खिले-खिले सुमन पथ-पर

पुरुषोत्तम व्यास  
 
खिले-खिले सुमन पथ-पर
खिला-खिला चांद-छत पर…
लिखे-खत न आया जवाब
जिंदगी-भी इंतजार बन गई…
 
मिट्टी-भी सोना बन-गई
यादों की कविता बन-गई…
 
होती संग होता अच्छा
तुम-कल्पना मैं चित्रकार होता…।

वेबदुनिया पर पढ़ें