कांग्रेस में निकाय चुनाव के लिए टिकट को लेकर सौदेबाजी शुरू!

अरविन्द तिवारी
सोमवार, 22 फ़रवरी 2021 (21:57 IST)
बात यहां से शुरू करते हैं : यह किसी ने सपने में भी नहीं सोचा था की भाजपा के प्रदेश मुख्यालय में सर्वशक्तिमान माने जाने वाले राजेंद्र सिंह को वहां से बेदखल होना पड़ेगा। पिछले 15 साल में राजेंद्र के अर्थ तंत्र से उपकृत होने वालों की संख्या हजारों में है और यह सब उनके प्रबल पैरोकार भी हैं। वीडी यानी विष्णु दत्त शर्मा ने जो नई टीम बनाई उसमें राजेंद्र सिंह की कोई भूमिका नहीं थी। इसके बाद भी यह माना जा रहा था कि राजेंद्र वहीं रहेंगे। उन्हें वहां रखने में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की भी गहरी दिलचस्पी थी। कहा पर यह जा रहा है कि राजेंद्र की वापसी का मामला अमित शाह और जेपी नड्डा के दरबार में भी पहुंचा लेकिन आखिरकार वही हुआ जो वीडी शर्मा चाहते थे। राजेंद्र के लिए अब नया ठीया ढूंढा जा रहा है।

हर्ष चौहान को मिला पुरस्कार : वनवासी अंचल में संघ की पैठ जमाने का पुरस्कार आखिरकार हर्ष चौहान को मिल ही गया। राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष पद पर उनका मनोनयन संघ के शीर्ष नेतृत्व की पसंद के चलते हुआ। दरअसल चौहान और उनकी टीम ने उस दौर में झाबुआ, धार और अलीराजपुर के गांव और फलियों में संघ का नेटवर्क खड़ा किया था जब मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सरकार थी और संघ के लिए इन जिलों में काम करना बहुत मुश्किल था। वह शिव गंगा अभियान के प्रणेताओं में से एक हैं। चौहान कुछ महीने पहले उस वक्त राज्यसभा सांसद बनते बनते रह गए थे जब भाजपा प्रत्याशी के रूप में उनका नाम तय होने के बाद ऐन वक्त पर बड़वानी के प्रोफेसर सुमेर सिंह सोलंकी को मौका दे दिया गया था। लेकिन तब ही यह भी तय हो गया था कि अब दिल्ली उनके लिए ज्यादा दूर नहीं है।
 
कांग्रेस में टिकट को लेकर सौदेबाजी शुरू : प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के नाते भले‌ ही कमलनाथ नगरीय निकाय चुनाव मैं जीत की सबसे ज्यादा संभावना वाले दावेदार को ही उम्मीदवार बनाने की बात कर रहे हों लेकिन हकीकत में ऐसा संभव होता नहीं दिखता। खुद को कमलनाथ का नजदीकी बताने वाले कुछ क्षत्रपों ने अभी से टिकटों को लेकर सौदेबाजी शुरू कर दी है और बात पेशगी तक पहुंच गई है। इन नेताओं के निशाने पर बड़े शहर हैं और दावा यह है कि प्रभारी या सह प्रभारी की रिपोर्ट भले ही कुछ भी हो लेकिन होगा वही जैसा वे चाहेंगे क्योंकि साहब के खासमखास तो हम ही हैं। इनमें से कुछ तो साहब से अपनी नजदीकी का रुतबा प्रभारी और सह प्रभारी को भी दिखा रहे हैं।
 
अर्जुनसिंह की पुस्तकों का संग्रह सप्रे संग्रहालय को : दाऊ साहब यानी अर्जुन सिंह की गिनती प्रदेश के उन नेताओं में होती थी जो बौद्धिक धरातल पर बहुत समृद्ध माने जाते थे। दाऊ पढ़ने लिखने के बहुत शौकीन थे और उनके संग्रह में ऐसी ऐसी पुस्तकें थीं जिनकी आप और हम कल्पना नहीं कर सकते। उनके द्वारा लिखी गई पुस्तक 'मोहि कहां विश्राम' आज भी चर्चा में है। दाऊ साहब का यह संग्रह पिछले दिनों उनके बेटे और नेता प्रतिपक्ष रहे अजय सिंह ने माधव राव सप्रे संग्रहालय भोपाल को भेंट कर दिया। इसके पीछे उनका मकसद यह है कि नए पत्रकार और पत्रकारिता से जुड़े मुद्दों पर शोध कर रहे शोधार्थी इन पुस्तकों का लाभ उठा सकें। इस संग्रह में करीब 10000 पुस्तकें हैं और राजनीति और राजनेताओं से जुड़ी कई पुस्तकें तो अब दुर्लभ पुस्तकों की श्रेणी में आ चुकी हैं। 
 
