अलौकिक ईश्वरीय प्रतिभा से सुसंपन्न ज्योतिर्मयी, एक सुलझी हुई राजनेत्री के साथ-साथ एक प्रखर वक्ता, गंगा की निर्मल धारा के समान पवित्र व्यक्तित्व की धनी, केंद्रीय जल संसाधन और गंगा संरक्षण मंत्री साध्वी उमाश्री भारती का जन्म लोधी राजपूत परिवार में 3 मई 1959 को मध्यप्रदेश के अंतर्गत टीकमगढ़ जिले के डूंडा नामक ग्राम में हुआ था। उमा भारती के पिता का नाम गुलाब सिंह और माता का नाम बेटीबाई था।
उमा भारती अपने 4 भाइयों और 2 बहनों में सबसे छोटी थीं इसलिए परिवार में सबकी लाड़ली थीं। 1 वर्ष 5 माह की छोटी सी आयु में ही उमा भारती पितृ सुख से वंचित हो गईं। उनके पिता के देहांत बाद भी उमा भारती की मां ने पूरे परिवार का भार वहन करते हुए बड़ी हिम्मत व बड़े स्नेह के साथ उमा भारती का पालन-पोषण किया और उमा भारती को पिता की कमी महसूस नहीं होने दी।
उमा भारती के बारे में बचपन में कौन जानता था कि यह छोटी सी कन्या बचपन में ही इतनी प्रसिद्धि पा लेगी। 5 साल की उम्र में जब उमा भारती को विद्या प्राप्त करने के लिए प्राथमिक पाठशाला में अध्ययन करने के लिए भेजा गया, तब उमा भारती अपने शिक्षकों को अपनी बाल सुलभ वाणी से कभी-कभी अत्यंत गहन प्रश्न पूछकर आश्चर्यचकित कर देती थीं। इतनी छोटी सी उम्र में बाल उमा भारती के अद्वितीय ज्ञान ने लोगों को असमंजस में डाल दिया। बड़ी ही तेज गति से उमा भारती की प्रतिभा का विस्तार हुआ।
उमा भारती को छोटी सी उम्र में ही गीता और रामायण कंठस्थ हो गई थी। उमा भारती जब अपनी बाल वाणी में रामायण की कथा और रामचरित मानस की चौपाइयों का सस्वर पाठ कर लोगों को उसका अर्थ समझाती तो लोग एक पल के लिए इस छोटी कन्या को देखते ही रह जाते थे। बचपन में उमा भारती के इतने अभूतपूर्व ज्ञान और प्रवचनों की वजह से लोग उनको दैवीय अवतार मानने लगे थे।
जब उमा भारती टीकमगढ़ जिले में 6ठी कक्षा में अध्ययन कर रही थीं तब वहां हुए एक अखिल भारतीय रामचरित मानस सम्मलेन में उन्होंने धाराप्रवाह प्रवचन दिया। लोग उमा भारती के विद्वतापूर्ण प्रवचन को सुनकर मंत्रमुग्ध हो गए। उमा भारती ने 5 साल की उम्र में ही प्रवचन करना शुरू कर दिया था। इससे दूर-दूर तक उमा भारती की ख्याति बढ़ने लगी।
उमा भारती जब बचपन में धाराप्रवाह प्रवचन देती थीं तब धर्माडंबर के खंडहर पर खड़े तथाकथित छद्म विद्वानों को दृष्टि नीची कर उन्हें धरती की धूल चाटने को बाध्य कर देती थीं। जब उमा भारती ने धार्मिक प्रवचन देना शुरू किया था तब ग्वालियर राजघराने की राजमाता विजयाराजे सिंधिया ने उमा भारती को एक बार प्रवचन करते हुए सुना। विजयाराजे उमा भारती के अभूतपूर्व ज्ञान और उनकी ओजस्वी छवि से काफी प्रभावित हुईं। इसके बाद उमा भारती राजमाता विजयाराजे सिंधिया के सान्निध्य में रहने लगीं। राजमाता विजयाराजे सिंधिया ही आगे चलकर उमा भारती की राजनीतिक संरक्षक बनीं।
उमा भारती काफी युवावस्था में ही राजमाता विजयाराजे सिंधिया के कहने पर भारतीय जनता पार्टी से जुड़ गई थीं। उमा भारती ने 1984 में सर्वप्रथम लोकसभा चुनाव लड़ा, लेकिन पूर्व प्रधानमंत्री स्व. इंदिरा गांधी की मृत्यु के बाद कांग्रेस के पक्ष में उमड़ी सहानभूति की लहर में उन्हें हार का सामना करना पड़ा। 1989 के लोकसभा चुनाव में उमा भारती खजुराहो लोकसभा सीट से पहली बार सांसद चुनी गईं और लगातार 1991, 1996, 1998 के लोकसभा चुनावों में यह सीट बरकरार रखी।
