ज्योतिरादित्य सिंधिया ने उड़ाई भाजपा नेताओं की नींद

अरविन्द तिवारी

रविवार, 19 जुलाई 2020 (15:16 IST)
बात यहां से शुरू करते हैं : मध्यप्रदेश में कमलनाथ कहते ही रह गए कि मेरी चक्की बारीक पीसती है, उधर राजस्थान में अशोक गहलोत ने बारीक पीस दिया। गहलोत के शब्दों में, रगड़ दिया....। सत्ता गंवाने के दुख से अभी तक उबर नहीं पाए मध्यप्रदेश के कई कांग्रेसी राजस्थान में सचिन पायलट का ऑपरेशन फेल होता देख सोच रहे हैं, काश! हमारा नेता भी अशोक गहलोत की तरह होता! एक बात और चर्चा में है कि यहां सिंधिया का ऑपरेशन इसलिए सफल हुआ, क्योंकि उनके पास पुरुषोत्तम पाराशर जैसा नॉन पॉलिटिकल मैनेजर था, सचिन की टीम में इसका साफ अभाव दिखा।
 
भाजपा नेताओं की नींद हराम : मंत्रिमंडल के गठन और मंत्रियों के विभागों को लेकर तो ज्योतिरादित्य सिंधिया की दखल भाजपा को समझ में आ रही थी लेकिन अब जिस तरह संगठन में भी अपने लोगों को अहम भूमिका दिलवाने के लिए सिंधिया सक्रिय हुए हैं, उससे कई नेताओं की नींद उड़ गई। वे परेशान इसलिए भी हैं कि पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व सिंधिया को पूरी तवज्जो दे रहा है। मतलब साफ है कि शिवराज सिंह चौहान की परेशानी बढ़ाने के बाद सिंधिया दिल्ली में वीडी शर्मा की भी नींद हराम तो कर सकते हैं। वैसे सूची विनय सहस्त्रबुद्धे के पास पहुंच चुकी है।
 
कौन हैं तुषार पांचाल : तुषार पांचाल को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान बहुत पसंद करते हैं। इसका कारण यह है कि सोशल मीडिया पर मुख्यमंत्री रहते हुए और मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद भी जिस तरह तुषार ने उनके लिए मोर्चा संभाला था, उसकी खूब तारीफ हुई। इसी का नतीजा है कि तुषार की कंपनी वॉर रूम को जनसंपर्क विभाग के कामकाज का एक हिस्सा सौंपने की तैयारी हो गई है। लेकिन इसकी प्रक्रिया शुरू होते ही सोशल मीडिया पर जिस तरह का द्वंद्व शुरू हुआ, उससे कहीं यह वॉर रूम डार्करूम में कन्वर्ट न हो जाए। चौंकाने वाली बात यह भी है कि इस मुद्दे पर डॉक्टर हितेश वाजपेयी दिल्ली तक दस्तक दे चुके हैं।
 
गजब का संयोग : एक बैच के 4 अफसर और चारों अलग-अलग जोन के आईजी। ऐसा बहुत कम मौकों पर हुआ है। जी हां... बैच के भगवत सिंह चौहान, मनोज शर्मा और अनिल शर्मा पहले से ही जबलपुर, चंबल और सागर रेंज के आईजी थे और अब अविनाश शर्मा ग्वालियर के आईजी हो गए। चारों ही प्रमोटी अफसर हैं। वैसे लंबे अंतराल के बाद मध्यप्रदेश के पुलिस जोन एडीजी स्तर के अफसरों से मुक्त होते नजर आ रहे हैं सिवाय भोपाल और शहडोल जोन के, बाकी सभी जगह अब आईजी ही कमान संभाले हुए हैं।
 
सब कुछ केसरी के हाथ में : 'खाता न बही, जो केसरी कहे वही सही', यह जुमला इन दिनों मध्यप्रदेश के कृषि विभाग में ऊपर से लेकर नीचे तक चल रहा है। विभाग के ही लोगों की बात को सही माना जाए तो कृषि उत्पादन आयुक्त और संचालक कृषि की भूमिका इन दिनों विभाग में गौण हो गई है और सब कुछ प्रमुख सचिव अजीत केसरी ने अपने हाथों में केंद्रित कर लिया है। इस केंद्रीकृत व्यवस्था का केसरी पूरा फायदा भी उठा रहे हैं। अब यह फायदा कैसा है, इसकी पड़ताल तो आपको करना होगी। वैसे पुराना अनुभव यह कहता है कि यहां तो फायदा ही फायदा है, बस आप में फायदा उठाने का दम होना चाहिए।
 
इस नाम पर सहमत हुए सिंधिया और शिवराज : गुना में एक विवादास्पद जमीन को बंटाई पर बोने वाले किसान परिवार के साथ घटित घटना का वीडियो जब पूरे देश में प्रसारित हो गया तो सरकार को ताबड़तोड़ गुना के कलेक्टर और एसपी को हटाने का निर्णय लेना पड़ा। तलाश शुरू हुई नए कलेक्टर की तो मुख्य सचिव इकबाल सिंह बैंस ने नाम आगे बढ़ाया कुमार पुरुषोत्तम का। चौंकाने वाली बात यह है कि इस नाम पर मुख्यमंत्री तो रजामंद हुए ही, ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भी बिना विलंब के सहमति दे दी। वैसे कुमार पुरुषोत्तम के काम से खुश होकर उन्हें किसी जिले में भेजने की घोषणा मुख्यमंत्री इंदौर में उद्योगपतियों के एक कार्यक्रम में कुछ दिन पहले ही कर चुके थे।
 
इसलिए रह गए रणवीर : रणवीर जाटव क्यों रुक गए और गिरिराज दंडोतिया कैसे मंत्री बन गए, इसका एक ही जवाब है- निष्ठा और विश्वसनीयता। मंत्रिमंडल विस्तार में अंतिम दौर में ज्योतिरादित्य सिंधिया ने जो 3 जूनियर मंत्री बनवाए, उनमें एक ही क्राइटेरिया चला और वह है- निष्ठा और विश्वसनीयता। गिरिराज दंडोतिया को ब्राह्मण होने का भी फायदा मिला। रणवीर जाटव का दावा इसलिए कमजोर हो गया, क्योंकि बीच में वे कुछ दिनों से ऐंदल सिंह कंसाना और बिसाहूलाल सिंह के साथ घूमने लगे थे और शिवराज से भी मिले थे। बेंगलुरु के रिसॉर्ट में अतिसक्रियता दिखाना भी कुछ विधायकों के लिए नुकसानदायक रहा।
 
'नदी का घर' अब सुहास भगत का : दिवंगत अनिल दवे का 'नदी का घर' अब सुहास भगत का घर हो गया है...! दूसरे शब्दों में कहा जाए तो इन दिनों मध्यप्रदेश भाजपा यहीं से संचालित हो रही है। प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा भी यहां बहुत ज्यादा समय देते हैं। संगठन विस्तार की कवायद को भी यहीं से अंतिम रूप दिया जा रहा है और पद पाने के इच्छुक भाजपा नेता नदी के घर के इर्द-गिर्द ही मंडराते नजर आ जाते हैं। निगम-मंडलों में संगठन की दखल की पूरी संभावना ने यहां पर अध्यक्ष- उपाध्यक्ष पद पाने की लाइन में लगे लोगों की भीड़ भी बढ़ा रखी है।
 

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