क्या चुक गए हैं राजेन्द्र शुक्ल : मध्यप्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष पद के लिए विंध्य के वरिष्ठ विधायक गिरीश गौतम का चयन यह संकेत दे रहा है कि अब राजेंद्र शुक्ला चुक गए हैं। विंध्य की राजनीति में गौतम और शुक्ला की अदावत किसी से छुपी हुई नहीं है। ‌शुक्ला शिवराज के खासमखास हैं और मार्च में चौथी बार मध्यप्रदेश की कमान संभालने के बाद शिवराज उन्हें अपनी कैबिनेट में देखना चाहते थे, लेकिन गौतम की अगुवाई में विंध्य के विधायकों ने जिस तरह शुक्ला के खिलाफ मोर्चा खोला था उसके बाद ही वह मंत्री नहीं बन पाए थे।  विधानसभा अध्यक्ष के लिए भी शुक्ला का नाम नंबर वन पर था, लेकिन इस बार फिर अपने ही गृह क्षेत्र के भाजपा विधायकों के विरोध ने उन्हें इस पद से वंचित करवा दिया। चर्चा तो यह भी है कि यहां भी शिवराज के बजाय संगठन की पसंद को तवज्जो मिली। ‌
 
क्या रेरा के अध्यक्ष बनेंगे मनोज श्रीवास्तव? : कुछ समय बाद ही सेवानिवृत्त होने जा रहे आईएएस अफसर मनोज श्रीवास्तव को यदि रेरा के अध्यक्ष पद पर मौका मिलता है तो यह स्पष्ट हो जाएगा कि मध्यप्रदेश में शीर्ष पदों पर संघ की पसंद को तवज्जो देना सरकार की बाध्यता हो गई। श्रीवास्तव की गिनती उन अफसरों में होती है जिन्होंने जनसंपर्क, धर्म- अध्यात्म और संस्कृति विभाग में रहते हुए संघ के एजेंडे को दमदारी से लागू करवाया। यही कारण है कि संघ के दिग्गज भी मौका आने पर श्रीवास्तव के पैरोकार बन जाते हैं और इस बार भी कुछ ऐसा ही होता नजर आ रहा है।
 
डीजी के लिए 7 अधिकारी फिट : मध्य प्रदेश काडर के 1988 बैच के 4 आईपीएस अफसरों का एंपैनलमेंट डायरेक्टर जनरल ऑफ पुलिस के पद के लिए हो गया है। यानी यह अफसर भविष्य में डीजी स्तर के किसी भी पद के लिए पात्र रहेंगे इनमें बीएसएफ, सीआरपीएफ, सीआईएसएफ और एनएसजी जैसे केंद्रीय अर्धसैनिक बल भी शामिल हैं। मध्यप्रदेश में इस बैच के 7 अधिकारी हैं। ऐसा बहुत कम होता है कि किसी बैच के इतने ज्यादा अफसरों को एक साथ ऐसा मौका मिले। ये अफसर हैं अरविंद कुमार, राजीव टंडन, एसएल थाउसेन और यूसी सारंगी। चारों अफसरों का शानदार ट्रैक रिकॉर्ड रहा है और यही कारण है कि केंद्रीय गृह मंत्रालय में बहुत सूक्ष्म आकलन के बाद इन्हें डीजी पद के लिए फिट पाया है।
 
अभिषेक सिंह की मुश्किल : आखिर क्या कारण है कि युवा आईएएस अधिकारी अभिषेक सिंह हर स्तर की लॉबिंग के बावजूद किसी जिले के कलेक्टर क्यों नहीं बन पा रहे है। यह इसलिए भी चौंकाने वाला है कि इन दिनों मुख्य सचिव इकबाल सिंह बैस प्रमोटी के बजाय डायरेक्ट आईएएस अफसरों को कलेक्ट्री के मामले में ज्यादा मौका दे रहे हैं। बताया यह जा रहा है कि सिंह पहले जिन जिलों में कलेक्टर रहे वहां के उनके कारनामे नई पदस्थापना में आड़े आ रहे हैं। और तो और इस धुरंधर अफसर ने मंत्रालय में रहते हुए जो शोहरत हासिल की वह भी उनके लिए परेशानी का सबब बनी हुई है।

चलते चलते : यह सुनने में बड़ा अटपटा लगता है लेकिन सही है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और उनके सबसे भरोसेमंद नगरीय प्रशासन मंत्री भूपेंद्रसिंह के बीच इन दिनों पटरी नहीं बैठ रही है। अमला कुछ तबादलों से जुड़ा हुआ है। हालांकि मेट्रो रेल से जुड़े एक अधिकारी को हटाकर मुख्यमंत्री ने भूपेंद्र सिंह को साधने की कोशिश की है।

पुछल्ला : जैसी की चर्चा है केंद्रीय विधि मंत्रालय द्वारा मध्यप्रदेश हाईकोर्ट में जजों की नियुक्ति के मामले में सुप्रीम कोर्ट को भेजी गई रिपोर्ट में प्रदेश के महाधिवक्ता रहे शशांक शेखर की कांग्रेस सांसद और ख्यात विधिवेत्ता विवेक तन्खा से नजदीकी का उल्लेख जिस अंदाज में किया गया है वह उनके हाई कोर्ट जज बनने की राह में रोड़ा बन सकता है।

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