Ayodhya: सभ्यता एवं संस्कृति के पुनर्प्रतिष्ठित होने का प्रतीक राम मन्दिर

कृष्णमुरारी त्रिपाठी अटल
वर्षों से आक्रांताओं के पाश में जकड़ी हुई अयोध्या अब श्रीराममय हो चुकी है। अयोध्या नगरी उस सभ्यता का प्रतीक एवं गौरव है जो सहस्रों वर्षों से समूचे विश्व को जीवन जीने का मार्ग दिखलाती है।

यह तय था कि राम एवं अयोध्या को कोई भी शक्ति अलग नहीं कर सकती थी क्योंकि राम तो राष्ट्र की चेतना में प्रवाहित होने वाले प्राण हैं जिनके बिना भारत की कल्पना नहीं की जा सकती है। किन्तु समूचा भारतवर्ष इस बात का साक्षी रहा है कि अंग्रेजों से स्वतंत्र प्राप्ति के पश्चात भले इस देश में सत्ता के केन्द्र में बैठे हुए राजनीतिज्ञों ने राष्ट्र की अस्मिता एवं संस्कृति के विरुद्ध कितना घिनौना खेल सेक्यूलरी हिजाब में छिप कर खेला है तथा उनके वंशजों ने राम एवं राष्ट्र के विरुद्ध कितना विषवमन किया है, जिसे कोई भी सनातनी कभी भी भूल नहीं सकता है।

उन कलंकित कापुरुषों को कठघरे पर सदैव खड़ा किया जाएगा जिन्होंने भगवान राम एवं उनके अस्तित्व को नकारा तथा राम की स्मृति के प्रत्येक चिन्ह को महज कल्पना करार देकर सिरे से खारिज करने का षड्यंत्र रचते रहे आए। कितने शर्म की बात है कि भारत जिसका अर्थ ही भगवान राम हैं उनके जन्म एवं जन्मस्थान को प्रमाणित करने के लिए उनके देश में ही न्यायालय की चौखट में सबूत देनें के लिए विवश किया गया।

इसके अपराधी उन चेहरों को राष्ट्र कभी भी नहीं भूल पाएगा क्योंकि उन्होंने राम के अस्तित्व के खिलाफ ही नहीं बल्कि भारत राष्ट्र एवं यहाँ की अस्मिता के विरुद्ध खड़े थे। भारत का वह संविधान जिसके पन्ने एवं आवरण चित्र भगवान राम के बिना अधूरा था, उसी संविधान में पंथनिरपेक्षता एवं सेक्युलरिज्म की विषबेल को उगाकर राम को इंसानी अदालतों में लाकर खड़े करने वाली आसुरी शक्तियों को क्षमादान राष्ट्र नहीं दे सकता।

वे राम की अयोध्या एवं राम को ही नहीं खारिज कर रहे थे, वे तो विशाल- वैविध्य सनातन धर्म एवं राष्ट्र जो एकदूसरे के परस्पर पर्याय हैं का मानमर्दन कर मुखों को मलिनता एवं गहरे आघात से भर रहे थे। क्योंकि वे यह कदापि नहीं चाहते थे कि राष्ट्र राम रुपी एकता के सूत्र में पिरोकर अपने मूल्यों को पहचाने एवं स्थापित कर सके। किन्तु-परन्तु अनेकानेक षड्यंत्रों, छल-कपट, मिथ्यारोपों एवं कुत्सितता के नारकीय व्यूह का अंत एक दिन तो निश्चित ही होना था तथा रामघातियों के आडम्बर से पर्दा उठने एवं उनके मिथ्यचारों का अंत भी तय था। अब वे राष्ट्रघाती भारत के विराट मानस के मनोमस्तिष्क से सदा-सदा के लिए हट गए हैं।

राम के विग्रह की स्थापना एवं जन्मभूमि को आक्रांताओं एवं नरपिशाचों के चंगुल से मुक्त करने के लिए लाखो-लाख रामभक्तों की आहुति, संतों का त्याग, उनकी उम्मीद, उनका विश्वास जो क्षणिक मात्र भी डिगा नहीं। राम के लिए सत्ता के त्यागी एवं सत्ता की लाठी एवं गोली खाने वाले सनातन के महापुरुष।

गोधरा में ट्रेन की अग्नि में जला दिए गए रामभक्त हों या गोलियों से भूने गए रामभक्तों के वक्षस्थल हों या साधुसंतों की तपस्वी काया में नराधम सत्ता की लाठियों के निशाना हों। या राम के लिए जेल के तहखानों की मर्मान्तक यातना सहने वाले पुरोधा हों, या अपने को खपाकर राम के होने का प्रमाण देने वाले मनीषी हों या कि न्यायालय में वृध्दावस्था की अवस्था के बावजूद भगवान राम के लिए प्राणोत्सर्ग करने का अदम्य साहस रखने वाले महान पुण्यात्मा हों।

