11 जनवरी को नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित बाल अधिकार कार्यकर्ता कैलाश सत्यार्थी का जन्मदिन है। सत्यार्थी को समर्पित यह दिन देशभर में सुरक्षित बचपन दिवस के रूप में मनाया जाता है।
सत्यार्थी आजाद भारत के पहले ऐसे नागरिक हैं, जिन्हें बाल मजदूरी, बाल दुर्व्यापार (ट्रैफिकिंग), बाल दासता, यौन उत्पीड़न और अशिक्षा के खिलाफ लंबे संघर्ष के लिए 2014 में नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। वे उन चुनिन्दा नोबेल विजेताओं में से एक हैं जो अभी भी अपने कार्यक्षेत्र में सक्रिय हैं।
जब भारत और वैश्विक मंचों पर बाल दासता कोई बड़ा मुद्दा नहीं था, तब सत्यार्थी ने बचपन बचाओ आंदोलन सहित विश्व के लगभग 150 देशों में सक्रिय ग्लोबल मार्च अगेंस्ट चाइल्ड लेबर और ग्लोबल कैंपेन फॉर एजुकेशन जैसे संगठनों की स्थापना कर दी थी।
यह वो वक्त था जब वैश्विक समुदाय ने सत्यार्थी को बाल अधिकारों की वकालत करने वाले पहले नेता के रूप में स्वीकार कर लिया था। जिसकी तस्दीक 2014 में उन्हें मिले नोबेल पुरस्कार ने कर दी। ऐसा कहा जाता है कि जब एक व्यक्ति जीवन में कोई मुकाम हासिल कर लेता है, तो उसके जीवन में एक पूर्णविराम-सा लग जाता है। लेकिन सत्यार्थी नोबेल मिलने के बाद भी अपनी सक्रियता में कोई कमी नहीं होने दी।
दिलचस्प है कि उन्हें 2014 में जब नोबेल मिला तो किसी ने उनसे पूछा कि इसके बाद आगे क्या? उनका जवाब था- यह कोमा है फुल स्टॉप नहीं। कोरोना काल में उनके कार्यों की विस्तृत सूची अपने-आप इस बात को प्रमाणित कर देती है।
फेयर शेयर टू इंड चाइल्ड लेबर मुहिम
वैश्विक स्तर पर बाल श्रम पर अंकुश लगाने के उद्देश्य से सत्यार्थी के नेतृत्व में दुनियाभर के नोबेल पुरस्कार विजेताओं, वैश्विक नेताओं और अन्य अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं ने “फेयर शेयर टू इंड चाइल्ड लेबर” अभियान की शुरुआत की।
इसका उद्देश्य बच्चों के लिए दुनियाभर के संसाधनों एवं सामाजिक सुरक्षा की नीतियों में उनकी आबादी के हिसाब से हिस्सेदारी सुनिश्चित करना है। संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरस, अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन के महानिदेशक गाय राइडर, विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक टेड्रोस घेब्रायसे, स्वीडन के प्रधानमंत्री स्टीफन लोफवेन, अंतर संसदीय संघ के महासचिव मार्टिन चुंगॉन्ग, यूएन सस्टेनेबल डिवेलपमेंट सोल्यूशन्स नेटवर्क के अध्यक्ष जैसे वैश्विक नेता इस मुहिम का हिस्सा हैं।
स्वास्थ्य को मौलिक अधिकार बनाने की वकालत
कोरोना की दूसरी लहर में देश का स्वास्थ्य ढांचा पूरी तरह से चरमरा गया। ऐसी भी स्थिति बनी कि कई लोगों ने समय से इलाज और ऑक्सिजन नहीं मिलने पर दम तोड़ दिया। कई परिवार अभी भी वह त्रासदी झेल रहे हैं।
ऐसे में देश की मौजूदा स्वास्थ्य प्रणाली पर सवाल उठना स्वाभाविक था। सवाल उठे भी। सत्यार्थी ने इस विषय पर सबसे अलग राय रखी। उन्होंने केन्द्र सरकार से स्वास्थ्य को मौलिक अधिकार बनाने की वकालत की।
