औरत का मन, देखो क्या-क्या लिखता है

निशा माथुर 
औरत का मन, देखो क्या-क्या लिखता है, 
रूह को छूकर निकल जाए, वो पन्ना लिखता है।
आंधि‍यों के जोर पर, अपना हौसला लिखता है,  
या, ममता का भीगा दुबका, कोई कोना लिखता है। 
 
दिल में हिलोरती, लाखों तमन्नाएं लिखता है, 
या, सपनों की यहां-वहां बिखरी किरचें लिखता है।
 
अपने हिस्से का आसमां तकती, दो आंखें लिखता है, 
या, इंतजारी के डूबते पलों का कारवां लिखता है।
 
अपनी जांबाजी से टकराती, वो कोमलता लिखता है, 
या, पत्थरों पर, अपने आंसुओं का इतिहास लिखता है। 
 
रिश्तों पर अपने स्नेह का, मखमली पैबंद लिखता है, 
या, यायावर-सी जिंदगी का, मौन आह्वान लिखता है।
 
औरत का मन, देखो क्या-क्या लिखता है,
रूह को छूकर निकल जाए, वो पन्ना लिखता है।

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