राजनीतिक दृढ़ इच्छाशक्ति एवं पुरखों की प्रेरणा एवं उनके बलिदानों को फलीभूत करने वाले सनातनी हों जिनके लिए सत्ता नहीं बल्कि राम महत्व एवं आधार का विषय रहे हों। उन सभी बलिदानों की आहुति से ही राम का यज्ञ अपनी सफलता को प्राप्त कर रहा है, उन सभी के योगदान, बलिदान, तप-त्याग, समर्पण, निष्ठा को राष्ट्र कभी विस्मरित नहीं कर सकता। राम के लिए त्याग एवं  बलिदान की अमरगाथा अपने लहू से लिखने वाले सनातनी पुण्यात्माओं के लिए अयोध्या का राममय होना उनकी मुक्ति का मार्ग है।

वे आंखें जो राम के विराजमान होने का संकल्प लिए पथरा सी गईं, वे कान जो राम के गुण गाते एवं अयोध्या में रामलला के मन्दिर की सूचना सुनने के लालायित रहे। वे जो राम की प्रतीक्षा करते-करते इहलोक से परलोक को सिधार गए, आज उनकी आत्मा धन्य हो गई होगी कि रामलला अब अपनी राजधानी एवं जन्मभूमि से राष्ट्र में रामराज्य स्थापित करने के लिए सिंहासन में आसीन हो रहे हैं। नेत्रों में प्रसन्नता के आंसू एवं प्रेम -आनंद से विह्वल राममय जीवन स्वयं को कृतार्थ एवं धन्य समझता है। यह रामोत्सव का पर्व हजारों वर्षों की प्रतीक्षा, संघर्ष एवं पुण्य तथा सभ्यता के आदर्श को पुनर्स्थापित करने का पर्व है जो सर्वदा साक्षी रहेगा कि सभ्यता के आधार भगवान राम के लिए त्याग, बलिदान की गाथा, राष्ट्र की अस्मिता एवं चेतना का पर्याय बना हुआ था जो सुफल हुआ और आज सबकुछ राममय हो चुका है। 

वर्षों से राम के पथ निहारने वाली अयोध्या की देहरी मुस्कुरा रही है, भारत मुस्कुरा रहा है, सनातन की धंसें हुए नेत्रों में ज्योति आ रही है तथा चिपके हुए कपोल खिल रहे रहे। चहुंओर एक दैवीय शक्ति एवं ऊर्जा के संचार से भारत के जन-जन में आशा, उम्मीद, विश्वास के दीप प्रज्वलित होकर अपनी आभा से आह्लादित कर रहे हैं।  राम-राम के बीजमंत्र के साथ ही भारत के सूखे प्राणों में अमर चेतना एवं असीमित ऊर्जा का संचार होने लगा है।

राम के विग्रह में विराजमान एवं उनकी जन्मभूमि के वैभवीकरण के लिए प्रशस्त होने वाले कार्य की गति के साथ ही समूचे भारतवर्ष एवं विश्व के कोने-कोने में रहने वाले भारतवंशियों एवं सनातनधर्मावलम्बियों का तन-मन रामानुराग से प्रफुल्लित हो रहा है। 

राम को जहां ढूंढ़ेंगे वहीं राम मिल जाएंगे। क्या अमीर-क्या गरीब, राजा-रंक, फकीर, साधु-सन्यासी, बालक, युवा, प्रौढ़- बुजुर्ग, गली-घाट, चौबारे, देहरी, वन-प्रांतर, महल-झोपड़ी भगवान राम बिना किसी भेदभाव के अपने स्वरुपों में सर्वत्र विराजमान मिल जाएंगे। वाणी में, मन में, तन में, आत्मा में, भगवान राम भारतवर्ष के रग-रग में व्याप्त मिल जाएंगे। तेरे राम-मेरे राम से परे, सबके राम मिलेंगे लेकिन राम मिलेंगे अवश्य।