उमा भारती 5वीं बार 1999 में भोपाल संसदीय क्षेत्र से संसद सदस्य के लिए चुनी गईं। केंद्र की अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में उमा भारती ने मानव संसाधन विकास, पर्यटन, युवा एवं खेल मामलों के राज्यस्तरीय और अंत में कोयला और खदान जैसा महत्वपूर्ण कैबिनेट स्तर का विभाग बिना किसी भ्रष्टाचार के दाग के संभाला है, क्योंकि कहा जाता है कि कोयला और खदान जैसे मंत्रालय में रहने वाले मंत्री पर भ्रष्टाचार के आरोप लगते ही हैं लेकिन उमा भारती इस मंत्रालय से बिना किसी भ्रष्टाचार के आरोप के बाहर निकलीं।
उमा भारती पिछले 4 दशकों से राजनीति का जाना-माना चेहरा रही हैं। उमा भारती देश और भाजपा की 'फायरब्रांड' नेता मानी जाती है। वे चाहे भाजपा में रही हों या भाजपा से अलग होकर अपनी पार्टी बनाई हो, सब जगह ये संन्यासिन अपनी विचारधारा से जुड़ी रहीं। उमा भारती एक अनुभवी एवं सुलझी हुई और जमीन से जुड़ी हुई और लोकप्रिय नेता हैं।
उमा भारती पहली ऐसी नेत्री हैं जिन्हें बुंदेलखंड का नेतृत्व करने वाली प्रथम महिला मुख्यमंत्री बनने का गौरव प्राप्त है। उमा ने अपनी सूझबूझ और कड़ी मेहनत से 2003 में कांग्रेस की दिग्विजय सिंह के नेतृत्व वाली 10 साल की सरकार को उखाड़ फेंका था। इस जीत का श्रेय सिर्फ और सिर्फ उमा भारती को जाता था। इसके बाद 2004 में कर्नाटक के हुबली में तिरंगा फहराने के केस में मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था।
बेशक, उमा भारती को भाजपा ने मध्यप्रदेश से तड़ीपार कर दिया हो लेकिन अभी भी उमा भारती मध्यप्रदेश की राजनीति में अपनी धाक रखती हैं। वैसे भी केंद्र में जल संसाधन एवं गंगा संरक्षण मंत्री साध्वी उमा भारती की लोकप्रियता और प्रसिद्धि व्यापक है। उमा भारती भाजपा में भी महासचिव और उपाध्यक्ष जैसे बड़े-बड़े ओहदों पर रह चुकी हैं।
उमा भारती हर चुनाव में भाजपा की तरफ से स्टार प्रचारक की भूमिका में भी रहती हैं। 2017 के उत्तरप्रदेश के विधानसभा चुनाव में भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के साथ जिन 4 चेहरों को दिखाकर भाजपा चुनाव लड़ी थी, उनमें भी उमा भारती शामिल थीं। उमा भारती की वाक्-पटुता और भाषणशैली से आम जनमानस प्रभावित होता है। आज भी जल संसाधन एवं गंगा संरक्षण मंत्री साध्वी उमा भारती के ओजस्वी और जोश से भरे हुए भाषणों को सुनने के लिए हजारों की तादाद में लोग आते हैं।
अपने बचपन में 50 से ज्यादा देशों में प्रवचन कर चुकीं साध्वी उमा भारती के बारे में कहा जाता है कि वे देश के किसी भी क्षेत्र में चली जाए, भीड़ अपने आप उनके पीछे आने लगती है। उमा भारती ने अपने सार्वजनिक जीवन में अनेक मुकाम हासिल किए हैं। उमा भारती की राजनीतिक यात्रा भी काफी दिलचस्प और कठिनाइयों से भरी रही है। कठिनाइयों के साथ-साथ उमा भारती ने अपने राजनीतिक जीवन में अनेक आयाम स्थापित किए हैं और अनेक सफलताएं प्राप्त की हैं।
