पचास दिन में दिखा मिलाजुला असर

- महेश तिवारी
 
नोटबंदी के पचास दिन मुकम्मल होने के पश्चात भी आम नागरिकों की समस्याओं से जूझना कम नहीं हुआ हैं। केंद्र सरकार ने पचास दिन में सभी मुश्किलों को हर लेने का जुमला फेंका था, वह अब अधूरा सपना लग रहा हैं। गांव से लेकर कस्बों तक अभी भी पैसे न मिलने की किल्लत झेलनी पड़ रहीं है, जिससे जनता के सब्र का पुल टूटता दिख रहा हैं। देश के लोगों को हजारों करोड़ रुपए की अघोषित आय का पता चल चुका है। 
हवाला कारोबारियों और कर छुपाने वालों की खटिया खड़ी हो चुकी है। सरकार के नोटबंदी का असर आतंकियों और नक्सलियों की फंडिंग पर भी पड़ा है। देश की जनमानस ने भी सरकार की इस नीति का भरपूर सहयोग किया, विपक्ष ने अपनी सियासी लीला चमकाने के लिए जनता का सहारा लिया, लेकिन जनता अपनी भलाई भविष्य के गर्भ में देखते हुए सरकार के साथ खडी नजर आई, लेकिन पचास दिन जैसे-जैसे खत्म हुए जनता समस्याओं को संयमित न होते देख अशांत होती दिख रही है। कैशलेस व्यवस्था से अभी जब सरकारितंत्र के लोगों को नहीं पता, फिर जनता की मुश्किलों का बढ़ना लाजिमी हैं, क्योंकि 60 फीसदी ग्रामीण कृषि से जुड़ी अवाम अशिक्षित है और उसको इस आधुनिक माध्यम से जोड़ने का कोई उपाय नहीं दिख रहा है। 
 
नोटबंदी के बाद अकेले छत्तीसगढ़ से नक्सलियों के सात हजार करोड़ रुपए का पता चला है, जो नक्सलियों की कमर तोड़ने के लिए उचित है और केंद्र सरकार के मुताबिक नोटबंदी के बाद से 400 करोड़ रुपए के नकली नोटों का कारोबार बंद हुआ है, लेकिन इन फायदों के बावजूद जनता की समस्याओं को अनदेखा नहीं किया जा सकता हैं। देश कैशलेस  अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ना शुरू हुआ है। दुकानों में पीआईंओएस मशीनों की मांग बढ़ रही हैं। बैंकों में 300 प्रातिशत तक नकदी बढ़ गई हैं। 
 
बैंकों के पास 2.5 लाख करोड़ जमाधन था जो अब सात लाख करोड़ से ज्यादा का हो चला है, लेकिन नोटों की पर्याप्त छपाई और पूर्ति न होना अभी भी जनता के लिए समस्या बनी हुई है। मोदी सरकार ने तीन सूत्री कार्यक्रम के तहत कालाधन, आतंकवाद और भ्रष्टाचार ऐसे बिंदु थे, जिसे लेकर नोटबंदी का ऐलान हुआ था। 
 
अब 50 दिन बाद भी जनता को बैंकों और एटीएमो से नकदी नहीं निकल रही है। पीएम ने कहा था कि 30 दिसम्बर तक स्थिति सामान्य हो जाएगी, लेकिन स्थिति में सुधार न होने से विपक्ष को सरकार के खिलाफ आवाज उठाने का मौका मिल गया हैं। वहीं नोटबंदी से देश की अर्थव्यवस्था भी कमजोर होने का दावा सही है, देश की जीडीपी का स्तर कम होने की सम्भावना है, छोटे लघु उधोग भी प्रभावित हो रहा है, व्यापार खत्म है, व्यापारी और किसान, मजदूर और ग्रामीण जनता भी बेहाल हैं। देश में नोटबंदी के बाद से ही देश का हर वर्ग किसी न किसी तरह से प्राभावित हुआ है। 
 
नोटबंदी के निर्णय के 50 दिन पूरे हो गए हैं। 15 लाख करोड़ की करंसी चलन से बाहर हो चुकी है। जिसमें 14 लाख करोड़ रुपए के नए नोट या तो बदले गए या जमा किए गए। नोटबंदी से पांच सौ और हजार के पुराने नोट बंद करने कारण ब्लैकमनी रोकना भी एक मकसद था। अलग-अलग एजेंसियों का अनुमान है कि नोटबंदी के वक्त देश में 3 लाख करोड़ की ब्लैकमनी मौजूद थी। वहीं सरकार के आंकड़े कहते हैं कि अब तक इकतीस सौ करोड़ रुपए की ब्लैकमनी देशभर में चली कार्रवाई के दौरान जब्त की गई।
 
इस लिहाज से नोटबंदी के 50 दिन में सरकार महज 1% ब्लैकमनी ही जब्त कर पाई। इस प्रकार सरकार अपने इरादे में असफल दिख रही हैं। कोटक सिक्युरिटीज और केयर रेटिंग के अनुमान के मुताबिक, 17 लाख करोड़ में से 3 लाख करोड़ रुपए ब्लैकमनी के रूप में मौजूद थे। उम्मीद थी कि नोटबंदी से इस ब्लैकमनी के बड़े हिस्से का सरकार पता लगा लेगी, लेकिन अभी महज एक फीसदी ही हैं। सरकार ने 50 दिन में 61 बार लगभग नियमों में बदलाव जनता को राहत देने के लिए उठाया, लेकिन जनता की मुसीबत कम नहीं हुई, फिर सरकार द्वारा जनता को समय-समय पर पहले 30 दिन 11 प्रकार से मोहलत दी गई।
 
जिसमें पेट्रोल-डीजल के 4.5 करोड़ ग्रहकों को डिजिटल मोड से खरीदारी पर 0.75% डिस्काउंट की घोषणा की, इसी तरह डिजिटल पेमेंट से रेलवे टिकट लेने पर 0.5% डिस्काउंट और 10 लाख तक का एक्सीडेंटर इंश्योरेंस, रेलवे सुविधाओं पर 5% डिस्काउंट देने का ऐलान हुआ, नई ऑनलाइन इंश्योरेंस पॉलिसी और प्रीमियम पर 10% डिस्काउंट की घोषणा की, दो हजार तक के सिंगल डेबिट और क्रेडिट कार्ड ट्रांजेक्शन पर सर्विस टैक्स से छूट और टोल प्लाजा पर डिजिटल पेमेंट करने पर 10% की छूट का ऐलान किया, लेकिन ये सभी फौरी इलाज साबित हुए। 
 
सरकार को अपने आने वाले फैसले में जनता को हो रही समस्‍याओं को सुलझाने की तरफ ध्यान देना होगा। अभी देश डिजिटल लेनदेन की और बढ़ने में सक्षम नहीं दिख रहा हैं, इसके लिए एक रोडमैप की जरूरत हैं, जिससे ग्रामीण और अशिक्षित अवाम को जोड़कर कैशलेस व्यवस्था के फायदे और तरीकों को बतलाया जाए, जिससे इस ओर जनता बढ़ सके। इस पचास दिन में जनता को हो रही समास्‍याओं से इंकार नहीं किया जा सकता हैं, क्योंकि अभी भी न तो कतारें खत्म हुई हैं और न ही प्रयाप्त मात्रा में धन एटीएम से निकल पा रहे हैं, लेकिन नोटबंदी के फायदे से भी मुंह नहीं फेरे जा सकते हैं, सरकार कुछ स्तर पर विफल दिखी नहीं तो इससे देश की अर्थव्यवस्था को और फायदा हो सकता था। 

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