क्या खंडवा से लोकसभा उपचुनाव लड़ेंगे कैलाश विजयवर्गीय?

अरविन्द तिवारी
बात यहां से शुरू करते हैं : पश्चिम बंगाल के चुनाव के बाद कैलाश विजयवर्गीय का अगला टारगेट क्या रहेगा या पार्टी उनका उपयोग कहां करेगी? इसकी चर्चा मध्यप्रदेश में अभी से शुरु हो चुकी है। कहा जा रहा है कि विजयवर्गीय खंडवा से लोकसभा का उपचुनाव लड़ेंगे। ऐसा हो भी सकता है, क्योंकि 2014 में जब नंदकुमार सिंह चौहान की उम्मीदवारी का विरोध हुआ था तब भी खंडवा-बुरहानपुर के नेताओं ने विजयवर्गीय का नाम ही आगे बढ़ाया था। वैसे पूर्वी निमाड़ की राजनीति में जो समीकरण नंदू भैया के अवसान के बाद बन रहे हैं, वो भी इशारा कर रहे हैं कि विजयवर्गीय ही पार्टी की नैया को लोकसभा उपचुनाव में सुगमता से पार लगा सकते हैं। इंदौर के पहले उनका खंडवा से लोकसभा में पहुंचना बहुत आसान भी माना जा रहा है। उनके वहां से मैदान संभालने की स्थिति में अर्चना चिटनीस, दीपक जोशी और हर्षवर्धन चौहान भी पीछे खड़े नजर आएंगे। 
 
हितानंद बन सकते हैं भगत के उत्तराधिकारी : सुहास भगत इन दिनों असम के चुनाव में भाजपा के मुख्य रणनीतिकार हैं। उनकी अनुपस्थिति में पंडित हितानंद शर्मा मध्यप्रदेश में संगठन की कमान संभाले हुए हैं। इसी दौर में चर्चा यह भी चल पड़ी है कि जल्दी ही सुहास जी सेवन सिस्टर्स यानी नॉर्थ ईस्ट के 7 राज्यों में भाजपा के संगठन प्रभारी हो सकते हैं। यानी उनका अगला मुख्यालय अब गुवाहाटी में ही होगा। देखना है कि यह बदलाव नगरीय निकाय चुनाव के पहले होता है या बाद में। वैसे शर्मा के रूप में भगत एक योग्य उत्तराधिकारी तैयार करने में कोई कसर बाकी नहीं रख रहे हैं। इस संभावित बदलाव को प्रदेश अध्यक्ष और संगठन महामंत्री के बीच और बेहतर समन्वय से जोड़कर भी देखा जा रहा है। ‌
 
दिग्विजय का जोड़ नहीं : कई मामलों में दिग्विजय सिंह बेजोड़ हैं। खासकर, बात उनके मित्रों, राजनीतिक सहयोगियों और कार्यकर्ताओं के बीमार होने की स्थिति में उनकी तीमारदारी की हो। मध्य प्रदेश की कांग्रेस राजनीति में दिग्विजय सिंह के खासमखास महेश जोशी इन दिनों स्वास्थ्य लाभ ले रहे हैं। कभी दिल्ली कभी भोपाल में इलाज करवा रहे जोशी को लेकर दिग्विजय ही सबसे ज्यादा चिंतित नजर आते हैं। वे जोशी और उनके बेटे पिंटू जोशी के सतत संपर्क में हैं और दिल्ली में अपने संपर्कों के चलते कई बार भोपाल में भी जोशी को वह तमाम चिकित्सा सुविधा उपलब्ध करवा रहे हैं जो सामान्यतः दिल्ली के बाहर संभव नहीं हो पाती। दिलचस्प यह है कि जोशी की गिनती उन नेताओं में होती है, जो मौका आने पर दिग्विजय को खरी-खरी भी सुना देते हैं।
 
शर्मा के लिए तो फायदे का ही सौदा है : राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में नंबर दो का मुकाम हासिल कर चुके दत्तात्रय होसबोले भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा के लिए कितने मददगार साबित होंगे, यह तो वक्त ही बताएगा। लेकिन यह जानना जरूरी है कि जिस दौर में यानी 1995 से 2003 तक दत्ता जी विद्यार्थी परिषद के राष्ट्रीय संगठन मंत्री हुआ करते थे, तब वीडी शर्मा विद्यार्थी परिषद के मध्य प्रदेश इकाई के संगठन मंत्री थे। दोनों के बीच बहुत जबरदस्त तालमेल था और इसी के मद्देनजर यह माना जा रहा है कि दत्ता जी का संघ में नंबर टू होना, शर्मा के लिए फायदे का सौदा ही साबित होना है। प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद दिन-ब-दिन अपना राजनीतिक कद बढ़ा रहे शर्मा के विरोधियों के लिए यह जरूर चिंता का विषय होगा। 
 