पिछले दिनों बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में उच्चतम न्यायलय ने बड़ा फैसला सुनाया जिसमें भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी और केंद्रीय मंत्री उमा भारती समेत 13 लोगों पर आपराधिक मुकदमा चलाने की मंजूरी दी है। लेकिन उमा भारती ने कोर्ट द्वारा आपराधिक साजिश का केस चलाने के फैसले पर कहा कि 'यह साजिश का मामला नहीं, सब कुछ खुल्लम-खुल्ला है। साजिश की क्या बात है, मैं तो वहां मौजूद थी।' उन्होंने कहा कि वे अयोध्या आंदोलन की भागीदार रही हैं जिसका उन्हें कोई गिला-शिकवा नहीं है।
वास्तव में उमा भारती ने गर्व के साथ अयोध्या आंदोलन में भागीदारी की और उन्होंने कभी भी बाबरी मस्जिद विध्वंस पर दूसरे नेताओं की तरह खेद नहीं प्रकट किया। बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में आपराधिक मामले में सजा के मसले पर उमा भारती कहती रही हैं कि वे अयोध्या, गंगा और तिरंगे के लिए कोई भी सजा भुगतने को तैयार हैं।
उमा भारती तो यहां तक कहती रही हैं कि वे अयोध्या मामले में फांसी भी चढ़ने को तैयार हैं। अयोध्या में आपराधिक साजिश के इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने 2 साल में सुनवाई करने के आदेश दिए हैं। अब देखने वाली बात होगी कि उमा भारती सहित सभी नेता इस मामले से बरी होकर निकलते हैं या उन्हें सजा सुनाई जाती है?
लेकिन उमा भारती इस केस को अपने माथे पर चंदन के टीके के समान मानती हैं। अगर इस मामले में उमा भारती को कोई सजा होती भी है तो उन्हें इस मामले में कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है। इस मामले में अधिकतम 5 साल की सजा हो सकती है। अगर सजा भी हो जाती है तो उमा भारती को कोई अधिक नुकसान नहीं होने वाला है बल्कि इस मामले से उमा भारती के राजनीतिक करियर को उछाल ही मिलेगा।
इस समय साध्वी उमा भारती केंद्र की नरेन्द्र मोदी सरकार में जल संसाधन और गंगा संरक्षण मंत्री का दायित्व निभा रही हैं। अगर भगवाधारी केंद्रीय मंत्री उमा भारती के गंगा के प्रति नजरिए के बारे में बात की जाए तो वे गंगा को प्रदूषणमुक्त बनाने को अपने जीवन-मरण का सवाल बना चुकी हैं। इसलिए उमा भारती अपने हर वक्तव्य में कहती हैं कि 'जब आए हैं गंगा के दर पर तो कुछ करके उठेंगे, या तो गंगा निर्मल हो जाएगी या मर के उठेंगे।' इससे पता चलता है कि उमा भारती गंगा के प्रदूषण से कितनी विचलित हैं। अब आगे देखने वाली बात होगी कि केंद्रीय मंत्री उमा भारती यमुना का कितना जीर्णोद्धार या कायाकल्प कर पाती हैं?
साध्वी उमा भारती का व्यक्तित्व और सार्वजनिक जीवन नैसर्गिक और सादगीपूर्ण है। उन्होंने हमेशा भगवा सभ्यता, जो कि देश की अस्मिता से जुड़ी हुई है, को बचाने के लिए संघर्ष किया है। चाहे राम मंदिर आंदोलन हो, चाहे राम-रोटी यात्रा रही हो, चाहें रामसेतु को बचाने का मुद्दा हो या गंगा समग्र अभियान हो- सब जगह साध्वी उमा भारती ने अपना अग्रणी योगदान दिया है।
साध्वी उमा भारती का राजनीतिक और सामाजिक जीवन एकदम साफ-सुथरा रहा है। अद्भुत स्मरणशक्ति व स्वत:स्फूर्त व्याख्यात्मक ज्ञान की धनी साध्वी उमा भारती का 3 मई 2017 को 58वां जन्मदिवस है। इस अवसर पर अंतरमन से ईश्वर से सिर्फ यही प्रार्थना है कि ईश्वर देश की राजनीति में 'दीदी' के नाम से जाने वाली साध्वी उमा भारतीजी को स्वास्थ्य लाभ एवं चिर-आयु के आशीर्वाद से सदैव परिपूर्ण रखे।