पहले लिंग समानता का सिद्धांत भारतीय संविधान की प्रस्तावना, मौलिक अधिकारों, मौलिक कर्तव्यों और नीति निर्देशक सिद्धांतो में प्रतिपादित है| संविधान ने महिलाओं को न केवल समानता का दर्जा दिया है अपितु राज्य की महिलाओं के पक्ष में सकारात्मक भेदभाव के उपाय करने की शक्ति भी प्रदान की है। जो आज की जरूरत भी है। अन्य क्षेत्रों में महिलाएं चुनौतियों का ऊर्जावान और ठोस तरीक़े से सामना कर रही है, अपना वर्चस्व स्थापित कर रही है।
राजनीति के नए आयाम बन रहे हैं जिनमें महिलाओं को समान रूप से प्रोत्साहित किया जा रहा है, फिर चाहे वो पंचायती स्तर पर ही क्यों न हो। पंचायत स्तर के कई चुनावों में महिला प्रत्याशी जीत कर गांव सरपंच बनी हैं और उन्नति के नए दरवाजे खोले हैं।
घर की चारदीवारी से निकल शिक्षा, बैंकिंग, कॉर्पोरेट सेक्टर तक में उन्होंने पुरुषों के समान अपनी योग्यता साबित की है और अपने लिए एक सम्मानजनक स्थान बनाया है। चुनाव में समान सहभागिता की व्यवस्था हो, परंतु इसके लिए सामाजिक सोच, व्यवस्थात्मक परिवर्तन, सामाजिक विकास और सबसे ज्यादा शिक्षित और स्वस्थ माहौल का होना आवश्यक है| साथ ही उच्च सिंद्धातों का समावेश होना अति आवश्यक है।
जमीनी स्तर पर भी कुछ ऐसी पहल करनी होगी जिसमें शिक्षित महिलाएं, चाहे वे देहात स्तर की भी हो, आगे आ प्रतिनिधित्व करने का मौका मिले। ऐसे प्रयास जिसमें बहुसंख्यक स्तर पर महिलाओं की भागीदारी होगी, एक स्वस्थ वातावरण का निर्माण संभव हो सकेगा।
सरकार ने ऐसी कई योजनाओं को मूर्त रुप दिया हैं। जिसमें महिलाओं के कल्याण के साथ उनके विकास को भी प्रमुख मुद्दों में शामिल किया गया हैं। महिलाओं को 73वें और 74वें संशोधनो के तहत पंचायतों और नगरपालिका के स्थानीय निकायों में सीटों में आरक्षण प्रदान किया गया है। ताकि राजनीति में उनकी भागीदारी को एक मजबूत आधार प्रदान किया जा सके। कई अधिनियमों में सुधार कर समस्त भेदभाव समाप्त कर समानता को प्रमुखता दी गई हैं।