मध्यप्रदेश में निकाय चुनाव कब? : हाईकोर्ट की ग्वालियर और इंदौर बेंच के दो अलग-अलग आदेश के बाद यह अटकलें लगाई जा रही हैं कि अब नगरीय निकाय चुनाव सितंबर-अक्टूबर में ही होंगे। इसीलिए चुनाव लड़ने के इच्छुक भी अब कदम पीछे खींचने लगे हैं। मध्य प्रदेश के ज्यादातर दिग्गज भाजपा नेता बंगाल और असम में डेरा डाल चुके हैं और इनमें से कई वे हैं जो महापौर पद के लिए अपना दावा जता रहे थे। अंदरखाने की खबर यह है कि चुनाव मई के अंत में भी हो सकते हैं क्योंकि भाजपा के भी कई दिग्गज यह मान रहे हैं कि चुनाव को ज्यादा लंबा खींचना ठीक नहीं है। देखते हैं बंगाल चुनाव समाप्त होते होते क्या खबर आती है।
 
एडीजी का कबाड़ी कनेक्शन : जबलपुर के एक मशहूर कबाड़ी से अपने संबंधों को लेकर हमेशा चर्चित रहे शहडोल रेंज के एडीजी जी. जनार्दन अब फिर चर्चा में हैं। अनूपपुर जिले के एक थाना क्षेत्र में चोरी में लिप्त कबाड़ियों के गिरोह से भिड़ंत लेने वाले थाना प्रभारी और उनकी टीम गंभीर रूप से घायल हो गई तो बजाए मातहतों की चिंता के, जनार्दन का जोर इस बात पर था कि जो एफआईआर हमलावरों के खिलाफ दर्ज होना है, उसमें हमला शब्द का उपयोग किसी भी हालत में न हो। चौंकाने वाली बात यह भी है कि हमला 20-25 लोगों ने किया था, उनसे मुकाबला टीआई सहित 5 लोगों की टीम ने किया और एफआईआर हुई मात्र चार हमलावरों के खिलाफ। ‌ 
 
पुराने संबंध काम आ ही जाते हैं : पुराने संबंध कभी-कभी बहुत मददगार साबित हो जाते हैं। कुछ ऐसा ही देवी अहिल्या विश्वविद्यालय के वरिष्ठ प्रोफेसर अखिलेश कुमार सिंह के साथ हुआ। सिंह यहां डीएमआरसी के डायरेक्टर थे और तब के कुलपति और वर्तमान में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अध्यक्ष प्रोफेसर डीपी सिंह से उनके बहुत मधुर संबंध हैं। प्रयागराज के प्रोफेसर राजेंद्र सिंह विश्वविद्यालय में जब नए कुलपति के चयन का मौका आया और उस पैनल में सिंह का नाम भी था तो यूजीसी के चेयरमैन यहां उनके मददगार बने और इंदौर के खाते में कुलपति का एक और पद दर्ज हो गया। कुलपति चयन के लिए बनने वाली 3 सदस्य समिति में एक नुमाइंदा यूजीसी का भी रहता है और इसकी भूमिका बड़ी अहम मानी जाती है।
 
क्या कौरव बनेंगे हाईकोर्ट जज : सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम द्वारा विवेक शरण सहित प्रदेश के 3 अधिवक्ताओं के नाम हाई कोर्ट जज के लिए अनुमोदित करने के बाद भी एक संभावना यह बनी हुई है कि महाधिवक्ता पुरुषेंद्र कौरव का नाम फिर से हाई कोर्ट जज के लिए कंसीडर किया जा सकता है। कहा यह जा रहा है कि कौरव के मामले में उनकी कम उम्र हाई कोर्ट जज बनने में सबसे बड़ी बाधा बनी है। यदि इसके अलावा कोई और कारण नहीं है तो फिर प्रदेश के इस तेजतर्रार अधिवक्ता का नाम एक बार फिर विचार में लिया जा सकता है। सामान्यतः किसी नाम पर यदि कोई प्रतिकूल टिप्पणी सामने आ जाती है तो फिर हाई कोर्ट जज का मुकाम हासिल करने में बहुत दिक्कत होती है।
 
चलते चलते : शांत स्वभाव वाले डीजीपी विवेक जौहरी इन दिनों बदले बदले से हैं।‌ पिछले दिनों उनसे मिलने पहुंचे एक आईजी से उन्होंने कहा कि आपकी तो पॉलिटिकल पोस्टिंग हुई है। वहीं एक डीआईजी से बोले आप जो पोस्ट चाह रहे हो वह तो आपको मेरे रिटायर होने के बाद ही मिल पाएगी।

पुछल्ला : यह जानना जरूरी है कि इंदौर में महिला कांग्रेस की अध्यक्ष शशि यादव ने आखिर शहर कांग्रेस अध्यक्ष विनय बाकलीवाल के खिलाफ तीखे तेवर क्यों अख्तियार कर रखे हैं। वे अपने इन तेवरों का एहसास भी बहुत आक्रामक स्वरूप में करवाती हैं 
 

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