सत्यार्थी का इसके पीछे तर्क था कि अगर ऐसा होता है तो ग़रीब, वंचित और आमजन को बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं पाने का हक मिलेगा। लेकिन इसके लिए स्वास्थ्य ढांचे को और मज़बूत करने की जरूरत होगी।
उनकी इस अपील के बाद देश में चर्चा और बहस भी शुरू हुई। इसी क्रम में राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भी सत्यार्थी का पुरजोर समर्थन किया और केंद्र सरकार से स्वास्थ्य को मौलिक अधिकार बनाने की मांग कर डाली।
अनाथ बच्चों की तात्कालिक मदद
सत्यार्थी पहले वह पहले व्यक्ति हैं जिन्होंने कोरोना की दूसरी लहर में अनाथ हुए बच्चों और उनके अभिभावकों की मदद को आवाज उठाई थी। उनके संगठन बचपन बचाओ आंदोलन (बीबीए) ने ऐसे बच्चों और उनके अभिभावकों की मदद के लिए 24 घंटे का हेल्पलाइन नम्बर शुरू किया। सत्यार्थी ने सरकार से भी इस मुद्दे पर आवश्यक कदम उठाने की अपील की थी। सरकार सक्रिय भी हुई और प्रधानमंत्री ने पीड़ित बच्चों की मदद के लिए कई घोषणाएं की।
कोरोना काल में 13 हजार से अधिक बच्चे ट्रैफिकिंग और बाल श्रम से मुक्त कराए गए।
सत्यार्थी के संगठन बचपन बचाओ आंदोलन (बीबीए) ने सरकारी एजेसियों के साथ मिलकर 13 हजार से अधिक बच्चों को ट्रैफिकिंग और बाल श्रम से मुक्त कराया। गौरतलब है कि सत्यार्थी के नेतृत्व में उनका संगठन अब तक 1 लाख से ज्यादा बच्चों को मुक्त करवा चुका है।
चाइल्ड लेबर सरवाईवर इंटेलिजेंस नेटवर्क से जगी उम्मीद की किरण
बचपन बचाओ आंदोलन का सहयोगी संगठन कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रेन्स फ़ाउंडेशन देश के संवेदनशील ग्रामीण क्षेत्रों में मुक्ति कारवां अभियान के तहत जनजागरण कार्यक्रम चला रहा है।
इस अभियान के तहत पूर्व बाल मजदूर अपने ही गांव और आसपास के क्षेत्रों में बाल श्रम, ट्रैफिकिंग और बाल विवाह जैसी सामाजिक बुराइयों के खिलाफ लोगों को जागरूक कर रहे हैं। साथ ही वे एक ऐसे इंटेलिजेंस नेटवर्क का निर्माण भी करते हैं जिससे ट्रैफिकर की असामाजिक और अवैध गतिविधियों पर नजर रखने में आसानी होती है। यह इंटेलिजेंस नेटवर्क एक उम्मीद जगाता है। इसके माध्यम से कई बच्चों को ट्रैफिकिंग और बाल श्रम का शिकार होने से बचाया गया है।
बाल यौन शोषण के खिलाफ देशव्यापी मुहिम
सत्यार्थी द्वारा कोरोनाकाल में एक और अभियान की शुरुआत की गई, जिसका नाम था जस्टिस फॉर एवरी चाइल्ड। अभियान का लक्ष्य देशभर के 100 जिलों के 100 फास्ट ट्रैक कोर्ट में 5,000 मामलों में बच्चों को तय समय-सीमा के भीतर न्याय दिलाना है।
सत्यार्थी के नेतृत्व में उनके संगठनों द्वारा किए गए कार्य इस बात को प्रतिबिम्बित करते हैं कि वे आज भी उसी सक्रियता, संवेदनशीलता और करुणा के भाव से बच्चों को बाल श्रम, ट्रैफिकिंग और यौन शोषण से मुक्त कराने में तत्पर हैं, जिस दिन से उन्होंने इस दुनिया को बाल-सुलभ दुनिया बनाने का सपना बुना था।