पुण्य से है दान की टीआरपी !

मकर संक्रांति, यानि तिल गुड़ की मिठास.... मकर संक्रांति यानि सूर्य की आराधना का पर्व..... मकर संक्रांति यानि पतंगबाजी कर मस्ती भरे पेंच लड़ाने का पर्व... और मकर संक्रांति, यानि दान पुण्य करने का सबसे खास पर्व। अरे भई, यूंही थोड़े ही इस दिन लोग सुबह से ही खूब दान-पुण्य करना शुरू कर देते हैं। शास्त्रों में बाकायदा विधान है, कि इस दिन दान-पुण्य करोगे, तो कई गुना फल मिलेगा, वो भी जन्मों तक। बिल्कुल वैसे ही जैसे रिटायरमेंट के बाद पेंशन मिलती है। लेकिन भईया वो रिटायरमेंट की पेंशन भी तब मिलती है, जब काम करते करते आधी जिंदगी निकल जाती है, फिर तो साल में एक दिन दान करके, जन्मों तक उसका फल पाना, फायदे का सौदा है। क्यों, क्या कहते हो... 
 
ऐसा नहीं है कि दान-पुण्य करने के लिए ये एक ही दिन आता है साल भर में। यूं तो साल में कई छोटे और बड़ें मुहुर्त होते हैं, महीने में कुछ खास दिन और सप्ताह में शनिवार को मिलाकर, अपनी मन्नत के बाकी वार भी हैं। लेकिन संक्रांति का तो अपना ही महत्व है। कहते हैं कि‍ दान करने से आत्मिक शांति भी मिलती है, और आप यह सोचकर, कि चलो किसी जरूरतमंद कि मदद की..किसी भूखे का पेट भरा..किसी ठंड से ठिठुरते को राहत मिली, किसी का तन ढका तो किसी के पैरों के छालों का कारन मिटा....अपने अंदर महादानी और गरीबों का मसीहा बनकर आप फूले न समाने वाली फीलिंग भी ला सकते हैं।  
 
पर लोगों को इन बातों से कहां कोई मतलब होता है जनाब, कि किसी का अच्छा हुआ...! इन बातों से ज्यादा तो हर किसी को अपने हिस्से के पुण्य से ज्यादा मतलब होता है..। पुण्य का बोल बाला है साहब, अच्छाई का नहीं...तभी तो साल में एक बार भी दान पुण्य करने का मौका कोई जरा नहीं चूकता। यकीन न हो तो एक बार इन्हें कह कर देख लीजिए कि सबका भला करो, सबकी मदद करो, खूब अच्छे काम करो, लेकिन ये पुण्य-वुण्य की बातें मत करो...वो नहीं मिल पाएगा। फिर देखो कि इस दान नाम के इमोशनल सीरियल की टीआरपी कितनी नीचे जाती है !
 
संक्रांति छोड़ि‍ए, अपने शनिवार को ही ले लीजिए...। लोग शनिवार के दिन दान कर शनिदेव को पटाना चाहते हैं... वो तो शनि महाराज का डर है, जो साढ़ेसाती और ढैया के नाम से इन्हें सपने में आकर भी डराता है। वरना मजाल है, कि एक कतरा भी तेल का शनिदेव पर चढ़ जाए....? तेल का भाव पता है बाजार में, कितना हो रखा है... शनिदेव पर तेल चढ़ाने तो क्या, तेल लगाने भी कोई खड़ा न हो.. वहां पुण्य का कमाल है, यहां डर का। बस दुनिया में दो ही तो चीजें हैं, जो सब कुछ करवा लेती हैं। वरना इंसान नामक  प्राणी हुआ है कभी किसी का, जो भगवान का होगा भगवान के अस्तित्व को ही नकार न दे..? 
 
दान करने की परिभाषा भले ही न पता हो, लेकिन दान करने से पुण्य मिलता है, यह सबको रटा हुआ है। ऐसे मतलब के लिए होने लगा दान, तो बस्स...। हमसे पूछिए, आज भी याद है हमें, जब स्कूल में थे तो मकर संक्रांति के दिन घर से दाल और चावल लेकर जाते थे...दान के लिए। स्कूल का हर एक बच्चा और सभी शिक्षक-शिक्षिकाएं भी दाल और चावल एकत्रीकरण का काम करते थे और ये अनाज इकठ्ठा कर, वनवासी अंचलों में रहने वाले आदिवासी भाइयों के लिए भेजा जाता था। कहने का मतलब ये है भाई, कि दान वही है जो सार्थक हो। भले ही किसी गरीब बच्चे को शिक्षा का दान हो या फिर किसी बीमार दुखी व्यक्ति की आवश्यकतानुसार इलाज में मदद हो। या फिर इस कड़कती ठंड में बेघर इंसान को कंबल का दान हो...। 
 
साल में केवल एक दिन के लिए इस अच्छे कार्य को बचाकर न रखें ...यदि परमात्मा ने आपको आवश्यकता से थोड़ा भी अधिक दिया है, तो "सार्थक दान" करके उसका सदुपयोग जरूर करें...। वरना पुण्य-वुण्य सब बाद में, आपकी भी कोई मदद न करेगा...अरे लोगों का दान से भरोसा जो उठ जाएगा समझ आ गया हो तो, चलिए जाकर दान करके आइए, ताकि मकर संक्रांति ही नहीं हर दिन शुभ हो, आपका भी औरों का भी। 

वेबदुनिया पर पढ़ें