कोई कौशल्या नंदन को पूजता मिलेगा, तो कोई रघुकुल शिरोमणि राम को तो कोई केवट के राम को पूजता मिलेगा। कोई तुलसी के राम को पूजता मिलेगा तो कोई वाल्मीकि के राम को, तो कोई सीता के राम को, तो कोई रावण संहारक राम को पूजता मिलेगा। कोई बालक राम के मनोहारी बाल हठी राम को ह्रदय में संजोकर चलें तो कोई शबरी माता के राम में अपना राम ढूंढ़ता हुआ मिल जाएगा। कोई गुरू वशिष्ठ के आज्ञाकारी राम को देखेगा तो कोई महर्षि विश्वामित्र के सौम्य राम के दर्शन की अभिलाषा में मिल जाएगा। रामचरितमानस की चौपाइइयों एवं दोहों में समाए राम-कहीं कंबन एवं वाल्मीकि की रामायण में राम मिलेंगे।हनुमान के राम, अंगद के राम, बालि के राम-सुग्रीव के राम, विभीषण के राम, पक्षीराज जटायु के राम, नल-नील के राम, कागभुशुण्डि के राम, गरुड़ के राम, देवताओं के राम।

माता अहिल्या के उध्दारक राम- अयोध्या के राम, जनकपुर के राम, कौशल के राम, चित्रकूट के राम, मन्दाकिनी के राम, दण्डकवन के राम, किष्किंधा के राम, लंका के राम, रामेश्वर के राम जो जिस स्वरूप में स्वयं से जोड़ेगा राम उसी स्वरूप में उनके साथ जुड़ जाएंगे। भगवान राम का यह अखिल स्वरूप एवं उनके महानतम् जीवनादर्शों की संचित पूंजी ही तो सनातन है। 

भारत के कण-कण एवं जन-जन के रक्त में प्रवाहित होने वाले राम, लोक में रचे-बसे राम, प्राणवायु की तरह शरीर के चलायमान का हेतु राम हैं। राम को जब महर्षि वाल्मीकि, गोस्वामी तुलसीदास एवं अनेकानेक ऋषि-महर्षि, पूज्य संत, विद्वत जन परिभाषित नहीं कर सके तो उन राम की परिधि तथा उनके महान स्वरूप को सुपारिभाषित करना बड़ा ही दुष्कर कार्य है। लेकिन भारत एवं सनातन के ह्रदय की धड़कनों में जो राम बसते हैं उसी से तो भारतवर्ष की काया का निर्माण होता है।
राम क्या हैं? आत्मा का नाम ही श्रीराम हैं।

सनातन के प्राण एवं भारतवर्ष के आधार हैं भगवान राम जिनके सहारे ही सनातन की कीर्ति पताका अखिल ब्रम्हांड में फहराती रहेगी। उन राम की धुन में तल्लीन राष्ट्र एवं रामनाम की एकसूत्रता में बंधकर सनातन के लिए अपनी आहुति देने के लिए तत्पर रामभक्तों के लिए राष्ट्र का राममय हो जाना ही जीवनामृत है जिसमें राष्ट्र का वैभव अपने चर्मोत्कर्ष को प्राप्त करेगा तथा राम की सरसता में सराबोर राष्ट्र यह पर्व अपनी संस्कृति की अक्षुण्णता के लिए मनाता रहेगा।

राष्ट्र ने आक्रांताओं एवं राष्ट्रघातियों से सभ्यता एवं संस्कृति की लड़ाई है जिसके पड़ाव में यातनाओं एवं षड्यंत्रों के शूलों को अपने रक्त की आहुति से नष्ट कर राम की प्रतिष्ठा के संकल्प को पूर्ण किया है, जिसे जब तक सनातन रहेगा तब तक नहीं भुलाया जा सकता बल्कि राम के लिए संघर्ष पथ की प्रत्येक आहुति को ह्रदय में इसलिए संजोकर रखना पड़ेगा ताकि आने वाली पीढ़ी यह जान सके कि -राम के राष्ट्र में राम को अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़नी पड़ी एवं स्वयं के होने का प्रमाण देना पड़ा। ताकि वह लावा जो वर्षों से धधक रहा था वह अनायास सुप्त न पड़ जाए, क्योंकि अभी राम के विग्रह की स्थापना हुई है, राष्ट्र में अपनी सभ्यता एवं संस्कृति के उत्कर्ष एवं अपने प्रतीकों को आक्रांताओं से मुक्त करवाने एवं उन्हें प्रतिष्ठित करने के लिए आगे तब तक संघर्ष करना होगा, जब तक कि भारत राष्ट्र की सभ्यता एवं संस्कृति के प्रत्येक प्रतीक अपने मूलस्वरूप को प्राप्त नहीं कर लेते!!

(इस लेख में ‍व्‍यक्‍त विचार लेखक की निजी अनुभूति‍ है, वेबदुनिया का इससे कोई संबंध नहीं है।)

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