हल्की-फुल्की कहानी - तीन कच्ची कैरियां

' अरी, अब मुंह छुपा के कहां जा बैठी है? जरा बाहर निकल और बता तो क्यों तोड़ी मेरे पेड़ से कैरियां? लड़की है की तूफ़ान! ला वापस कर मेरी कैरियां।'
 
' भाभीजी, क्यों नाहक चिल्ला रही हैं? कोई ग़लतफ़हमी हुई है आपको, मेरी हिना ने नहीं तोड़ी कैरियां। वो तो भीतर पढ़ रही है कबसे।'
 
' अच्छा ! जरा सी बच्ची पर इतना भरोसा ? और मैं साढ़े पांच फुट की औरत क्या झूठ बोल रही हूं?' 
 
' कौन झूठ, कौन सच मैं नहीं जानती। पर आपके पेड़ पर बौर आते ही हम बच्चों को ताकीद कर देते है पेड़ से दूर रहने की। फिर क्या मजाल जो वो कैरी तक हाथ पहुंचा दे। '
 
इतनी तरफदारी भी मर करो मिसेस बौरासी ! अच्छी तरह जानती हूं हिना को। इधर आम पर कोयल कूकी नहीं और उधर तुम्हारी बेटी की निगाहें पेड़ के ऊपर टिकी रहती है। चारों कोनों में कला धागा बांधती हूं, तब कही जाकर सौ- दो सौ कैरियां फलती है। '
 
' कैसी बातें करती हो भाभीजी ? क्या हम इतने गये-गुजरे है जो दो केरी खरीदकर न खिला सके बेटी को ?'
 
'आठ साल से पड़ोस का नाता है आपसे। खूब जानती हूं, चोरी से खाए बिना पेट नहीं भरता तुम्हारी हिना का। मेरी टीना ने तो कभी तुम्हारे सुर्ख गुलाबों की ओर देखकर जी न ललचाया ?'
 
'जी क्यों ललचाएगी ? मैं हफ्ते में दो-तीन बार अपने हाथों से गजरा बनाकर लगाती हूं उसकी लम्बी चोटी में। मैंने तो कभी हिना-टीना में भेद न किया। तुम जरा सी केरी के पीछे बोलने लगी ? अरे, केरी क्या उसे तो रोज आम खिलाने की हैसियत है हमारी। '
 
'किसकी कितनी हैसियत है बताने की जरुरत नहीं। भगवन बुरा करे जो मैंने हिना को दिए बिना टीना को दो बिस्कुट भी दिए हो।' 
 
'हिना को दिए बिस्कुट गिनाने लगी ? भूल गयी जब तुम बीमार थी, तब तीन दिन मैंने तुम्हारे घर का खाना अपने घर से ही भिजवाया था। तुम्हारी तीमारदारी की, और तेल-कंघी तक अपने हाथों से की थी।' 
 
'अच्छा ! बहुत तेज याददाश्त है री ! और तुम्हारी ननद की शादी में मैंने दिन-रात एक कर दिए थे वो भूल गई? मेहमानों के लिया पूरा घर खोल दिया था। लड़केवाले समझ भी न पाये, मैं सगी रिश्तेदार हूं या दूर की।' 
 
'तो उसका उपकार भी तो महीनों मानती रही मैं। और विदागी भी अपनी बहन-बेटियों से कम न दी तुम्हें। वो भूल गई?'
 
'ओह ! आज तुम नेग गिनाने लगी ? जो मैं जानती तो छूती तक नहीं। अभी भी पैकेट जस के तस रखे है, कहो तो ला दूं?' 
 
'नेग वापस लेने का रिवाज नहीं है हमारे यहां। तुम पर तो जाने कौन सा भूत सवार हो गया जो अगला-पिछला गिनाने लग गई।' 
 
'गिनने की नौबत ही न आती , गर तुम्हारी लाड़ली ने मेरी कैरियां न तोड़ी होती। मेरी ही निगाहों के सामने मेरे ही पेड़ से चोरी? मैं तो बर्दाश्त नहीं कर सकती।' 
 
'निगाहों के सामने ?

क्या आपने उसे कैरियां तोड़ते देखा है? भाभीजी, यदि ये बात सही हुई तो आज मेरी बेंत और हिना के हाथ होंगे। वो हाल करुंगी कि...'
 
'तोड़ते नहीं , तोड़कर ले जाते देखा है। वो भी एक नहीं , दो नहीं तीन-तीन कैरियां। मजाल तो देखो मेरी ही छत से ऊपर गई। पीछे से देखा मैंने, पीला फ्रॉक पहनी है न आज ! मैं आवाज दूं तब तक तो ये जा वो जा। लड़की है कि बंदरिया?'
'भगवान के लिए ऐसा-वैसा न बोलो। अभी बुलाती हूं उसे। सामने ही हो जाएगा दूध का दूध और पानी का पानी। 
 
हिना … ओ हिना.... कहां है ? जल्दी से आ तो....'
 
तभी छत से धड़धड़ाती हुई एक नहीं, दो नहीं तीन लड़कियां कूदती आई। हिना, टीना और टीना की ममेरी बहन रीना। उनके हाथों में अख़बार के टुकड़ों पर कैरियों की लम्बी-लम्बी फाकें थी, जिन्हें वे चटखारे ले लेकर खा रही थी। रीना चिल्ला रही थी , 'रुक न , और नमक लाने दे टीना की बच्ची। तूने ज्यादा कैरी खा ली, अब मेरी बारी है। ला तो जरा..... .
 
तीसरी लड़की को देखते ही पहली महिला बोली , 'अरी रीना तू ? तू कब आई? और मुझे बताया तक नहीं?
 
ओ बुआ , बता देती तो पेड़ से कैरियां कैसे चुरा पाती? चुराकर खाने से कैरियों का स्वाद बहुत बढ़ जाता है। मैंने आते ही कैरियां तोड़ी और आपकी नजर पड़ने से पहले ही.....
 
पहली महिला ने बौखलाते हुए कहा ,' तो बदमाश, तुझे भी आज पीला फ्रॉक ही पहनना था !

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