भारत की वर्तमान राजनीति का सबसे बड़ा चाणक्य कौन है?

जब भी कोई व्यक्ति भारत की वर्तमान राजनीति में किसी चाणक्य को ढूंढने का प्रयास करता है तो वह अपने किसी राष्ट्रनेता में चाणक्य की तरह छल, कपट, कूटनीति, तीक्ष्ण बुद्धि और ऐसे ही कुछ गुण ढूंढने का काम करता है, लेकिन वह यह भूल जाता है कि चाणक्य की उपलब्धियां क्या थी।
 
 
दरअसल, आचार्य चाणक्य होना बहुत मुश्किल है। कैसे? चाणक्य ने चंद्रगुप्त को गद्दी पर बैठाकर अपने राष्ट्र को गद्दारों और आक्रमणकारियों से बचाया था। उन्होंने कभी भी भारत को विखंडित नहीं होने दिया बल्कि भारत के खोए हुए हिस्से को भी वापस लेने के लिए अभियान छेड़ दिया था। उन्होंने अखंड और एक सशक्त भारत का निर्माण किया था। उन्होंने ही राष्‍ट्र की विदेश, अर्थ और राज की नीति को निर्धारित किया था। चाणक्य ही थे जिनके कारण भारत का स्वर्ण युग प्रारंभ हुआ। हालांकि वक्त बदलता है तो चाणक्य होने की परिभाषा भी बदलती है। थोड़ा कम ही सही लेकिन कुछ लोगों को भारत की वर्तमान राजनीति का चाणक्य स्वीकार कर लिया जाता है।
 
 
एक ओर जहां भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह आज आधुनिक युग के चाणक्य कहे जा रहे हैं तो दूसरी ओर दिग्विजय सिंह को भी भारतीय राजनीति का चाणक्य माना जाता है। अब देखीए उन्होंने ही तो प्रारंभ में माननीय राहुल गांधी को राजनीति की शिक्षा और दीक्षा दी थी। आज राहुल गांधी एक परिपक्व राजनीतिज्ञ बनकर राजनीति के पटल पर नरेंद्र मोदी के विरूद्ध एकमात्र नेता बनकर उभरे हैं। हालांकि हमें अभी इस निर्णय पर पहुंचने के पहले और सोचना होगा।
 
 
दूसरी ओर राजनाथ सिंह से पहले लालकृष्ण अडवाणी और अटल बिहारी वाजपेयी को ही श्रेय जाता है नरेंद्र मोदी को गुजरात का सिंहासन सौंपने का। इसके बाद जब राजनाथ और उनकी टीम ने नरेंद्र मोदी को भाजपा का पीएम उम्मीदवार घोषित किया तो संपूर्ण भारतवर्ष में उसी तरह का कोहराम मचा था जैसा कि मगध में घनानंद को हटाने की मुहिम के चलते मचा था। नरेंद्र मोदी को रोकने के लिए उस समय संपूर्ण शक्तियां लग गई थी।
 
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संपूर्ण शक्तियां चाणक्य के चंद्रगुप्त को रोकने में भी लग गई थी। संपूर्ण भारत में मगध के राजा का सम्राज्य सबसे शक्तिशाली था। लेकिन कई असफल अभियान के बाद आखिरकार चंद्रगुप्त को चाणक्य ने मगध के सिंहासन पर बैठा ही दिया था। लेकिन फिर इसके बाद प्रारंभ हुआ सत्ता का नया संघर्ष। चंद्रगुप्त मौर्य को पराए और अपनों से अपने सिंहासन को बचाए रखने के लिए ही जीवन भर संघर्ष करना पड़ा।
 
 
दरअसल, चंद्रगुप्त मौर्य के तीन विवाह हुए थे। उनकी प्रथम पत्नी का नाम दुर्धरा था। दुर्धरा से बिंदुसार का जन्म हुआ। दूसरी पत्नी यूनानी की राजकुमारी कार्नेलिया हेलेना या हेलन थी, जो सेल्युकस की पुत्री थीं। हेलेना से जस्टिन नाम का पुत्र हुआ। कहते हैं कि उनकी एक तीसरी पत्नी भी थीं जिसका नाम नाम चंद्र नंदिनी था।
 
हेलन ने अपने पुत्र जस्टीन को मगथ के सिंहासन पर आसीन करने के लिए साम, दाम, दंड और छल सभी तरह की नीतियों का उपयोग किया था लेकिन चाणक्य ने हेलन या हेलेना का यह सपना कभी पूरा नहीं होने दिया। चाणक्य ने हेलेना का हर षड़यंत्र असफल कर दिया। लेकिन सत्ता के इस खेल में एक जोर जहां मगध का नुकसान हो रहा था वहीं दूसरी ओर एक के बाद एक राज्य के वफादार लोग मरते जा रहे थे। हेलेना ने लगभग सभी को रास्ते से हटा दिया था और यूनान की सहायता से मगथ पर आक्रमण भी करवा दिया था। यह भी कहा जाता है सम्राट चंद्रगुप्त को मारने के लिए हेलेना उनके भोजन में रोज थोड़ा-थोड़ा जहर मिलाया करती थी। यह भी मान्यता है कि उसने दुर्धरा और चंद्र नंदिनी के पुत्रों को मारने के लिए षड़यंत्र रचा था। खासकर हेलेना द्वारा चाणक्य को विष देकर मार दिए जाने की कहानी भी बहुत प्रचलित है। हालांकि कुछ इतिहासकारों के अनुसार हेलना ने आचार्य चाणक्य को एक शिविर में जिंदा जलवा दिया था।
 
