आधुनिकता और मानव जाति

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- पुरुषोत्तम व्यास
 
मानव जाति को बचाना है, लगता यह नारा कुछ वर्षों में लग सकता है, क्योंकि हम सिर्फ अपने लिए, अपने देश के लिए सोच रहे है। पूरी मानव जाति के लिए नही सोच रहे है। हर देश परमाणु शास्त्रों के जखीरों पर जोर दे रहा है, आर्थिक रूप से सक्षम बनने के लिए प्रकृति के साथ खिलवाड़ करने को आतुर। हर कोई शक्तिशाली बनने ही होड़ में लगा हुआ है, हम किसी से पिछे न रह जाए, मालूम नहीं। कौन से भय में हर कोई जी रहा है या कुछ शक्तिशाली ताकते भय जैसा माहौल बना रही है कि आप असुरक्षित है।
 
 
अगर हम आधुनिक समाज की विचारधारा की बाते करें तो आप जरूर पाएंगे कि हर कोई स्वार्थपूर्ण विचारधारा लेकर चल रहा है, जहां स्वार्थ वहां सर्वनाश होना ही है। सहयोग जैसी विचारधारा का चारों तरफ अभाव सिर्फ मेरा-मेरा ही चल रहा है। चाहे समाज, देश या सारा संसार बिना सहयोग के चल नही सकता। सहयोग और प्रेम भाव से इस धरा को भी हम अतिसुंदर बना सकते है।
 
भविष्य-भविष्य और भविष्य को लेकर जी रहे है, इस कारण वर्तमान का बन गया बखेड़ा। इसी स्वार्थ का परिणाम आने वाली पीढ़ियों को भोगना पड़ेगा। हम सिर्फ रिसर्च कर रहे है, उन रिसर्च का मूल कारण मानव जाति खुद है, नई-नई बीमारियां, नई-नई मानसिक समस्या, जहां देखो अशुध्द ही अशुध्द पानी से लेकर हवा तक, पंछियों की कई प्रजातियां लुप्त हो चुकी है, कई जानवरों को हमने अपने स्वार्थ के लिए मारा है, प्रकृति का संतुलन ही बिगाड़ दिया है। आधुनिकता को हमें कितना अपनाना है, इस पर हमें विचार करना पड़ेगा, क्योंकि वर्तमान समय में आधुनिकता अभिशाप जैसे ही लग रही है। 
 
इससे मुक्त होने के लिए अभी से सोचना पड़ेगा, नहीं तो वह दिन दूर नहीं जब हमें खुद को बचाने के लिए नारा लगाना पड़े। घर से लेकर देश से लेकर सारा संसार आर्थिक स्थिति को सक्षम बनाने में लगा है, हम सिर्फ भाग रहे हैं किस कारण यह किसे भी नहीं पता। सब भाग रहे हैं तो हम भी भाग रहे है और मालूम नहीं इसका अंत कहां होगा। इसी वजह से हम अपनापन जैसे शब्द ही समाज से कही खो गए हैं।
 
अच्छा होता
उस दरिया के पास छोटा घरौंदा होता
पास ही फल-फूलों का उपवन होता
देखा करता नील-गगन को
उड़ता फिरता पंछियों के संग...। 

(इस लेख में व्यक्त विचार/विश्लेषण लेखक के निजी हैं। इसमें शामिल तथ्य तथा विचार/विश्लेषण 'वेबदुनिया' के नहीं हैं और 'वेबदुनिया' इसकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं लेती है।)

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