ना जाने कितने घरों में टीवी, मोहल्ले के कई-कई घरों का सहारा था। सब मिलबैठ कर एक साथ टीवी देखते थे। कई सारे हंसी-ठहाके भी उसमें शामिल होते थे और समझाइश भी, धर्म भी आध्यात्म भी... बहस भी और ज्ञान की गंगा भी... राम के पक्षधर और सीता के पक्षधर। कभी दीपिका के उच्चारण दोष पर सात्विक सी खिन्नता तो कभी लक्ष्मण के गुस्से पर उमड़ा ढेर सारा लाड़.... उन दिनों लक्ष्मण कई कुंवारियों के हीरो बन गए थे...।
मोहल्ले में शैतानियां भी रामायण के नाम से कई होती थी।
सामने वाली शोभा जल्दी-जल्दी कपड़े सूखने को डाल रही होती थी तभी शंख और घंटे की ध्वनि के साथ सुनाई पड़ता ''सीताराम चरित अति पा. ..आ आ आ वन .. ' 'और वो कपड़े छोड़कर गिरती- पड़ती ये जा... वो जा....
टीवी के सामने हांफती पंहुची तो विज्ञापन चल रहे थे...
पता चला रामायण की सिग्नेचर ट्यून को रिकॉर्ड कर सामने से कोई शरारती बजा रहा था...
फिर सीढ़ियां चढ़कर ऊपर तक कपड़े डालने पंहुची, निगाहें चारों तरफ .. किधर से आई आवाज... अच्छा, तो नीली खिड़की वाली काकी साब का लड़का है .. अभी जाकर शिकायत करती हूं रामायण बाद में देखूंगी...
ऐसे कई अनेक किस्से हैं ... 10 साल का उज्जवल गुड़ी पड़वा की झांकी में राम बनना चाहता है और कॉलेज जाने वाली भारती जीजी के घर बैठा है कि तुम सीता बन जाओ.. सबका हंस-हंस कर बुरा हाल है भिया तू कहां और मैं कहां... नहीं पर उज्जवल की जिद है, माताराम ने सुताई भी कर दी पर जनाब मानने को तैयार नहीं...
रामायण मधुर स्मृतियां ताजा करेगा, यूट्यूब पर है पर उसमें वो मजा कहां जो नियत समय पर आने वाली रामायण में होगा। आइए अपनी यादों के पिटारे से निकाले कुछ चमकते-दमकते हीरे, मोती....