कब तक आखिर कब तक हमारे देश में इस तरह के अत्याचार होते रहेंगे...भोपाल, दिल्ली, हाथरस, हैदराबाद, कानपुर सहित अन्य छोटे गांवों में महिलाओं की आबरू को छलनी किया जाएगा..? उन्हें सरेआम तार-तार किया जा रहा है। महिलाओं के संरक्षण का उदाहरण दिए जाने वाला शहर भी अब सुरक्षित नहीं रहा। कभी न सोने वाली इस शहर की सड़कों पर घटित हुई बर्बरता ने कचौट कर रख दिया है..मुंबई के उपनगरीय इलाके साकीनाका में 34 वर्षीय महिला के साथ दुष्कर्म कर निजी अंगों में लोहे की राड को डालने के बाद वीभत्सता का शिकार बनी महिला ने अस्पताल में इलाज के दौरान दम तोड़ दिया। एक और निर्भया ने पूरे देश को फिर से झकझोर दिया...इस खबर को सुनने के बाद जैसे हाथ-पैर सुन्न हो गए है....
2012 में हुए निर्भया केस में जहां समूचा देश रो पड़ा था...देश में दावों और वादों की लंबी सूची तैयार की गई थी..कानून का खौफ बढ़ाकर सूरत बदलने तक के वादे किए गए थे, लेकिन बदला तो सिर्फ वक्त है पर हालात वहीं है। वरना हैदराबाद जैसी घटना नहीं घटती...वरना मुंबई में ऐसा कभी घटित नहीं होता...सिर्फ वक्त बीता है...अंधेरा उस निर्भया कांड के दौरान भी था..अंधेरा हैदाराबाद में हुए कांड के दौरान भी छा गया था अंधेरा तो कल भी था...सिर्फ वक्त बीतता चला रहा है...यह कहानी कोई 2012 निर्भया के किस्से से अछूती नहीं है...वहां भी मुसाफिर की शक्ल में हैवान घूम रहा था...और यहां भी...
क्यों सरकार कभी महिलाओं की सुरक्षा को प्राथमिकता नहीं देती? चुनावी एजेंडों में अब बदलाव की जरूरत है सिर्फ लड़कियों को पढ़ाने की बात.. नारे में लिखा गया ''बेटी बचाओं, बेटी पढ़ाओं'', नहीं बल्कि ''बेटों को पढ़ाओं, बेटी को बचाओं'' लिखा जाना चाहिए।महिलाओं की सुरक्षा पर सवाल खत्म नहीं होंगे। और सरकार के पास आश्वासन के सिवाए शर्तिया कुछ नहीं होगा...जब इस तरह की घटना का विवरण किया जाता है.. तब हाथ सुन्न पढ़ जाते हैं, शब्द गूंगे हो जाते हैं और मस्तिष्क नंब हो जाता है....
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के मुताबिक 2019 में महिलाओं पर हुए अत्याचार के 4 लाख केस दर्ज किए गए। महिलाओं पर अत्याचार का आंकड़ा हर साल नए आयाम छूता गया। 2017 में 3 लाख 59 हजार मामले थे 2018 में यह बढ़कर 3 लाख 78 हजार तक पहुंच गया। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के मुताबिक 32 हजार 33 मामले दर्ज किए गए थे। अनुमानित आंकड़े के तौर पर 88 रेप केस प्रतिदिन। साथ ही रिपोर्ट में दिखाए जा रहे कुल मामलों में से 10 फीसदी मामले दुष्कर्म के हैं।
आशा है...अब कानून के हाथ सिर्फ कहने को लंबे नहीं होंगे आरोपियों को अंत तक पकड़ कर रखेंगे, तमाम राजनीति गलियारे से जो भी बयान आएंगे वो एक-दूसरे के विरूद्ध नहीं बल्कि दोषियों और कुकर्म करने वालों के विरूद्ध उठेंगे...आशा है आने वाली सरकार बेटों को शिक्षित करने का प्रावधान रखेंगी....