लिया कि उसमें पूरी तरह से रम गईँ। तबला बजाना भी सीखा। सबसे प्रेरणादायक बात तो यह है कि वे कई भारतीय भाषाओं में गाने में महारत हासिल कर चुकी हैं। संस्कृत, हिंदी, मलयालम, तमिल, कन्नड़ या फिर असमी, बंगाली, मराठी, उर्दू, इन सबमें अपने सुर साधे हैं। मोदीजी ने कसांद्रा के ही स्वर में कन्नड़ भाषा में गाया एक गीत भी सुनाया।
कसांद्रा मे श्पिटमान का जन्म 10 मई, 2002 के दिन जर्मनी के डुइसबुर्ग शहर में हुआ था। विधाता ने जन्मते ही नेत्र ज्योति से वंचित तो कर दिया, पर लगता है कि अपनी इस भारी भूल पर पछताते हुए गायन और स्मरण की प्रतिभा से कसांद्रा की झोली भर दी। देख या पढ़ सकने से असमर्थ होते हुए भी इस विलक्षण युवती को भारतीय भाषाओं वाले अपने सारे गीत याद हैं।
हर भारतीय भाषा के शब्दों का उच्चारण इतना साफ़ और सटीक कि कई बार स्वयं भारतीयों को भी अपने ग़लत उच्चारण पर शर्म आने लगे। विश्वास करना कठिन हो जाता है कि मात्र 21 साल की कोई जर्मन युवती इतनी सारी भारतीय भाषाओं के शब्दों के इतने शुद्ध उच्चारण भला कैसे कर लेती है! उसे इतनी अलग-अलग भाषाओं के गीत, भजन या स्तोत्र कैसे कंठस्थ हैं! यही कहना पड़ता है कि कसांद्रा अपने आप में एक चमत्कार हैं।
जन्म के समय से ही नेत्रबाधित होने के कारण कसांद्रा ने चलने-फिरने के लिए अपने पैरों को ज़मीन पर पटककर रास्ता टटोलना सीख लिया। तीन साल की होते ही 18वीं सदी के प्रसिद्ध यूरोपीय संगीतकार शोपां से प्रभावित होकर पियानो बजाना, अपनी स्वयं की धुनें रचना और गाने गाना शुरू कर दिया। श्रोताओं की उपस्थिति से और अधिक बढ़ावा मिलता था। 2015 में बर्लिन के एक संगीत महोत्सव के समय गीत रचना प्रतियोगिता में उन दिनों मात्र 13 साल की कसांद्रा को पहला राष्ट्रीय पुरस्कार मिला।
इस सफलता के बाद रेडियो और टेलीविज़न के संगीत कार्यक्रमों में अपना कौशल दिखाने के मौके भी मिलने लगे। मई 2017 में अमेरिका के बोस्टन शहर में स्थित बर्कले संगीत कॉलेज के एक ग्रीष्मकालीन आयोजन में भाग लेने के लिए कसांद्रा को एक छात्रवृत्ति (स्कॉलरशिप) मिली। 5 सप्ताह के इस आयोजन में गाने लिखने की अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करना था।
इसी आयोजन के दौरान कसांद्रा को भारतीय संगीत से परिचित होने का पहला मौका मिला। 2018 में तबला बजाना और भारतीय संगीत को जानना-समझना शुरू किया। कसांद्रा का कहना है कि भारतीय भाषाओं का स्वर माधुर्य मुझे मंत्रमुग्ध कर देता है। मेरे लिए वह एक प्रकार का जादुई अनुभव है।
कसांद्रा ने 2018 से ही इंटरनेट पर हिंदी सहित अन्य भारतीय भाषाओं में भी गीत-संगीत ढूंढना और उनकी बारीक़ियों को अपने स्वर में ढालने का प्रयास करना शुरू कर दिया। यही नहीं, भारतीय भाषओं और धुनों की तर्ज़ पर अपने गीत भी रचने लगीं। अपने गीतों को पियानो और तबले के संगीत के साथ पिरोते हुए उनके वीडियो बनाकर 'CassMae' के नाम से इंस्टाग्राम सहित सोशल मीडिया के अन्य प्लेटफ़ॉर्मों पर भी प्रस्तुत करने लगीं।
कसांद्रा के इस बीच लाखों फ़ैन हैं। सबसे अधिक भारत में। अकेले इंस्टाग्राम पर ही उनके चहेतों की संख्या 4 लाख से अधिक है। प्रधानमंत्री मोदी द्वरा प्रशंसा के बाद से तो भारतीय प्रशंसकों की संख्या में बाढ़ आ गई बताई जाती है।
