30 जून टिक टॉकर्स के लिए शौक दिवस हो गया है। यह टिक टॉकर्स के लिए तकलीफ भरा दिन हो सकता है, लेकिन जो लोग टिक टॉक पर नहीं थे या जो इसका इस्तेमाल नहीं करते उनके लिए तो यह ठीक वैसा ही है जैसे स्वच्छता या सफाई की ओर एक कदम बढ़ना।
भारत में टिक टॉक पर प्रतिबंध स्वच्छता की तरफ एक बेहद ही अच्छा कदम ही है। ठीक भारत सरकार के स्वच्छता अभियान की तरह। जिसमें देश के ज्यादातर शहरों की सफाई हो गई।
दरअसल, मनोरंजन के लिहाज से एक सीमा तक तो टिक टॉक एक अच्छा माध्यम रहा है, लेकिन धीरे-धीरे एक यह गंदगी में तब्दील होता जा रहा था, जिसकी सफाई बेहद जरुरी थी। अगर चीन के साथ भारत की तनातनी का सवाल नहीं होता और डाटा चोरी का मामला नहीं होता तो भी भारत के लिए और हमारी इस जनरेशन के लिए यह एप्प एक खतरनाक सौदा ही था।
जहां तक टिक टॉक पर मिमिक्री, अभिनय, कॉमेडी और सटायर का सवाल है तो यह काफी मनोरंजक रहा है, लेकिन जब यह मंच डबल मीनिंग टेक्स्ट, बेहूदगी से भरे विज्युअल्स, अश्लीलता और सांप्रदायिक दुष्प्रचार में तब्दील होने लगा तो यह बेहद खतरनाक होने की तरफ बढ़ रहा था। खासतौर से उस जनरेशन के लिए जिसने जिंदगी का अभी एक पड़ाव भी पार नहीं किया था। यह उसी जनरेशन की मानसिकता को अपना शिकार बना रहा था।
एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में टिकटॉक के करीब 20 करोड़ यूजर्स हैं। देश में व्हाटसएप्प के बाद सबसे ज्यादा टिकटॉक ही इंस्टॉल किया गया था। यह आंकड़ा चौंकाने वाला और परेशान करने वाला है। मतलब यह सीधे तौर पर इतने लोगों की मानसिकता को अपना शिकार बना रहा था।
हालांकि इनमें से कई लोग टिक टॉक की वजह से चर्चा में भी आए और उन्होंने इसे एक रोजगार या कमाई के साधन के तौर पर भी अपनाया, लेकिन मोटे तौर पर यह इस वर्ग का नुकसान ज्यादा कर रहा था। इसकी बेहूदगी की आंच लगातार बढ़ती ही जा रही थी। ऐसे में टिक टॉक की विदाई देश के लिए एक सुखद घटना ही नहीं बल्कि चीन जैसे देश को भारत की तरफ से दिया गया डिजिटल स्ट्राइक शॉक्ड भी है।
सरकार के स्वच्छ भारत अभियान की तरह ही इस डिजिटली सफाई की तरफ एक कदम का अग्रसर होना सराहनीय है।