 
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खैर, भारत की राजनीति में यह खेल बहुत खेला गया। किरदार बदलते रहे, लोग बदलते रहे लेकिन सत्ता के षड़यंत्र का खेल वैसे ही चलता रहा जैसा महाभारत काल से चलता आया है। महाभारत के काल में भी कई विदेशी पुरुष और महिलाएं हस्तिनापुर की सत्ता के केंद्र में रहे हैं। उसी तरह चाणक्य के काल में विदेशी पुरुष और महिलाओं का दखल रहा है। मध्ययुग में भी यह खेल चला और जब मुगलों का आधे भारत पर शासन हो चला था तब भी यह खेल चलता रहा। इसके बाद जब तक अंग्रेज आए तब तक अखंड भारत के कई हिस्से भारत से अलग हो चुके थे। अंत में अंग्रेजों ने भारत का विभाजन कर दिया। 
 
मुगलकाल और अंग्रेजों के काल में भी कई चाणक्य हुए। जब मुगलों का लगभग आधे भारत पर कब्जा था तब दक्षिण में कई स्वतंत्र राज्य थे। उनमें विजयनगर राज्य सबसे शक्तिशाली राज्य था। चतुराई के मामले में उस राज्य के मंत्री तेनालीराम उस दौर के चाणक्य ही थे। कृष्ण देवराय के समय में विजयनगर सैनिक दृष्टि से दक्षिण भारत का बहुत ही शक्तिशाली राज्य हो गया था। राजा कृष्ण देवराय के दरबार का सबसे प्रमुख और बुद्धिमान दरबारी था तेनालीराम। असल में इसका नाम रामलिंगम था। तेनाली गांव का होने के कारण इसे तेनालीराम कहा जाता था।
 
 
इसी तरह मुगलकाल में चंद्रगुप्त और चाणक्य जैसी कई जोड़ियां रही। जैसे- स्वामी समर्थ रामदास और छत्रपति शिवाजी, महाराणा प्रताप और उनकी माता जयवंता कंवर, महाराजा रणजीत सिंह और निहाल सिंह आदि कई ऐसी जोड़ियां थी जिन्होंने भारत के लिए लड़ाइयां लड़ी थी।
 
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अंग्रेजों से आजादी के आंदोलन के काल में भी चंद्रगुप्त और चाणक्य की कई जोड़ियां थी। जैसे- महात्मा गांधी और गोपालकृष्ण गोखले, रामकृष्ण परमहंस और स्वामी विवेकानंद, सुभाषचंद्र बोस और उनकी सेना, महात्मा गांधी और जवाहरलाल नेहरू। फिर जब भारत आजादी हुआ तो यह कहा जाता है कि कई काल तक जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा गांधी ने सत्ता को अपना हाथ में संभाले रहा। उसी दौर में पंडित दिन दलाय उपाध्याय और अटल बिहारी वाजपेयी की जोड़ी प्रसिद्ध हुई। हालांकि राममनोहर लोहिया, जयप्रकाश नारायण और उनके शिष्यों अर्थात चंद्रगुप्तों में कई नाम शामिल किए जा सकते हैं। इसी तरह यदि जोड़ी की बात कही जाए तो कांशीराम और मायावती, एमजी रामचंद्रन और जयललिता, अन्ना हजारे और अरविंद केजरीवाल का नाम भी लिया जा सकता है।
 
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अब हम वर्तमान की बात करें तो कहते हैं कि नरेंद्र दामोदरराव मोदी भारत की राजनीति में शीर्ष पर विराजमान है। उन्हें राजनीति के इस शिखर पर पहुंचाने वालों में सबसे महत्वपूर्ण कोई व्यक्ति है तो वह है लालकृष्ण आठवाणी। उन्होंने नरेंद्र मोदी को गुजरात का मुख्‍यमंत्री बनाया और उन्होंने ही जब गुजरात दंगे हुए थे तब भी मोदी का साथ दिया था। ऐसे समय जबकि उन्हें मुख्‍यमंत्री पद से हटाने के लिए अटलबिहारी वाजपेयी ने मन बना लिया था। अंत में लालकृष्ण आठवाणी ही रहे हैं जिन्होंने नरेंद्र मोदी को पीएम बनने देने के लिए खुद की इच्‍छाओं को दफन कर दिया।
 
 
अंत में कहना होगा कि भारत की वर्तमान राजनीति में यह कोई तय नहीं कर सकता है कि कौन चाणक्य है और कौन चंद्रगुप्त। हमें फिर से विश्लेषण करना होगा क्योंकि कांग्रेस में भी पूर्व में ऐसी कई जोड़ियां रही है जिसे चाणक्य और चंद्रगुप्त की तरह माना जाता था।

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