सबसे मज़े की बात यह है कि कसांद्रा हिंदी और संस्कृत सहित आधे दर्जन से अधिक भारतीय भाषाओं में गाती और इन भाषाओं में अपने गीत अंशतः रचती भी हैं, पर कोई भारतीय भाषा इस तरह सीखी नहीं है कि उसमें बातचीत भी कर सकें। अपनी मातृभाषा जर्मन के अलवा केवल इंगलिश, फ्रेंच और स्पेनिश सीखी है।
कसांद्रा का कहना है कि हर दिन उनका तीन से चार घंटे इंस्टाग्राम चैनल पर बीतते हैं। इस दौरान वे अपने गानों के नए वीडियो पेश करती हैं और प्रशंसकों की टीका-टिप्पणियों के उत्तर देती हैं। सप्ताह में तीन दिन जर्मनी के कोलोन शहर के नृत्य और संगीत महाविद्यालय में संगीत की शिक्षा लेने जाती हैं। जब तब किसी कंसर्ट में भी जाती हैं, किंतु फ़ुर्सत के समय भारतीय संगीत सुनना उनका प्रिय शौक है। कोलोन शहर में ही 'अनुभव अकादमी' नाम की एक भारतीय संगीत मंडली है। कसांद्रा इस मंडली की भी सदस्य हैं।
प्रश्न उठता है कि जर्मनी की यह विलक्षण संगीत प्रतिभा, जो न तो कभी भारत गई है और जिसने न किसी भारतीय भाषा को लिखना-पढ़ना-बोलना कभी सीखा है, भारतीय भाषाओं में गा कैसे लेती है? जर्मन प्रेस एजेंसी DPA को दिए एक इंटरव्यू में कसांद्रा ने बताया कि भारतीय गाने और उनके टेक्स्ट वो अपने स्मार्टफ़ोन के 'वॉइस फ़ंक्शन' की सहायता से खोजती हैं और ब्लूटूथ द्वारा स्मार्टफ़ोन से जुड़े एक विशेष उपकरण की सहायता से नेत्रहीनों की ब्रेल लिपि में रूपांतरित कर लेती हैं।
भारतीय भाषाओं के शाब्दिक उच्चारण की बारीक़ियां वे हर भाषा के गीत-संगीत बहुत ध्यान से सुनकर याद कर लेती हैं। स्वयं गाते समय इन बारीक़ियों को अपने कानों से भी सुनने का प्रयास करती हैं। प्रधानमंत्री मोदी के सितंबर महीने वाले पोडकास्ट प्रसारण के तुरंत बाद 'कैसमी' यानी कसांद्रा मे श्पिटमान को बधाई संदेश मिलने की झड़ी लग गई। इन संदेशों के साथ वह इंटरनेट लिंक भी होता था, जहां मोदीजी के 'मन की बात' सुनी जा सकती थी।
कसांद्रा ने इंस्टाग्राम पर अपने नए वीडियो में कहा, मैं तो (गर्मियों वाली) छुट्टियां मना रही थी, तभी मैंने सुना कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने (अपने पोडकास्ट में) मेरा ज़िक्र किया है। भारत! (इंडिया नहीं) मैं तुझसे मिल रहे इस प्यार से बेहद अभिभूत हूं। मैं बहुत सम्मानित अनुभव कर रही हूं कि मैं जो कुछ कर रही हूं, उसे इतना पसंद किया जा रहा है। मैं अपने आप को सचमुच इतना प्रोत्साहित महसूस कर रही हूं कि मैं इसी तरह आगे भी काम कर सकती हूं और करना भी चाहती हूं।
कसांद्रा ने अपने इस पोस्ट में यह भी लिखा कि उन्हें कभी-कभी संदेह होने लगता था कि एक जर्मन होने के नाते क्या वे भारतीय संस्कृति के साथ न्याय कर पाएंगी, लेकिन अब समझ में आ गया है कि भारत की सारी भाषाएं तो सीखी नहीं जा सकतीं, तब भी सीखते रहना है, क्योंकि मुझे (भारत की) आध्यात्मिकता बहुत प्रिय है। कसांद्रा यथासंभव जल्द ही भारत की यात्रा करना और अपना संगीत सुनाना चाहती हैं।
कसांद्रा के भारत प्रेमी संगीत पर मुग्ध प्रधानमंत्री मोदी की सितंबर वाली 'मन की बात' की इन दिनों जर्मन मीडिया में व्यापक चर्चा है। 'देशप्रेमी' या 'राष्ट्रवादी' होना इस बीच जर्मनी सहित सभी पश्चिमी देशों के वामपंथियों और प्रगतिशीलों के बीच निंदनीय 'फ़ासीवादी' होने का पर्यायवाची बन गया है, किंतु इस बार जर्मन मीडिया में पहली बार मोदी के नाम पर 'हिंदू राष्ट्रवादी' या 'फ़ासीवादी' होने का ठप्पा लगता नहीं दिखा है।